सुप्रीम कोर्ट ने 'शव के साथ यौन संबंध बनाना 'बलात्कार' अपराध की दलील खारिज की
Shahadat
5 Feb 2025 9:39 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि दंड कानून नेक्रोफीलिया को अपराध नहीं मानते, इसलिए वह हाईकोर्ट के आंशिक बरी करने के आदेश में हस्तक्षेप नहीं कर सकता, जिसमें आरोपी ने मृतक की हत्या करने के बाद उसके शव के साथ यौन संबंध बनाए थे।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ कर्नाटक हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोपी को मृत शरीर के साथ यौन संबंध बनाने के लिए बलात्कार के आरोपों से बरी कर दिया गया, लेकिन हत्या के अपराध के तहत दोषसिद्धि बरकरार रखी। यहां राज्य सरकार ने वर्तमान एसएलपी दायर की।
कर्नाटक के एडिशनल एडवोकेट जनरल अमन पंवार ने राज्य की ओर से दलील दी कि धारा 375(सी) के तहत 'शरीर' शब्द को शव को भी शामिल करने के लिए पढ़ा जाना चाहिए। उन्होंने आगे बताया कि बलात्कार की परिभाषा के 7वें विवरण के तहत ऐसी स्थिति जहां महिला सहमति नहीं दे सकती, उसे बलात्कार माना जाएगा। इस प्रकार, यहां भी शव सहमति नहीं दे पाएगा।
चुनौती पर विचार करने से इनकार करते हुए खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि नेक्रोफीलिया आईपीसी के तहत अपराध नहीं है, और वह इसमें हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं है।
उल्लेखनीय है कि जस्टिस बी वीरप्पा और जस्टिस वेंकटेश नाइक टी की हाईकोर्ट की खंडपीठ ने माना कि महिला के शव पर यौन हमला भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत दंडनीय बलात्कार के अपराध को आकर्षित नहीं करेगा। इस प्रकार, इसने 21 वर्षीय लड़की की हत्या करने के बाद उसके शव पर यौन हमला करने के लिए बलात्कार के आरोपों से व्यक्ति को बरी किया।
खंडपीठ ने धारा 376 के तहत दोषी ठहराए जाने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को आंशिक रूप से पलट दिया और तर्क दिया,
"भारतीय दंड संहिता की धारा 375 और 377 के प्रावधानों को ध्यान से पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि मृत शरीर को मानव या व्यक्ति नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार, भारतीय दंड संहिता की धारा 375 या 377 के प्रावधान आकर्षित नहीं होंगे। इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत दंडनीय कोई अपराध नहीं है।"
नेक्रोफीलिया को दंडित करने के लिए हाईकोर्ट की सिफारिशें: हाईकोर्ट ने माना कि मृत शरीर पर संभोग नेक्रोफीलिया के अलावा कुछ नहीं है- शवों के प्रति कामुक आकर्षण। न्यायालय ने कहा कि नेक्रोफीलिया "मनोवैज्ञानिक विकार" है, जिसे DSM-IV (मानसिक विकारों का नैदानिक और सांख्यिकीय मैनुअल) 'पैराफिलिया' नामक विकारों के समूह में वर्गीकृत करता है, जिसमें पीडोफीलिया, प्रदर्शनवाद और यौन मर्दवाद शामिल हैं।
न्यायालय ने बलात्कार के अपराध के लिए आरोपी को बरी कर दिया, लेकिन साथ ही संसद द्वारा नेक्रोफीलिया को दंडित करने के लिए कानून बनाने की आवश्यकता पर भी गौर किया।
न्यायालय ने कहा:
"हमारे संज्ञान में यह बात आई कि अधिकांश सरकारी और निजी अस्पतालों में शवों, विशेषकर युवा महिलाओं के शवों को शवगृह में रखने वाले परिचारक द्वारा शव के साथ यौन संबंध बनाए जाते हैं। इसलिए राज्य सरकार के लिए यह सुनिश्चित करने का समय आ गया है कि ऐसा अपराध न हो, जिससे महिला के शव की गरिमा बनी रहे। दुर्भाग्य से भारत में महिला के शव के सम्मान और अधिकारों की रक्षा तथा उसके विरुद्ध अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों सहित कोई विशिष्ट कानून नहीं बनाया गया। यह सही समय है कि केंद्र सरकार मृत व्यक्ति/महिला के सम्मान के अधिकार को बनाए रखने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के प्रावधानों में संशोधन करे, जिसमें किसी भी पुरुष, महिला या पशु के मृत शरीर को शामिल किया जाना चाहिए या मृत महिला के विरुद्ध अपराध के रूप में नेक्रोफीलिया या सैडिज्म के रूप में अलग प्रावधान पेश किया जाना चाहिए, जैसा कि यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका में किया गया, जिससे महिला सहित मृत व्यक्ति की गरिमा सुनिश्चित की जा सके।"
केस टाइटल: कर्नाटक राज्य बनाम रंगराजू @ वाजपेई | एसएलपी (सीआरएल) नंबर 005403 - / 2024