सुप्रीम कोर्ट ने बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन और चिराग सेन के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला किया खारिज

Shahadat

29 July 2025 10:14 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन और चिराग सेन के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला किया खारिज

    सुप्रीम कोर्ट ने ओलंपियन बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन और चिराग सेन के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला खारिज कर दिया। उन पर जूनियर स्तर के टूर्नामेंटों में अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए कथित तौर पर उम्र संबंधी रिकॉर्ड में हेराफेरी करने का आरोप लगाया गया था।

    कोर्ट ने कहा कि लक्ष्य सेन और चिराग सेन के खिलाफ लगाए गए आरोप झूठे और निराधार हैं। इनका उद्देश्य स्पष्ट रूप से अपीलकर्ताओं की छवि खराब करना है।

    न्यायालय ने कहा,

    "अपीलकर्ता, विशेष रूप से अपीलकर्ता नंबर 1 और 3 राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और राष्ट्रमंडल खेलों तथा बीडब्ल्यूएफ अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में पदक सहित कई पुरस्कार अर्जित किए हैं। ऐसे व्यक्तियों, जिन्होंने बेदाग रिकॉर्ड बनाए रखा और निरंतर उत्कृष्टता के माध्यम से देश को गौरवान्वित किया, उनको प्रथम दृष्टया साक्ष्य के अभाव में आपराधिक मुकदमे की कठिन परीक्षा से गुजरने के लिए बाध्य करना न्याय के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं करेगा। ऐसी परिस्थितियों में आपराधिक कानून का सहारा लेना प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, जिसे यह न्यायालय बर्दाश्त नहीं कर सकता।"

    जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अरविंद कुमार की खंडपीठ ने यह देखते हुए सेन को राहत प्रदान की कि आरोपों में साक्ष्य की कमी है। साथ ही आपराधिक धोखाधड़ी के कानूनी तत्वों को पूरा करने में विफल रहे हैं और व्यक्तिगत प्रतिशोध से प्रेरित प्रतीत होते हैं।

    बता दें, लक्ष्य और चिराग, उनके माता-पिता और प्रकाश पादुकोण बैडमिंटन अकादमी के कोच यू. विमल कुमार के खिलाफ आयु-प्रतिबंधित बैडमिंटन टूर्नामेंटों में लाभ और चयन प्राप्त करने के उद्देश्य से जन्म रिकॉर्ड में हेराफेरी करने के आरोप में धारा 420, 468 और 471 के तहत FIR दर्ज की गई थी।

    यह शिकायत नागराजा एम.जी. नामक व्यक्ति ने की थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि अंडर-13 और अंडर-15 आयु वर्गों में अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए आयु रिकॉर्ड में हेराफेरी की गई।

    कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला खारिज करते हुए जस्टिस अरविंद कुमार द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि शिकायत में अपीलकर्ताओं के खिलाफ लगाए गए अपराधों के मूल तत्वों का खुलासा नहीं किया गया।

    न्यायालय ने कहा कि शिकायत का पूरा आधार एक अकेले दस्तावेज़, 1996 के जीपीएफ नामांकन फॉर्म पर आधारित है - जो न केवल प्रमाणीकरण से रहित है, बल्कि अपीलकर्ताओं के किसी भी धोखाधड़ी के इरादे या कृत्य को स्थापित करने में भी विफल रहता है। न्यायालय ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता ने बदले की भावना से यह शिकायत दर्ज कराई, क्योंकि उनकी बेटी को प्रकाश पादुकोण बैडमिंटन अकादमी में प्रवेश देने से मना कर दिया गया था।

    न्यायालय ने आगे कहा कि भारतीय खेल प्राधिकरण ने लक्ष्य और चिराग की उम्र का पता लगाने के लिए एम्स, दिल्ली में अस्थि परीक्षण और दंत परीक्षण कराने के बाद पहले ही मामला बंद कर दिया था।

    अदालत ने आगे कहा,

    "जहां तक भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 468 और 471 की प्रयोज्यता का प्रश्न है, शिकायत में इन अपराधों के लिए आवश्यक मूल तत्वों का खुलासा नहीं किया गया। ऐसा कोई आरोप नहीं है कि किसी भी अपीलकर्ता ने कोई दस्तावेज़ जाली या मनगढ़ंत बनाया हो, या उन्होंने जानबूझकर किसी जाली दस्तावेज़ को असली के रूप में इस्तेमाल किया हो। इसी प्रकार, ऐसा कोई दावा नहीं है कि किसी व्यक्ति या प्राधिकारी को किसी ऐसे कृत्य के परिणामस्वरूप बेईमानी से संपत्ति का त्याग करने या कोई लाभ प्रदान करने के लिए प्रेरित किया गया हो... अपीलकर्ताओं को किसी दोषपूर्ण कृत्य या इरादे से जोड़ने वाली किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सामग्री का अभाव इस निष्कर्ष को पुष्ट करता है कि आरोप, भले ही अपने उच्चतम स्तर पर लिए गए हों, उपरोक्त प्रावधानों के तहत आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए आवश्यक सीमा को पूरा नहीं करते हैं।"

    अदालत ने पेप्सी फूड्स लिमिटेड बनाम विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट, (1998) 5 एससीसी 749 का हवाला देते हुए दोहराया कि किसी आपराधिक कार्यवाही में किसी अभियुक्त को समन करना एक गंभीर मामला है और इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।

    अदालत ने आगे कहा,

    "वर्तमान मामला इस बात का उदाहरण है कि कैसे वैधता की आड़ में किसी अन्य उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग किया जा सकता है।"

    तदनुसार, अपील स्वीकार कर ली गई और लंबित आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी गई।

    Cause Title: CHIRAG SEN AND ANOTHER ETC. VERSUS STATE OF KARNATAKA AND ANOTHER

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