कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के कारण BHELअधिकारी द्वारा आत्महत्या करने का मामला : सर्वोच्च न्यायालय ने 'असंवेदनशीलता' के लिए तेलंगाना सरकार की खिंचाई की

LiveLaw News Network

6 Dec 2020 11:19 AM GMT

  • कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के कारण BHELअधिकारी द्वारा आत्महत्या करने का मामला : सर्वोच्च न्यायालय ने असंवेदनशीलता के लिए तेलंगाना सरकार की खिंचाई की

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को तेलंगाना सरकार और तेलंगाना राज्य पुलिस को कड़ी फटकार लगाई है क्योंकि उन्होंने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के कारण बीएचईएल की एक कर्मचारी द्वारा पिछले साल आत्महत्या कर लेने के मामले में असंवेदनशील रवैया दिखाया है।

    न्यायमूर्ति ए एम खानविल्कर की पीठ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो वकील अलख आलोक श्रीवास्तव के माध्यम से पीड़िता की मां ने दायर की है और मामले की आपराधिक जांच को तत्काल स्थानांतरित करने की मांग की गई है।

    याचिका में कहा गया है कि हैदराबाद स्थित बीएचईएल में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के कारण उसकी युवा बेटी की मौत हो गई है। इसलिए इस मामले की जांच तेलंगाना राज्य पुलिस से लेकर सीबीआई या किसी अन्य स्वतंत्र केंद्रीय एजेंसी को दी जाए।

    याचिका में कहा गया है कि

    ''आठ महीने से अधिक की अवधि बीत जाने के बावजूद, तेलंगाना राज्य पुलिस ने इस मामले में चार्जशीट भी दायर नहीं की है। अपराध का मुख्य अभियुक्त तेलंगाना राज्य का मूल निवासी है, जबकि मृतका मध्य प्रदेश स्थित भोपाल से संबंधित एक हिंदी भाषी बोलने वाली बाहरी व्यक्ति थी। इसलिए, याचिकाकर्ता के मन में इस बात की प्रबल आशंका है कि तेलंगाना पुलिस के पास अभियुक्त के पक्ष में और मृतका के खिलाफ एक मजबूत भाषाई और क्षेत्रीय पूर्वाग्रह है।''

    पीठ में जस्टिस रवींद्र भट भी शामिल थे,पीठ ने कहा कि,

    ''हम इस मामले में स्थगन के लिए तेलंगाना राज्य के लिए वकील द्वारा किए गए अनुरोध को रद्द करते हैं। वकील ने चार सप्ताह की अवधि के लिए मामले की सुनवाई टालने की मांग की थी। राज्य को शर्मिंदगी से बचाने के लिए, हम उन कारणों को दर्ज नहीं कर रहे हैं,जो स्थगन के लिए बताए गए हैं। बताए गए कारण उस असंवेदनशीलता को इंगित कर रहे हैं, जिसके साथ इस मामले में जांच की जा रही है। फिलहाल हम कुछ अधिक नहीं कह रहे हैं।''

    पीठ ने निर्देश दिया कि गृह सचिव, तेलंगाना राज्य व्यक्तिगत रूप से इस पहलू को देखे और सभी संबंधितों को उचित दिशा-निर्देश जारी करें। वहीं रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया है कि इस आदेश की एक प्रति ई-मेल/ऑन-लाइन के माध्यम तेलंगाना राज्य के गृह सचिव को भेज दें ताकि आदेश का तुरंत अनुपालन किया जा सकें।

    प्रस्तुत किया गया है कि याचिकाकर्ता की मृत बेटी एक उज्ज्वल, युवा और बुद्धिमान फाइनेंस पेशेवर थी, जिसके पास बीकाॅम,आईसीडब्ल्यूए और एमबीए (फाइनेंस) की योग्यताएं थी। उसने 23 वर्ष की छोटी उम्र में जुलाई, 2009 में बीएचईएल ज्वाइन की थी और अपने कर्तव्यों के प्रति पूर्ण समर्पण के साथ अक्टूबर 2019 तक बीएचईएल में अपनी सेवाएं दी थी। बीएचईएल के साथ लंबे समय तक काम करने के दौरान उसके काम या उसके मानसिक व्यवहार को लेकर एक भी शिकायत कभी सामने नहीं आई थी। हालाँकि, उसके साथ छेड़छाड़,यौन उत्पीड़न, पीछा करना व मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया और हैदराबाद स्थित बीएचईएल में कार्यरत उसी के पर्यवेक्षक और कार्यालय सहयोगी ने उसके साथ बलात्कार का प्रयास किया, जिसके कारण उसने 17 अक्टूबर, 2019 को 33 वर्ष की कम उम्र में आत्महत्या कर ली।

    यह भी बताया गया कि,

    ''मृतक के 16 अक्टूबर, 2019 के सुसाइड नोट में और उसकी बहन के साथ उसी दिन की आखिरी टेलीफोनिक बातचीत ने स्पष्ट रूप से स्थापित किया है कि उसके पर्यवेक्षक और उसके कार्यालय के सहयोगियों ने उसका बहुत ज्यादा शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न किया था या उसके कारण बलात्कार करने का प्रयास किया था,जिस कारण वह आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो गई।''

    याचिका में कहा गया है कि सुसाइड नोट से, यह काफी हद तक स्वयंसिद्ध है कि याचिकाकर्ता की मृतक बेटी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि मुख्य आरोपी और अन्य सह-आरोपी व्यक्तियों द्वारा बलात्कार और बार-बार यौन उत्पीड़न का प्रयास किया गया,जिस कारण उसे आत्महत्या करने जैसा कदम उठाना पड़ा।

    हालाँकि, इसके बावजूद तेलंगाना राज्य पुलिस ने अभी तक मुख्य आरोपी या किसी अन्य आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया है और न ही किसी को हिरासत में लेकर पूछताछ की है। इसके विपरीत तेलंगाना पुलिस ने जून, 2020 की अपनी नवीनतम रिपोर्ट में आरोपी व्यक्तियों को क्लीन चिट दे दी है। आगे यह भी प्रस्तुत किया गया कि राष्ट्रीय महिला आयोग ने उक्त पुलिस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था

    याचिकाकर्ताओं की बेटी ने 17 अक्टूबर, 2019 को आत्महत्या कर ली थी और उसके मोबाइल फोन को पुलिस अधिकारियों ने उसी दिन जब्त कर लिया था। हालाँकि, उसके 40 दिनों के अंतराल के बाद पुलिस अधिकारियों ने पहली बार मृतका के मोबाइल फोन का अनलॉक पैटर्न मांगा था। सबूत का एक और महत्वपूर्ण टुकड़ा पीड़िता और उसकी बहन के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत की ऑडियो रिकॉर्डिंग है। बातचीत मुख्य रूप से हिंदी में थी। जबकि पुलिस ने 40 दिन बीत जाने के बाद ही उक्त टेलिफोनिक बातचीत के अंग्रेजी प्रतिलेख बनाने के लिए कहा था। 2 जून, 2020 को पुलिस की तरफ से दायर रिपोर्ट से पता चला है कि जांच अधिकारी ने आरोपी व्यक्तियों के मोबाइल फोन जब्त नहीं किए थे और न ही उनको जांच के लिए या डेटा की पुनर्प्राप्ति के लिए फोरेंसिक लैब में भेजा गया था। जबकि मृतका ने सुसाइड नोट में आरोपी व्यक्तियों के मोबाइल फोन की जांच करने के लिए अनुरोध किया था।

    यह भी दलील दी गई कि,

    ''तेलंगाना पुलिस ने एक और चैंकाने वाला प्रयास किया और मृतक की कथित मानसिक बीमारी को दुर्भाग्यपूर्ण आत्महत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया। जबकि उसके नियोक्ता बीएचईएल ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कार्यस्थल पर पीड़िता की मानसिक बीमारी संबंधी कोई संकेत नहीं देखा गया था। जांच पूरी होने से पहले ही पीड़िता को दोषी ठहराने और पीड़ित को शर्मसार करने वाली स्थानीय पुलिस के चैंकाने वाले रवैये ने याचिकाकर्ता के मन में एक दृढ़ और उचित आशंका पैदा कर दी है कि उसकी बेटी की आत्महत्या की निष्पक्ष जांच नहीं की जाएगी।''

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