सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति द्वारा नए संसद भवन का उद्घाटन करने के निर्देश की मांग वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया

Shahadat

26 May 2023 8:52 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति द्वारा नए संसद भवन का उद्घाटन करने के निर्देश की मांग वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने उस जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि नए संसद भवन का उद्घाटन भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाना चाहिए न कि भारत के प्रधानमंत्री द्वारा।

    जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की अवकाश खंडपीठ ने एडवोकेट सीआर जया सुकिन द्वारा दायर जनहित याचिका पर विचार करने के लिए अनिच्छा व्यक्त की, याचिकाकर्ता ने मामले को वापस ले लिया।

    खंडपीठ ने पूछा,

    "इसमें आपका क्या हित है?"

    याचिकाकर्ता ने कहा,

    "कार्यपालिका का प्रमुख राष्ट्रपति होता है... राष्ट्रपति मेरा अध्यक्ष होता है।"

    जस्टिस नरसिम्हा ने कहा,

    "हम नहीं समझते कि आप इस तरह की याचिकाओं के साथ क्यों आते हैं... हम अनुच्छेद 32 के तहत इस पर विचार करने में रुचि नहीं रखते हैं।"

    याचिकाकर्ता ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 79 का हवाला दिया, जो कहता है कि संसद में राष्ट्रपति और दोनों सदन शामिल हैं।

    जस्टिस माहेश्वरी ने पूछा,

    "अनुच्छेद 79 उद्घाटन से कैसे संबंधित है?"

    याचिकाकर्ता ने पार्टी-इन-पर्सन के रूप में उपस्थित हुए प्रस्तुत किया,

    "राष्ट्रपति संसद के प्रमुख हैं, उन्हें संसद भवन का उद्घाटन करना चाहिए। कार्यकारी प्रमुख ही एकमात्र प्रमुख है जिसे उद्घाटन करना चाहिए ..."।

    याचिकाकर्ता ने अनुच्छेद 87 का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि संसद सत्र की शुरुआत राष्ट्रपति के विशेष अभिभाषण से होती है।

    खंडपीठ ने आश्चर्य जताया कि यह प्रावधान नए भवन के उद्घाटन से कैसे संबंधित है।

    याचिकाकर्ता की दलीलों से अप्रसन्न खंडपीठ ने याचिका खारिज करने की कार्यवाही शुरू कर दी। इस स्तर पर, याचिकाकर्ता ने मामले को वापस लेने की अनुमति मांगी।

    भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि वह हाईकोर्ट में भी यही याचिका दायर करेगा। एसजी ने कहा कि अदालत को निर्णायक रूप से यह कहना चाहिए कि ये मामले न्यायसंगत नहीं हैं।

    हालांकि, याचिकाकर्ता ने कहा कि उसकी हाईकोर्ट जाने की कोई योजना नहीं है। वह इसलिए हट रहा है जिससे बर्खास्तगी "कार्यपालिका के लिए प्रमाण पत्र" न बन जाए।

    खंडपीठ ने आदेश में दर्ज किया कि याचिकाकर्ता ने कुछ देर तक बहस करने के बाद याचिका वापस लेने का फैसला किया, क्योंकि अदालत इस मामले पर विचार करने की इच्छुक नहीं थी।

    मामले की पृष्ठभूमि

    एडवोकेट सीआर जया सुकिन द्वारा पार्टी-इन-पर्सन के रूप में दायर याचिका में लोकसभा सचिवालय को कोई "निर्देश, अवलोकन या सुझाव" देने की मांग की गई कि उद्घाटन राष्ट्रपति द्वारा किया जाना चाहिए।

    याचिकाकर्ता ने 18 मई को लोकसभा महासचिव द्वारा जारी एक बयान का हवाला दिया, जिसके अनुसार नए संसद भवन का उद्घाटन 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया जाएगा। उनका कहना है कि लोकसभा सचिवालय ने राष्ट्रपति को आमंत्रित नहीं करके संविधान का उल्लंघन किया है।

    याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 79 का उल्लेख किया है, जो कहता है कि संसद राष्ट्रपति और दोनों सदनों से मिलकर बनती है। यह बताया गया कि राष्ट्रपति देश का पहला नागरिक, संसद सत्र बुलाने और सत्रावसान करने की शक्ति रखता है। यह राष्ट्रपति है, जो प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है और सभी कार्यकारी कार्य राष्ट्रपति के नाम पर किए जाते हैं। तर्क दिया गया कि राष्ट्रपति को समारोह में आमंत्रित नहीं करना अपमान और संविधान का उल्लंघन है।

    याचिकाकर्ता का तर्क है कि लोकसभा सचिवालय का बयान मनमाने तरीके से बिना उचित दिमाग लगाए जारी किया गया है।

    याचिका में कहा गया,

    "भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नए संसद भवन के उद्घाटन के लिए आमंत्रित नहीं किया जा रहा है। भारतीय राष्ट्रपति को कुछ शक्तियां प्राप्त हैं और वे कई प्रकार के औपचारिक कार्य करते हैं। राष्ट्रपति की शक्तियों में कार्यकारी, विधायी, न्यायपालिका, आपातकालीन और सैन्य शक्तियां शामिल हैं।"

    Next Story