"आप अपनी भाषा देखो" : सुप्रीम कोर्ट ने वकील के खिलाफ मानहानिकारक लेख छापने वाले पत्रकार को राहत देने से इनकार किया

LiveLaw News Network

17 Dec 2021 10:52 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक वकील के खिलाफ मानहानि वाले लेख प्रकाशित करने के लिए 2015 में दोषी ठहराए गए पत्रकार को राहत देने से इनकार करते हुए पत्रकार के विवादित लेखों में उसके द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा के खिलाफ टिप्पणी की।

    न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की,

    "आप इस तरह की भाषा का उपयोग करते हैं और दावा करते हैं कि आप पत्रकार हैं?"

    जस्टिस कोहली ने कहा,

    "अपनी भाषा देखो।"

    न्यायमूर्ति कांत ने कहा,

    "यह पूरी तरह से पीत पत्रकारिता है।"

    सीजेआई रमना ने कहा,

    "वे बहुत उदार थे जिन्होंने केवल एक महीने की सजा दी। वह इससे अधिक का हकदार है।"

    मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के दोषसिद्धि के आदेश को बरकरार रखने के आदेश के खिलाफ पत्रकार द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।

    हाईकोर्ट ने आक्षेपित आदेश में 2009 में ट्रायल कोर्ट का दोषसिद्धि का आदेश बरकरार रखा था और 2015 में इसे अपीलीय न्यायालय ने भी बरकरार रखा था।

    हालांकि हाईकोर्ट ने सजा में संशोधन करते हुए उन्हें एक महीने के साधारण कारावास और 50,000 रुपये के जुर्माने का भुगतान करने का निर्देश दिया था। इसके अलावा 50,000 रुपये का जुर्माना, 40,000 रुपये की राशि शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में भुगतान करने और शेष 10,000 रुपये राज्य को प्रेषित करने का निर्देश दिया गया था।

    वर्तमान मामले में आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 501 के तहत दंडनीय अपराध के लिए एक निजी शिकायत की गई थी। शिकायत में आरोप लगाया गया था कि आरोपी जो कन्नड़ साप्ताहिक समाचार पत्र 'तुंगा वर्थे' के संपादक, मुद्रक और प्रकाशक हैं, उन्होंने अपने समाचार पत्र में शिकायतकर्ता के खिलाफ निराधार आरोप लगाते हुए उसे बदनाम करने और उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से कई समाचार लेख प्रकाशित किए थे। .

    हाईकोर्ट ने नोट किया था कि याचिकाकर्ता ने बार-बार ऐसे आलेख छापे और शिकायतकर्ता के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया जो एक वकील और नोटरी है।

    आदेश में कहा गया कि,

    "रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री से यह भी पता चलता है कि आरोपी को पहले भी इसी तरह के अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था, लेकिन उसने ऐसे लेख प्रकाशित करना जारी रखा जो मानहानिकारक हैं।"

    हाईकोर्ट ने कहा था कि जब प्रकाशित लेख में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा अत्यधिक आपत्तिजनक है और स्पष्ट रूप से किसी व्यक्ति के चरित्र हनन के बराबर है। आरोपी ने आपत्तिजनक भाषा इस्तेमाल की और वह केवल यह दलील देकर बच नहीं सकता कि उक्त प्रकाशन नेकनीयती से किया गया है।

    खंडपीठ ने यह भी देखा था कि आईपीसी की धारा 499 के तहत अपवादों का लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से आरोपी को यह साबित करना आवश्यक है कि प्रकाशन में आरोप जनता की भलाई और बिना किसी दुर्भावना के लगाए गए थे और उसका इरादा वकील को बदनाम करने का नहीं था।

    केस शीर्षक: डी.एस. विश्वनाथ शेट्टी बनाम टीएन रत्नाराज

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