सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय वायुसेना द्वारा मृतक अधिकारी की सौतेली माँ को पारिवारिक पेंशन देने से इनकार करने पर उठाया सवाल

Shahadat

28 April 2025 10:37 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय वायुसेना द्वारा मृतक अधिकारी की सौतेली माँ को पारिवारिक पेंशन देने से इनकार करने पर उठाया सवाल

    सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय वायुसेना से पूछा कि वह एक सौतेली माँ को पेंशन लाभ देने से क्यों इनकार कर रही है, जिसने मृतक अधिकारी-पुत्र को 6 वर्ष की आयु से पाला है।

    जस्टिस सूर्यकांत ने वायुसेना के वकील से पूछा,

    "मान लीजिए कि एक बच्चा पैदा होता है और कुछ दिनों या महीनों के भीतर दुर्भाग्य से माँ किसी जटिलता के कारण मर जाती है। पिता की शादी हो जाती है और एक सौतेली माँ होती है, जो बच्चे को स्तनपान कराने की उम्र से लेकर वायु सेना, नौसेना आदि का अधिकारी बनने तक, अगर उसने वास्तव में उस बच्चे की देखभाल की है, तो क्या वह माँ नहीं है?"

    इस मुद्दे पर विचार करने के लिए पक्षों को समय देते हुए जस्टिस कांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने मामले को स्थगित कर दिया।

    जस्टिस कांत ने वकीलों से कहा,

    "ऐसे तुलनात्मक कानून, नियम और विनियम खोजें, जहां इस तरह की परिभाषा है, न्यायालयों ने उनके अर्थ को कैसे व्यापक बनाया है, क्यों, सामाजिक कानून/कल्याण कानून क्या हैं? उनके मामले में उदार दृष्टिकोण की आवश्यकता कैसे है।"

    सुनवाई के दौरान, भारतीय वायुसेना के वकील ने पेंशन से इनकार करने को उचित ठहराया। उन्होंने यह तर्क दिया कि एक जैविक मां एक बच्चे को जन्म देती है और स्वाभाविक रूप से सौतेली मां से अलग होती है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि विनियमों (वायु सेना के लिए पेंशन विनियम 1961) के तहत अच्छी तरह से स्थापित मानदंड हैं कि कौन सभी पेंशन का दावा करने के पात्र हैं।

    यह देखते हुए कि विनियम संवैधानिक जनादेश नहीं हैं, जस्टिस कांत ने जवाब दिया,

    "यह भारत के संविधान में कुछ नहीं है। विनियम कुछ ऐसा है जिसे आपने तय किया है। विनियमन के पीछे तर्क क्या है? आप किस आधार पर तकनीकी रूप से सौतेली माँ को विशेष पेंशन या पारिवारिक पेंशन से वंचित करना चाहते हैं?"

    इसके बाद भारतीय वायुसेना के वकील ने आग्रह किया कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ निर्णय हैं, उदाहरण के लिए CrPC की धारा 125 के संदर्भ में, जिसमें कहा गया कि सौतेले बेटे से भरण-पोषण के उद्देश्य से "माँ" में सौतेली माँ शामिल नहीं है। इस दलील को खारिज करते हुए जस्टिस कांत ने कहा कि CrPC की धारा 125 "कुछ अलग है"।

    जज ने याचिकाकर्ता के वकील को आगे बताया कि पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के दो निर्णय इसी तरह के हैं, जिनमें से एक में "माँ" शब्द को व्यापक बनाया गया और कुछ लाभ दिए गए थे।

    वकीलों को तैयारी और बहस करने के लिए समय देते हुए खंडपीठ ने अंततः मामले को स्थगित कर दिया।

    संक्षेप में मामला

    बता दें कि मृतक जब 6 वर्ष का था, तब उसकी जैविक माँ की मृत्यु हो गई और उसके पिता ने अपीलकर्ता से विवाह कर लिया। तब से अपीलकर्ता ने उसकी देखभाल की। 2008 में वह बड़ा होकर वायुसेना शिविर में 'एयरमैन' के रूप में सेवा करने लगा। हालांकि, 30.04.2008 को मृतक की मृत्यु हो गई। मौत का कारण 'एल्युमिनियम फॉस्फाइड विषाक्तता' था, जिसे आंतरिक जांच के बाद 'आत्महत्या' करार दिया गया। 2010 में वायु सेना रिकॉर्ड कार्यालय ने 'विशेष पारिवारिक पेंशन' के लिए अपीलकर्ता के दावे को खारिज कर दिया। आय मानदंड के कारण उसे साधारण पारिवारिक पेंशन भी नहीं दी गई।

    व्यथित होकर अपीलकर्ता ने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण, कोच्चि का दरवाजा खटखटाया। हालांकि, न्यायाधिकरण ने यह कहते हुए उसका दावा खारिज कर दिया कि सौतेली माँ विशेष पारिवारिक पेंशन के लिए माँ नहीं है। साधारण फैमिली पेंशन के लिए उसके दावे को भी खारिज कर दिया गया। यह कहा गया कि माता-पिता की संयुक्त आय (लगभग 84,000 रुपये प्रति वर्ष) रक्षा मंत्रालय के 1998 के पत्र के तहत निर्धारित सीमा (लगभग 30,000 रुपये) से अधिक थी। अंततः, अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    केस टाइटल: जयश्री वाई जोगी बनाम भारत संघ और अन्य, डायरी नंबर 53874-2023

    Next Story