छत्तीसगढ़ नान घोटाले में गुमनाम दाखिलों पर सुप्रीम कोर्ट हैरान; ED, आरोपी और राज्य ने दाखिल करने से किया इनकार
Shahadat
13 Feb 2025 4:28 AM

छत्तीसगढ़ नान घोटाले में आरोपियों की जमानत रद्द करने की ED की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पीठ के समक्ष सीलबंद लिफाफे में गुमनाम रूप से दाखिल कुछ 'गोपनीय नोटों' पर चिंता व्यक्त की।
कोर्ट ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को दोनों पक्षकारों के वकीलों के साथ निरीक्षण करने का निर्देश दिया।
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की खंडपीठ प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 2020 में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा पूर्व आईएएस अधिकारी अनिल टुटेजा सहित कुछ आरोपियों को दी गई अग्रिम जमानत को चुनौती दी गई।
आरोपियों पर नागरिक पूर्ति निगम (नान) के अधिकारियों द्वारा घटिया चावल की खरीद के लिए अवैध रूप से धन एकत्र करने में कथित संलिप्तता के लिए भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया, जिसके परिणामस्वरूप काफी अवैध कमाई हुई और व्यवस्थित रूप से जिलेवार संग्रह हुआ।
जस्टिस ओक ने कहा कि सीलबंद लिफाफे में कई दस्तावेज और एक 'गोपनीय नोट' प्राप्त हुआ, जिसमें विभिन्न रिकॉर्ड शामिल हैं।
जस्टिस ओक ने कहा,
"दस्तावेजों का पहला पृष्ठ देखें- हमें नहीं पता (किसने भेजा)। किसी को इस रहस्य को सुलझाना होगा।"
खंडपीठ ने ED की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू से पूछा कि क्या ये दस्तावेज उन्होंने दाखिल किए तो उन्होंने कहा,
"यह निश्चित रूप से हमारे द्वारा दाखिल नहीं किया गया।"
टुटेजा की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने भी स्पष्ट किया कि उनकी ओर से ऐसा कुछ भी दाखिल नहीं किया गया।
गुमनाम रूप से दाखिल किए गए दस्तावेजों में 19 सितंबर, 2022 का पिछला आदेश भी शामिल था, जिसमें छत्तीसगढ़ राज्य को वर्तमान मामले से संबंधित दस्तावेजों को सीलबंद लिफाफे में रखने और जजों के आवासीय अधिकारियों को प्रसारित करने की अनुमति दी गई।
आदेश में कहा गया:
"छत्तीसगढ़ राज्य की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता(ओं) द्वारा प्रस्तुत सामग्री पर विचार किया जाना है तो राज्य भी कुछ दस्तावेजों और सामग्री को सीलबंद लिफाफे में रखने के लिए इच्छुक होगा। इसलिए हम राज्य की ओर से पेश हुए वकील को ऐसे दस्तावेजों और सामग्री को सीलबंद लिफाफे में रखने की स्वतंत्रता देते हैं, जिन पर राज्य भरोसा करना चाहता है। दोनों सीलबंद लिफाफे पीठ का गठन करने वाले माननीय जजों के आवासीय कार्यालयों में परिचालित किए जाएंगे।"
खंडपीठ ने सुझाव दिया कि उपरोक्त आदेश पर विचार करते हुए इसे छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा दायर किया जा सकता है। हालांकि, राज्य सरकार की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी ने इनकार कर दिया। उन्होंने बताया कि गोपनीय दस्तावेज में कोई तारीख नहीं है, यह राज्य की फाइल में नहीं है और निश्चित रूप से इसे छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा भेजे जाने के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।
खंडपीठ ने गोपनीय नोट से जुड़े रिकॉर्ड की आपूर्ति की अनुमति दी, जबकि रजिस्ट्रार-न्यायिक को गोपनीय नोट की उत्पत्ति का निरीक्षण करने का निर्देश दिया। एडवोकेट्स ऑफ रिकॉर्ड (AOR) को भी नोट का निरीक्षण करने में न्यायालय के अधिकारियों के रूप में सहायता करने के लिए कहा गया।
निम्नलिखित टिप्पणी की गई:
"हमें लगता है कि दस्तावेजों के बारे में कुछ भी गोपनीय नहीं है, इसलिए प्रतिवादियों के वकीलों को उनकी प्रतियां प्रदान की जानी चाहिए। अब गोपनीय नोट है - जो संभवतः छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा दिनांक 19 सितंबर 2022 के आदेश के तहत दी गई स्वतंत्रता के संदर्भ में रिकॉर्ड पर दर्ज किया गया। इस गोपनीय नोट को सील किया जा सकता है, अन्य दस्तावेजों को सील नहीं किया जा सकता। हम रजिस्ट्रार न्यायिक को दोनों पक्षों के AOR के साथ गोपनीय नोट का निरीक्षण करने का निर्देश देते हैं। हम यह स्पष्ट करते हैं कि दोनों पक्षों के AOR न्यायालय के अधिकारी के रूप में नोटों का निरीक्षण करेंगे, न कि पक्षों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील के रूप में। इसका मतलब है कि वे नोट की सामग्री को किसी को भी न बताने के लिए बाध्य हैं। नोट के निरीक्षण के बाद हम उसकी आपूर्ति की गई प्रतियों के बारे में निर्णय लेंगे।"
रोहतगी ने यह भी बताया कि रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों (गोपनीय के रूप में चिह्नित नहीं) का निरीक्षण करने के लिए कोई निर्धारित प्रक्रिया नहीं है। इसे ध्यान में रखते हुए पीठ ने रजिस्ट्रार को अगली सुनवाई में यह बताने का निर्देश दिया कि क्या ऐसी कोई प्रक्रिया मौजूद है।
अब इस मामले की सुनवाई 28 फरवरी को होगी।
केस टाइटल- प्रवर्तन निदेशालय बनाम अनिल टुटेजा व अन्य।