बर्खास्तगी मामले में TTE को 37 साल बाद मिला न्याय, सुप्रीम कोर्ट का आदेश- कानूनी उत्तराधिकारियों को दिया जाए लाभ

Shahadat

28 Oct 2025 10:35 AM IST

  • बर्खास्तगी मामले में TTE को 37 साल बाद मिला न्याय, सुप्रीम कोर्ट का आदेश- कानूनी उत्तराधिकारियों को दिया जाए लाभ

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (27 अक्टूबर) को रेलवे यात्रा टिकट परीक्षक (TTE) की 37 साल पुरानी बर्खास्तगी यह कहते हुए रद्द कर दी कि अनुशासनात्मक निष्कर्ष विकृत और साक्ष्यों से समर्थित नहीं थे। लंबे मुकदमे के दौरान निधन हो चुके इस कर्मचारी के कानूनी उत्तराधिकारियों को अब सभी परिणामी लाभ दिए जाएंगे।

    जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें मृतक कर्मचारी के कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया गया और केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) के पूर्व के उस फैसले को बहाल कर दिया गया, जिसने बर्खास्तगी आदेश रद्द कर दिया था। न्यायालय ने रेलवे अधिकारियों की जांच प्रक्रिया और बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा बाद में उसे दी गई मंज़ूरी की कड़ी आलोचना की।

    आरोप लगाया गया कि मृतक कर्मचारी-अपीलकर्ता 31 मई, 1988 को दादर-नागपुर एक्सप्रेस में ड्यूटी पर था, जब सतर्कता दल ने उसकी अचानक जांच की। रेलवे सतर्कता दल ने उसके खिलाफ चार आरोप लगाए, जिनमें यात्रियों से अवैध रिश्वत मांगना, अतिरिक्त नकदी रखना, किराए का अंतर वसूल न करना और ड्यूटी पास में जालसाजी करना शामिल था। जांच अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर उसे 1996 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।

    हालांकि, CAT ने 2002 में अभियोजन पक्ष के मामले में गंभीर खामियों का हवाला देते हुए बर्खास्तगी खारिज की और अपनी जांच को विकृत और असंतुलित पाया। मृतक कर्मचारी को शिकायतकर्ता से क्रॉस एक्जामिनेशन करने का अवसर नहीं दिया गया और अन्य गवाहों ने भी अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया, जिससे निष्कर्ष विकृत साबित हुए।

    हाईकोर्ट द्वारा CAT के फैसले को पलटने से व्यथित होकर कर्मचारी ने 2019 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

    जस्टिस मिश्रा द्वारा लिखित निर्णय में CAT के सुविचारित आदेश में हस्तक्षेप करने के लिए हाईकोर्ट की आलोचना की गई, जिसमें कहा गया,

    "हाईकोर्ट इस कानूनी स्थिति पर ध्यान देने में विफल रहा है कि जब जांच अधिकारी के निष्कर्ष विकृत थे और जांच अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत सामग्री पूरी तरह से भ्रामक थी तो CAT द्वारा दंड के आदेश को रद्द करना पूरी तरह से उचित था।"

    CAT के आदेश का समर्थन करते हुए कोर्ट ने कहा,

    "अपीलकर्ता के विरुद्ध सभी आरोप निर्णायक रूप से सिद्ध नहीं हुए हैं और रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री के आधार पर CAT ने अपीलकर्ता के विरुद्ध सेवा से बर्खास्तगी के दंड में हस्तक्षेप करना उचित ही था।"

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "घटना 31 मई, 1988 को हुई, यानी 37 साल से भी ज़्यादा पहले। इस बीच दोषी कर्मचारी का निधन हो गया। इसलिए हाईकोर्ट का विवादित फैसला रद्द करते हुए और CAT का आदेश बहाल करते हुए हम निर्देश देते हैं कि पेंशन लाभ सहित सभी परिणामी मौद्रिक लाभ आज से तीन महीने की अवधि के भीतर अपीलकर्ताओं, जो मृतक कर्मचारी के कानूनी उत्तराधिकारी हैं, उनके पक्ष में जारी किए जाएं। तदनुसार आदेश दिया जाता है।"

    तदनुसार अपील स्वीकार की गई।

    Cause Title: V.M. SAUDAGAR (DEAD) THROUGH LEGAL HEIRS VERSUS THE DIVISIONAL COMMERCIAL MANAGER, CENTRAL RAILWAY & ANR.

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