सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्ट्रोरल बॉन्ड मामला संविधान पीठ को भेजा
Shahadat
16 Oct 2023 1:22 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गुमनाम इलेक्ट्रोरल बॉन्ड स्कीम (चुनावी बॉन्ड योजना) को चुनौती देने वाली याचिकाओं को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेज दिया।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाया,
"उठाए गए मुद्दे के महत्व को देखते हुए और भारत के संविधान के अनुच्छेद 145 (4) के संबंध में मामले को कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष रखा जाना चाहिए।"
सीजेआई ने कहा कि इस मामले को 30 अक्टूबर को संविधान पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।
इस मामले में गुमनाम चुनावी बांड योजना का मार्ग प्रशस्त करने वाले वित्त अधिनियम 2017 द्वारा पेश किए गए संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं का समूह शामिल है। पिछले हफ्ते, सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 3-न्यायाधीशों की पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए सहमत हो गई थी। उक्त याचिकाएं 2017 में दायर की गई थीं। याचिकाकर्ताओं ने आग्रह किया कि इस मामले की सुनवाई आगामी आम चुनावों से पहले की जाए।
वित्त अधिनियम 2017 ने इलेक्ट्रोरल बॉन्ड के लिए रास्ता बनाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, कंपनी अधिनियम, आयकर अधिनियम, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम में संशोधन पेश किए।
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 (आरपीए) की धारा 29 सी में किए गए 2017 के संशोधन के आधार पर दानकर्ता भुगतान के इलेक्ट्रॉनिक तरीकों का उपयोग करके और केवाईसी (अपने क्लाइंट को जानें) आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद निर्दिष्ट बैंकों और शाखाओं में चुनावी बांड खरीद सकता है। हालांकि, राजनीतिक दलों को भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) को इन बांडों के स्रोत का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है।
बॉन्ड को 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये या 1 करोड़ रुपये के गुणकों में किसी भी मूल्य पर खरीदा जा सकता है। बॉन्ड में दानकर्ता का नाम नहीं होगा। बॉन्ड जारी होने की तारीख से 15 दिनों के लिए वैध होगा, जिसके भीतर भुगतानकर्ता-राजनीतिक दल को इसे भुनाना होगा। आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 13ए के तहत आयकर से छूट के उद्देश्य से बॉन्ड के अंकित मूल्य को एक पात्र राजनीतिक दल द्वारा प्राप्त स्वैच्छिक योगदान के माध्यम से आय के रूप में गिना जाएगा।
याचिकाएं राजनीतिक दल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज़ और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा दायर की गई हैं, जो इस योजना को "एक अस्पष्ट फंडिंग सिस्टम, जो किसी भी प्राधिकरण द्वारा अनियंत्रित है" के रूप में चुनौती देती है।
याचिकाकर्ताओं ने यह आशंका व्यक्त की कि कंपनी अधिनियम 2013 में संशोधन से "नीतिगत विचारों में राज्य के लोगों की जरूरतों और अधिकारों पर निजी कॉर्पोरेट हितों को प्राथमिकता मिलेगी।"
मार्च 2019 में भारत के चुनाव आयोग ने हलफनामा दायर किया था। इस हलफनामा में कहा गया था कि गुमनाम इलेक्ट्रोरल बॉन्ड योजना "प्रतिगामी कदम" है, क्योंकि इसका राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
2021 में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों से पहले इलेक्ट्रोरल बॉन्ड जारी करने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।