सुप्रीम कोर्ट ने विवाह का वादा तोड़ने के लिए व्यक्ति के माता-पिता के खिलाफ दायर 'धोखाधड़ी' का मामले खारिज किया
Shahadat
10 Feb 2025 9:21 AM

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में माता-पिता के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला (धारा 415 आईपीसी) खारिज कर दिया, जिसमें शिकायतकर्ता के बजाय अपने बेटे की शादी किसी दूसरी महिला से कराने का आरोप लगाया गया था।
शिकायतकर्ता की परिपक्वता और पृष्ठभूमि, जिसमें उसकी 29 वर्ष की आयु, पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री और पेशेवर अनुभव शामिल है, उसको देखते हुए कोर्ट को यह विश्वास करना मुश्किल लगा कि माता-पिता के आचरण ने उसे आसानी से प्रभावित किया होगा।
कोर्ट ने कहा कि माता-पिता के खिलाफ मुकदमा "कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग" होगा और इसे शुरू में ही रोक दिया जाना चाहिए।
कोर्ट ने अपीलकर्ता के बेटे के खिलाफ हाई कोर्ट की टिप्पणी को भी अस्वीकार कर दिया, जिसमें कहा गया कि उसके माता-पिता के खिलाफ मामला खारिज करने से वह विवाह योग्य आयु की महिलाओं का इसी तरह से शोषण कर सकेगा। न्यायिक निष्पक्षता पर जोर देते हुए न्यायालय ने दोहराया कि किसी तीसरे पक्ष के खिलाफ कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए, जो न तो कार्यवाही में मौजूद था और न ही विवादित निर्णय पारित होने से पहले उसे सुनने की अनुमति दी गई।
जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अपीलकर्ताओं के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला खारिज करने से इनकार कर दिया गया था। शिकायतकर्ता ने उन पर अपने बेटे से शादी करने का वादा तोड़ने का आरोप लगाया और बेटे और माता-पिता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 417 और 109 के तहत धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए आपराधिक मामला दर्ज कराया।
हाईकोर्ट ने यह कहते हुए मामला खारिज करने से इनकार किया,
“यदि इस याचिका को अनुमति दी जाती है तो याचिकाकर्ताओं का बेटा विवाह योग्य उम्र की महिलाओं को उसी तरह बिगाड़ देगा।”
हाईकोर्ट के फैसले से व्यथित होकर माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
अपीलकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि शिकायत में विवाह के वादे के बारे में उनके द्वारा उकसावे या गलत बयानी का कोई आरोप नहीं है, जो शिकायतकर्ता के अपने बेटे के साथ रिश्ते का आधार है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि ऐसा कोई आरोप नहीं था कि उन्होंने अपने बेटे की दूसरी शादी के लिए मजबूर किया या शिकायतकर्ता के साथ उसके रिश्ते के बारे में जानते थे।
प्रतिवादी ने तर्क दिया कि माता-पिता की भूमिका महत्वपूर्ण थी, क्योंकि रिश्ते की उनकी स्पष्ट स्वीकृति ने शिकायतकर्ता को प्रभावित किया। जब उनके बेटे ने दूसरी महिला से शादी कर ली तो उसे छोड़ दिया गया।
पक्षकारों की सुनवाई के बाद न्यायालय ने पाया कि शिकायत में अपीलकर्ताओं द्वारा किए गए किसी भी ऐसे कृत्य या आचरण का खुलासा नहीं किया गया, जिसे अवैध या आपराधिक माना जा सके। उनके खिलाफ आईपीसी, विशेष रूप से धारा 415 के तहत किसी भी अपराध का कोई तत्व नहीं बनाया गया। न्यायालय ने नोट किया कि शिकायत में आरोप ज्यादातर बेटे के खिलाफ थे। न्यायालय ने आगे निष्कर्ष निकाला कि माता-पिता को इस बात की जानकारी नहीं थी कि उनके बेटे और शिकायतकर्ता के बीच क्या हो रहा था।
न्यायालय ने धारा 415 को उद्धृत किया, जो धोखाधड़ी को परिभाषित करता है। इसने धोखाधड़ी या बेईमानी से प्रेरित करने और नुकसान पहुंचाने के इरादे की आवश्यकता पर जोर दिया। हालांकि, शिकायत में कोई भी तत्व स्थापित नहीं किया गया।
अदालत ने टिप्पणी की,
“हमें नहीं लगता कि अपीलकर्ताओं की ओर से ऐसा कोई कार्य या आचरण है, जिसे अपने आप में अवैध कहा जा सके और न ही आपराधिक प्रकृति का। आईपीसी के तहत किसी भी अपराध का कोई तत्व सामने नहीं आता। इस प्रकार, हम यह मानने में असमर्थ हैं कि आईपीसी की धारा 415 के दायरे में कोई भी अपराध तत्काल अपीलकर्ताओं के खिलाफ बनता है।”
इसके अलावा, अनु कुमार बनाम राज्य (यूटी प्रशासन) का हवाला देते हुए अदालत ने अपीलकर्ता के बेटे के खिलाफ दर्ज प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाने का निर्देश दिया, यह देखते हुए कि हाईकोर्ट ने उनके बेटे के खिलाफ ऐसी टिप्पणी पारित करने में गलती की, जो न तो हाईकोर्ट के समक्ष कार्यवाही में पक्ष था और न ही उसे अपना मामला पेश करने के लिए सुनवाई का उचित अवसर दिया गया।
तदनुसार, अपील को अनुमति दी गई।
केस टाइटल: मारिप्पन और अन्य बनाम राज्य का प्रतिनिधित्व पुलिस निरीक्षक द्वारा किया गया