'अपराध वासना का नहीं, प्रेम का परिणाम': सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी और पीड़िता के बीच विवाह को ध्यान में रखते हुए POCSO Act के तहत दोषसिद्धि रद्द की
Shahadat
31 Oct 2025 10:14 AM IST

संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए एक दुर्लभ फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे व्यक्ति की दोषसिद्धि और सजा रद्द की, जिसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 366 और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) की धारा 6 के तहत दोषी पाया गया। यह फैसला पीड़िता से उसके बाद के विवाह और उनके स्थापित पारिवारिक जीवन को ध्यान में रखते हुए सुनाया गया।
अदालत ने अपीलकर्ता पर अपनी पत्नी और बच्चे को न छोड़ने और जीवन भर उनका सम्मानपूर्वक पालन-पोषण करने की शर्त भी लगाई। साथ ही चेतावनी दी कि इस शर्त का उल्लंघन गंभीर परिणामों को आमंत्रित कर सकता है।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने कहा कि यद्यपि अपीलकर्ता को एक जघन्य अपराध का दोषी ठहराया गया। फिर भी मामले के विशिष्ट तथ्यों को देखते हुए "व्यावहारिकता और सहानुभूति के संयोजन वाले एक संतुलित दृष्टिकोण" की आवश्यकता है। खासकर जब पीड़िता, जो अब उसकी पत्नी है, उन्होंने अपने नवजात शिशु के साथ उसके साथ शांतिपूर्वक रहने की इच्छा व्यक्त की।
पत्नी (पीड़िता) ने हलफनामा दायर कर अपने पति के साथ शांतिपूर्वक रहने की इच्छा व्यक्त की और उस पर अपनी निर्भरता बताई। इसके अलावा, तमिलनाडु राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (TNSLSA) ने पुष्टि की कि दंपति अपने नवजात शिशु के साथ खुशी-खुशी रह रहे हैं।
जस्टिस बेंजामिन कार्डोज़ो को उद्धृत करते हुए निर्णय की शुरुआत इस टिप्पणी से हुई कि "कानून का अंतिम उद्देश्य समाज का कल्याण है।" खंडपीठ ने विस्तार से बताया कि आपराधिक कानून समाज की सामूहिक अंतरात्मा की अभिव्यक्ति होने के साथ-साथ "व्यावहारिक वास्तविकताओं" और "न्याय द्वारा नियंत्रित करुणा" के अनुरूप भी लागू किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने टिप्पणी की,
"अपीलकर्ता द्वारा किए गए उस अपराध पर विचार करते हुए जो POCSO Act के तहत दंडनीय है, हमने पाया कि यह अपराध वासना का नहीं, बल्कि प्रेम का परिणाम है। आपराधिक कार्यवाही और अपीलकर्ता की कारावास की अवधि जारी रहने से इस पारिवारिक इकाई में केवल व्यवधान उत्पन्न होगा और पीड़िता, शिशु और समाज के ताने-बाने को अपूरणीय क्षति होगी। अपराध की पीड़िता ने स्वयं अपीलकर्ता के साथ, जिस पर वह निर्भर है, एक शांतिपूर्ण और स्थिर पारिवारिक जीवन जीने की इच्छा व्यक्त की है, बिना अपीलकर्ता के माथे पर अपराधी होने का अमिट कलंक लगाए।"
कोर्ट ने कहा,
"कानून के सबसे गंभीर अपराधियों को भी उचित मामलों में कोर्ट से करुणा द्वारा नियंत्रित न्याय मिलता है। यहाँ विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए व्यावहारिकता और सहानुभूति का संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है।"
इस बात पर ज़ोर देते हुए कि हर परिस्थिति में क़ानून के सख़्ती से लागू होने से न्याय नहीं मिलता, न्यायालय ने कहा,
"यह एक ऐसा मामला है, जहां क़ानून को न्याय के लिए झुकना होगा।"
तदनुसार, अपील स्वीकार कर ली गई और अपीलकर्ता को अपराध से मुक्त कर दिया गया, इस शर्त के साथ कि वह "अपनी पत्नी और बच्चे को नहीं छोड़ेगा और उन्हें जीवन भर सम्मानपूर्वक पालन-पोषण करेगा।"
इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी चेतावनी दी,
"यह आदेश हमारे सामने आई विशिष्ट परिस्थितियों को ध्यान में रखकर दिया गया है और इसे किसी अन्य मामले के लिए मिसाल नहीं माना जाएगा।"
एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट इस बात पर विचार कर रहा है कि क्या POCSO Act के तहत सहमति की आयु को घटाकर 16 वर्ष कर दिया जाना चाहिए ताकि किशोरों के बीच सहमति से बने प्रेम संबंधों को आपराधिक परिणामों से मुक्त रखा जा सके।
Cause Title: K. KIRUBAKARAN VS. STATE OF TAMIL NADU

