सुप्रीम कोर्ट ने शाहदरा में एक संपत्ति पर दिल्ली वक्फ बोर्ड का दावा खारिज किया, मौके पर गुरुद्वारा होने का उल्लेख किया
Shahadat
4 Jun 2025 5:12 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने शाहदरा में एक संपत्ति पर दिल्ली वक्फ बोर्ड के दावे को "वक्फ संपत्ति" के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया, यह देखते हुए कि उस स्थान पर एक गुरुद्वारा मौजूद है।
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की।
न्यायालय वक्फ बोर्ड द्वारा 2010 के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने पर विचार कर रहा था, जिसके तहत प्रतिवादी की अपील को स्वीकार कर लिया गया था और संपत्ति पर दावा करने वाले वक्फ बोर्ड के मुकदमे को खारिज कर दिया गया था।
संक्षेप में कहें तो यह विवाद 1980 के दशक का है, जब दिल्ली वक्फ बोर्ड ने प्रतिवादी-हीरा सिंह (अब मृतक) के खिलाफ शाहदरा के ओल्डनपुर गांव में एक मस्जिद - संपत्ति पर कब्जे के लिए मुकदमा दायर किया था। इसने दावा किया कि संपत्ति वक्फ संपत्ति थी और अनादि काल से इसका उपयोग इसी रूप में किया जा रहा था।
प्रतिवादी ने इस मुकदमे को समय-सीमा समाप्त बताते हुए दावा किया कि संपत्ति उसके मालिक मोहम्मद अहसान ने 1953 में उसे बेची थी। उन्होंने यह भी कहा कि संपत्ति का उपयोग गुरुद्वारा के रूप में किया जा रहा था, जिसका प्रबंधन गुरुद्वारा प्रबंध समिति द्वारा किया जाता था। बोर्ड द्वारा दायर दो पहले के मुकदमों को 23.1.1970 और 22.8.1978 को वापस ले लिया गया था, प्रतिवादी ने ट्रायल कोर्ट को आगे बताया।
अंततः ट्रायल कोर्ट ने वक्फ बोर्ड के पक्ष में फैसला सुनाया और मुकदमे को खारिज कर दिया। प्रथम अपीलीय न्यायालय ने 1989 में अपने निष्कर्षों का समर्थन किया। जब प्रतिवादी ने हाईकोर्ट के समक्ष दूसरी अपील की तो मुकदमा खारिज कर दिया गया, यह देखते हुए कि बोर्ड यह साबित करने में विफल रहा कि संपत्ति वक्फ संपत्ति थी।
हाईकोर्ट ने कहा,
"न तो वाद-पत्र की संपत्ति का वक्फ संपत्ति के रूप में अनादि काल से स्थायी समर्पण/उपयोग साबित हुआ है और न ही दस्तावेजी साक्ष्य उसके पक्ष में हैं। प्रतिवादी ने स्वीकार किया कि वह 1947-48 से इस संपत्ति पर कब्जा कर रहा था।"
इस आदेश से व्यथित होकर बोर्ड ने 2012 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
केस टाइटल: दिल्ली वक्फ बोर्ड बनाम हीरा सिंह (डी) टीआर.एलआर. अमरजीत सिंह, सी.ए. नंबर 2985/2012

