सुप्रीम कोर्ट का AIMIM पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार

Shahadat

15 July 2025 12:43 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट का AIMIM पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (15 जुलाई) को ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) का राजनीतिक दल के रूप में रजिस्ट्रेशन रद्द करने की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। हालांकि, अदालत ने याचिकाकर्ता को धार्मिक उद्देश्यों वाले राजनीतिक दलों की वैधता से संबंधित व्यापक मुद्दों को उठाते हुए नई रिट याचिका दायर करने की अनुमति दी।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार किया, जिसमें जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत AIMIM के राजनीतिक दल के रूप में रजिस्ट्रेशन के खिलाफ याचिका खारिज कर दी गई थी।

    खंडपीठ द्वारा मामले पर विचार करने में अनिच्छा के बाद याचिकाकर्ता ने विशेष अनुमति याचिका वापस लेने का फैसला किया। हालांकि, खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को चुनाव कानूनों में सुधारों से संबंधित व्यापक मुद्दों को उठाते हुए एक नई रिट याचिका दायर करने की अनुमति दी।

    खंडपीठ ने आदेश में निम्नलिखित दर्ज किया:

    "याचिकाकर्ता के वकील वर्तमान याचिका को वापस लेने की अनुमति चाहते हैं। उन्हें एक रिट याचिका दायर करने की स्वतंत्रता है, जिसमें वे विभिन्न आधारों पर राजनीतिक दलों के संबंध में सुधारों की प्रार्थना करना चाहते हैं। अनुमति प्रदान की जाती है।"

    यह चुनौती तिरुपति नरसिम्हा मुरारी नामक व्यक्ति ने दी थी, जिन्होंने आरोप लगाया कि AIMIM का घोषित उद्देश्य केवल मुस्लिम समुदाय की सेवा करना है। इसलिए धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने के कारण इसे राजनीतिक दल के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती।

    याचिकाकर्ता के एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने तर्क दिया कि AIMIM का संविधान धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। इसलिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29ए के अनुसार उन्हें एक दल के रूप में रजिस्टर्ड नहीं किया जा सकता।

    हालांकि, जस्टिस कांत ने कहा कि उनके संविधान के अनुसार, उनका उद्देश्य प्रत्येक पिछड़े वर्ग के लिए काम करना है।

    जस्टिस कांत ने कहा,

    "यह समाज के हर पिछड़े वर्ग के लिए है, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से... यही पार्टी का संविधान कहता है... संविधान में अल्पसंख्यकों को कुछ अधिकारों की गारंटी दी गई... पार्टी घोषणापत्र में कहा गया है कि वह उन अधिकारों की रक्षा के लिए काम करेगी..."

    जैन ने जवाब दिया,

    "इसमें यह भी कहा गया कि यह मुसलमानों में इस्लामी शिक्षा को बढ़ावा देगा... भेदभाव यह है कि आज अगर मैं चुनाव आयोग के सामने जाकर हिंदू नाम से रजिस्ट्रेशन के लिए कहूं और कहूं कि मैं वेद पढ़ाना चाहता हूं तो मेरा रजिस्ट्रेशन नहीं होगा।"

    जस्टिस कांत ने कहा,

    "अगर चुनाव आयोग वेदों या किसी भी चीज़ की शिक्षा पर आपत्ति उठाता है तो कृपया उचित मंच पर जाएं। कानून उसका ध्यान रखेगा। पुराने ग्रंथों, पुस्तकों या साहित्य को पढ़ने में कोई बुराई नहीं है। कानून के तहत बिल्कुल भी कोई प्रतिबंध नहीं है।"

    जस्टिस कांत ने इस बात की ओर इशारा करते हुए कि संविधान ने स्वयं अल्पसंख्यकों को विशेष रूप से सुरक्षा प्रदान की है, कहा कि अल्पसंख्यकों के हितों के लिए काम करने की घोषणा आपत्तिजनक नहीं हो सकती है।

    जस्टिस कांत ने कहा,

    "मान लीजिए कोई पार्टी कहती है कि हम अस्पृश्यता को बढ़ावा देंगे तो उस पर प्रतिबंध लगना चाहिए। अगर कोई राजनीतिक दल कहता है कि हम संविधान के तहत संरक्षित विषयों को ही पढ़ाएंगे, जो संविधान के दायरे में ही हैं [तो यह आपत्तिजनक नहीं हो सकता]।"

    जैन ने फिर पूछा कि एक राजनीतिक दल को यह घोषणा क्यों करनी चाहिए कि वह केवल मुसलमानों के लिए काम करेगा, सभी के लिए नहीं। उन्होंने अभिराम सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि किसी भी धर्म के नाम पर वोट मांगना, चाहे वह उम्मीदवार का हो या मतदाता का भ्रष्ट आचरण है। उन्होंने तर्क दिया कि उक्त फैसले की भावना के अनुसार, AIMIM का पंजीकरण अवैध है। उन्होंने आगे कहा कि धार्मिक नाम वाले राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए पहले भी सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट के पास भेज दिया था।

    जैन ने तर्क दिया कि एक कानूनी शून्यता है, जिसका कई दल फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123(3) के अनुसार चुनाव में धर्म के नाम पर वोट मांगना एक भ्रष्ट आचरण है, इसलिए धार्मिक उद्देश्यों वाली किसी पार्टी को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    जस्टिस कांत ने इस बात पर सहमति जताई कि इसमें एक "अस्पष्ट क्षेत्र" है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता इन बड़े मुद्दों को किसी अन्य रिट याचिका में उठा सकता है।

    जस्टिस कांत ने याचिकाकर्ता को वर्तमान मामला वापस लेने की सलाह देते हुए कहा,

    "आप सही हो सकते हैं, इसमें कुछ अस्पष्ट क्षेत्र है... ऐसी याचिका दायर करें, जिसमें किसी व्यक्ति विशेष का नाम न हो... या सभी पर आरोप लगाए गए हों। कुछ दल ऐसे हैं जो जातिगत भावनाओं पर निर्भर हैं, यह भी उतना ही खतरनाक है। व्यापक परिप्रेक्ष्य सुधारों का है... किसी भी दल को शामिल किए बिना आप सामान्य मुद्दे उठा सकते हैं... यदि आवश्यक हो तो न्यायालय ध्यान रखेगा..."।

    याचिका खारिज करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि AIMIM कानूनी आवश्यकता को पूरा करती है कि राजनीतिक दल के संवैधानिक दस्तावेजों में यह घोषित किया जाना चाहिए कि वह संविधान के साथ-साथ समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखता है।

    Case : TIRUPATI NARASHIMA MURARI Vs UNION OF INDIA | SLP(C) No. 15147/2025

    Next Story