सुप्रीम कोर्ट ने हॉकी इंडिया की सदस्यता रद्द करने के लिए विदर्भ हॉकी संघ की चुनौती खारिज की; 'एक राज्य-एक इकाई' सिद्धांत को दोहराया

Shahadat

26 May 2025 4:57 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने हॉकी इंडिया की सदस्यता रद्द करने के लिए विदर्भ हॉकी संघ की चुनौती खारिज की; एक राज्य-एक इकाई सिद्धांत को दोहराया

    "हॉकी एक ओलंपिक खेल है और भारतीय ओलंपिक संघ के नियमों के अनुसार, एक राज्य से केवल एक ही संघ हो सकता है," सुप्रीम कोर्ट ने हॉकी इंडिया और भारतीय ओलंपिक संघ के सहयोगी सदस्य के रूप में मान्यता के लिए विदर्भ हॉकी संघ की याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की और याचिकाकर्ता को संक्षिप्त दलीलें सुनने के बाद मामला वापस लेने की अनुमति दी।

    याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के रिट क्षेत्राधिकार का हवाला देते हुए हॉकी इंडिया और भारतीय ओलंपिक संघ से उसे सहयोगी सदस्य के रूप में जोड़ने का अनुरोध किया था। इससे पहले, बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की सदस्यता रद्द करने के हॉकी इंडिया के फैसला बरकरार रखा था।

    जस्टिस कांत ने जब पूछा कि रिट कोर्ट इस संबंध में राहत कैसे दे सकता है तो याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि एसोसिएशन वास्तव में 2013 में एसोसिएट-सदस्य था। हालांकि, उस सदस्यता को एक ऐसे खंड के आधार पर "मनमाने ढंग से" छीन लिया गया, जो उस पर लागू नहीं होता। उन्होंने यह भी दावा किया कि दिल्ली में 20 से अधिक एसोसिएट-सदस्य हैं।

    रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री से जस्टिस दत्ता ने नोट किया कि याचिकाकर्ता "क्रिकेट एसोसिएशन" और "कबड्डी फेडरेशन" का उल्लेख कर रहा था, लेकिन ये दोनों ओलंपिक खेल नहीं थे। भारतीय ओलंपिक संघ के नियमों का हवाला देते हुए जज ने जोर देकर कहा कि संबंधित आदेश ने न केवल याचिकाकर्ता-एसोसिएशन को बल्कि मुंबई हॉकी एसोसिएशन भी रद्द की, क्योंकि महाराष्ट्र से केवल एक ही एसोसिएशन हो सकती है।

    जस्टिस कांत ने पूछा,

    "रिट कोर्ट ऐसा कैसे कर सकता है? यही हम जानना चाहते हैं..."

    इसके बाद जज ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि मामले को आंशिक न्यायालय कार्य दिवसों में सूचीबद्ध करने की क्या जल्दी थी।

    जस्टिस कांत ने कहा,

    "जून, 2024 का आदेश...आप मई में एसएलपी दाखिल कर रहे हैं। आप इसे छुट्टियों में सूचीबद्ध करवा रहे हैं। कृपया हमें बताएं कि 3-4 दिनों में इतनी बड़ी तात्कालिकता क्या पैदा हो गई है? आज सूचीबद्ध 70% मामले वे हैं, जो इन कार्य दिवसों से पहले या बाद में होने चाहिए थे। आप लोगों ने हमें पढ़ने के लिए पूरी रात बैठने पर मजबूर कर दिया है।"

    इस संबंध में याचिकाकर्ता के वकील ने जवाब दिया कि उन्होंने तात्कालिकता के आधार पर मामले को आंशिक न्यायालय कार्य दिवसों में सूचीबद्ध करने की मांग नहीं की।

    जस्टिस कांत द्वारा आदेश लिखे जाने से पहले जस्टिस दत्ता ने अभिलेखों में एक विशिष्ट पृष्ठ की ओर इशारा करते हुए यह भी सवाल किया कि क्या याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष हलफनामा दाखिल करके इस पहलू का विरोध किया था।

    जब याचिकाकर्ता के वकील ने नकारात्मक उत्तर दिया तो जज ने कहा,

    "तो मामला यहीं खत्म हो गया...आपको हाईकोर्ट के समक्ष स्पष्टीकरण देना चाहिए, न कि पहली बार सुप्रीम कोर्ट के समक्ष।"

    अंततः, मामले को वापस ले लिया गया।

    केस टाइटल: विदर्भ हॉकी एसोसिएशन और अन्य बनाम हॉकी इंडिया और अन्य, डायरी नंबर 24236-2025

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