भारतीय क्षेत्र पर चीन के कब्जे के दावे पर राहुल गांधी से सुप्रीम कोर्ट नाराज, कहा- 'अगर आप सच्चे भारतीय हैं तो ऐसा नहीं कहते'
Shahadat
4 Aug 2025 1:00 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (4 अगस्त) को विपक्ष के नेता राहुल गांधी के खिलाफ आपराधिक मानहानि मामले की कार्यवाही पर रोक लगा दी। यह मामला 2020 में चीन के साथ गलवान घाटी में हुई झड़प के संदर्भ में भारतीय सेना के बारे में की गई उनकी टिप्पणियों से जुड़ा है।
हालांकि, राहुल गांधी को अंतरिम राहत दी गई थी, लेकिन सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने गांधी की टिप्पणियों पर असहमति जताते हुए मौखिक टिप्पणी की।
राहुल गांधी की ओर से सीनियर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने शुरुआत में कहा कि अगर कोई विपक्षी नेता मुद्दे नहीं उठा सकता तो यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति होगी।
सिंघवी ने कहा,
"अगर वह प्रेस में छपी ये बातें नहीं कह सकते तो वह विपक्ष के नेता नहीं हो सकते।"
जस्टिस दत्ता ने पूछा,
"आपको जो कुछ भी कहना है, संसद में क्यों नहीं कहते? आपको सोशल मीडिया पोस्ट में ऐसा क्यों कहना पड़ता है?"
गांधी की टिप्पणियों पर और असहमति जताते हुए जस्टिस दत्ता ने पूछा,
"डॉ. सिंघवी बताइए, आपको कैसे पता चला कि 2000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर चीनियों ने कब्ज़ा कर लिया है? क्या आप वहां थे? क्या आपके पास कोई विश्वसनीय सामग्री है? आप बिना किसी सबूत के ये बयान क्यों दे रहे हैं... अगर आप एक सच्चे भारतीय होते तो आप यह सब नहीं कहते।"
सिंघवी ने जवाब दिया,
"यह भी संभव है कि एक सच्चा भारतीय कहे कि हमारे 20 भारतीय सैनिकों को पीटा गया और मार डाला गया और यह चिंता का विषय है।"
जस्टिस दत्ता ने जवाब में पूछा,
"जब सीमा पार संघर्ष हो तो क्या दोनों पक्षों में हताहत होना असामान्य है?"
सिंघवी ने कहा कि गांधी केवल उचित जानकारी देने और सूचना के दमन पर चिंता जताने की बात कर रहे थे। लेकिन जस्टिस दत्ता ने कहा कि सवाल उठाने के लिए एक उचित मंच मौजूद है।
सिंघवी ने यह स्वीकार करते हुए कि याचिकाकर्ता अपनी टिप्पणियों को बेहतर ढंग से व्यक्त कर सकते थे, कहा कि यह शिकायत केवल सवाल उठाने के लिए उन्हें परेशान करने का एक प्रयास मात्र है, जो एक विपक्षी नेता का कर्तव्य है। उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 223 के अनुसार, किसी आपराधिक शिकायत का संज्ञान लेने से पहले अभियुक्त की पूर्व सुनवाई अनिवार्य है, जिसका इस मामले में पालन नहीं किया गया। हालांकि, जस्टिस दत्ता ने बताया कि BNSS की धारा 223 का यह बिंदु हाईकोर्ट के समक्ष नहीं उठाया गया था।
सिंघवी ने स्वीकार किया कि इस बिंदु को उठाने में चूक हुई। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट में चुनौती मुख्य रूप से शिकायतकर्ता के अधिकार क्षेत्र पर केंद्रित थी। सिंघवी ने हाईकोर्ट के इस तर्क पर सवाल उठाया कि शिकायतकर्ता, यद्यपि "पीड़ित व्यक्ति" नहीं है, फिर भी "अपमानित व्यक्ति" है।
अंततः खंडपीठ इस बिंदु पर विचार करने के लिए सहमत हो गई और इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली गांधी की विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया गया। तीन सप्ताह की अवधि के लिए अंतरिम रोक लगा दी गई।
सीनियर एडवोकेट गौरव भाटिया शिकायतकर्ता की ओर से कैविएट पर पेश हुए।
बता दें, 29 मई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गांधी की याचिका खारिज कर दी थी। गांधी ने मानहानि के मामले के साथ-साथ लखनऊ की एक सांसद-विधायक अदालत द्वारा फरवरी 2025 में पारित समन आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था।
हाईकोर्ट के जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में भारतीय सेना के प्रति अपमानजनक बयान देने की स्वतंत्रता शामिल नहीं है।
सीमा सड़क संगठन (BRO) के पूर्व निदेशक उदय शंकर श्रीवास्तव द्वारा दायर और वर्तमान में लखनऊ कोर्ट में लंबित मानहानि की शिकायत में कहा गया कि गांधी द्वारा कथित अपमानजनक टिप्पणी 16 दिसंबर, 2022 को उनकी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान की गई थी।
शिकायत में आगे कहा गया कि 9 दिसंबर, 2022 को भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच हुई झड़प से संबंधित गांधी की आपत्तिजनक टिप्पणियों ने भारतीय सेना की मानहानि की है।
यह विशेष रूप से आरोप लगाया गया कि गांधी ने बार-बार अत्यंत अपमानजनक ढंग से कहा कि चीनी सेना अरुणाचल प्रदेश में हमारे सैनिकों की 'पिटाई' कर रही है और भारतीय प्रेस इस संबंध में कोई प्रश्न नहीं पूछेगा।
लखनऊ कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देते हुए, जिसमें प्रथम दृष्टया यह पाया गया कि गांधी के बयान से भारतीय सेना, उससे जुड़े लोगों और उनके परिवार के सदस्यों का मनोबल गिरा है, गांधी ने हाईकोर्ट का रुख किया था।
Case Details: RAHUL GANDHI v STATE OF U.P. AND ANR|Diary No. 31445-2025

