BREAKING| सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की योजना में मुख्यमंत्री स्टालिन के नाम के इस्तेमाल पर रोक लगाने वाला आदेश रद्द किया
Shahadat
6 Aug 2025 1:52 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (6 अगस्त) को मद्रास हाईकोर्ट द्वारा पारित अंतरिम आदेश रद्द कर दिया, जिसमें तमिलनाडु सरकार को कल्याणकारी कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए घोषित 'उंगलुदन स्टालिन' (आपका स्टालिन) योजना में मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के नाम का इस्तेमाल करने से रोक दिया गया था।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) पार्टी और तमिलनाडु सरकार द्वारा हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर यह निर्देश दिया। हाईकोर्ट के आदेश में सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के लिए जीवित व्यक्तियों, पूर्व मुख्यमंत्रियों, पार्टी नेताओं या राजनीतिक दलों के नाम और तस्वीरों के इस्तेमाल पर रोक लगाई गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अन्नाद्रमुक सांसद सी. वी. षणमुगम (हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता) के आचरण की आलोचना की, क्योंकि उन्होंने अपनी चुनौती में केवल तमिलनाडु सरकार की योजना का ही ज़िक्र किया, जबकि नेताओं के नाम पर ऐसी योजनाएं पूरे देश में आम हैं। न्यायालय ने द्रमुक के इस तर्क पर गौर किया कि अन्नाद्रमुक के कार्यकाल के दौरान नेताओं के नाम पर कई योजनाएँ चलाई गईं।
न्यायालय ने कहा,
"राजनीतिक नेताओं के नाम पर योजनाएं चलाना ऐसी परिघटना है, जो पूरे देश में देखी जाती है। जब ऐसी योजनाएं सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के नाम पर चलाई जाती हैं तो हम याचिकाकर्ता की केवल एक राजनीतिक दल और एक राजनीतिक नेता को चुनने की बेचैनी को नहीं समझते। अगर याचिकाकर्ता राजनीतिक धन के दुरुपयोग को लेकर इतना चिंतित है तो वह ऐसी सभी योजनाओं को चुनौती दे सकता है। हालांकि, केवल एक राजनीतिक नेता को चुनौती देना याचिकाकर्ता की मंशा को दर्शाता है।"
न्यायालय ने इस बात पर भी असहमति जताई कि याचिकाकर्ता भारत के चुनाव आयोग (ECI) को अपना आवेदन देने के तीन दिन के भीतर ही हाईकोर्ट पहुंच गया था। न्यायालय ने कहा कि रिट याचिका न केवल "कानूनी रूप से गलत"है, बल्कि "कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग" भी है।
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा,
"हमने बार-बार कहा कि राजनीतिक विवादों का निपटारा मतदाता सूची से पहले ही हो जाना चाहिए। इसके लिए अदालतों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।"
न्यायालय ने हाईकोर्ट में लंबित याचिका को अपने पास वापस ले लिया और 10 लाख रुपये के जुर्माने के साथ इसे खारिज कर दिया। यह जुर्माना एक सप्ताह के भीतर तमिलनाडु सरकार के पास जमा करने का निर्देश दिया गया। न्यायालय ने विशेष रूप से निर्देश दिया कि सरकार इस राशि का उपयोग वंचितों के कल्याण के लिए करे।
Case : DRAVIDA MUNNETRA KAZHAGAM Vs THIRU. C.VE. SHANMUGAM | SLP(C) No. 21487/2025

