सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए झुग्गी-झोपड़ियों को ढहाने वाले डिप्टी कलेक्टर को फटकार लगाई
Shahadat
22 April 2025 4:42 AM

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (21 अप्रैल) को आंध्र प्रदेश के डिप्टी कलेक्टर को फटकार लगाई। बता दें कि डिप्टी कलेक्टर ने तहसीलदार के तौर पर हाईकोर्ट के निर्देशों की अवहेलना की और गुंटूर जिले में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों की झोपड़ियों को जबरन हटा दिया, जिससे वे विस्थापित हो गए।
संदर्भ के लिए, याचिकाकर्ता-तहसीलदार को हाईकोर्ट ने अदालत की अवमानना का दोषी पाया और 2 महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई। उक्त आदेश को चुनौती देते हुए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की और आदेश दिया:
"सामान्य परिस्थितियों में हम वर्तमान एसएलपी पर विचार नहीं करते, क्योंकि याचिकाकर्ता ने 11.12.2013 के हाईकोर्ट के निर्देशों की अवहेलना करने का दुस्साहस किया था। हालांकि, एक उदार दृष्टिकोण अपनाते हुए, हम नोटिस जारी करने के लिए इच्छुक हैं, जो तब तक वापस किया जा सकता है...तब तक, [आदेश पर] रोक रहेगी।"
मौखिक रूप से, खंडपीठ ने संकेत दिया कि याचिकाकर्ता को जेल में समय बिताना होगा, अपने कार्यों के कारण पीड़ित सभी लोगों को भारी जुर्माने का भुगतान करना होगा और पदावनत होना होगा।
सुनवाई की शुरुआत में जस्टिस गवई ने जो कुछ हुआ, उससे नाखुशी व्यक्त करते हुए कहा कि अधिकारियों को यह नहीं सोचना चाहिए कि वे कानून से ऊपर हैं।
जस्टिस ने सीनियर वकील देवाशीष भारुका (याचिकाकर्ता-तहसीलदार की ओर से पेश हुए) से पूछा,
"हम उसे अभी हिरासत में लेंगे! कोई व्यक्ति हाईकोर्ट की गरिमा के साथ खेल रहा है। आप उसके आचरण को कैसे उचित ठहराते हैं?"
जवाब में भारुका ने माना कि याचिकाकर्ता का आचरण अक्षम्य है, लेकिन दया की प्रार्थना करते हुए आग्रह किया कि न्यायालय नरम रुख अपना सकता है।
जस्टिस गवई ने कहा,
"किस आधार पर दया? क्या उसे लगता है कि वह हाईकोर्ट से ऊपर है?"
जज ने न्यायालय में उपस्थित तहसीलदार से भी पूछा कि उसने हाईकोर्ट के विशिष्ट निर्देशों का पालन क्यों नहीं किया (कि वह झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों के कब्जे में खलल नहीं डालेगा)।
इस बिंदु पर भारुका ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि जब तहसीलदार द्वारा विषयगत कार्रवाई की गई, तब आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्य अशांत समय से गुजर रहे थे। यह प्रस्तुत किया गया कि रातों-रात साइट पर अतिक्रमण हो गया। ये वे संरचनाएं थीं, जिन्हें हटाया गया। नरम रुख की मांग करते हुए सीनियर वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता समझता है कि हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन न करना गलत था और उसने बताया कि उसके दो नाबालिग बच्चे हैं।
जस्टिस गवई ने जवाब में कहा,
"जब उन्होंने इतने सारे झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को बेघर किया था तो उन्हें उनके बारे में सोचना चाहिए था। उन लोगों के भी बच्चे थे..."
जज ने याचिकाकर्ता के वर्तमान डेजिग्नेशन के बारे में भी पूछा, जिस पर भारुका ने जवाब दिया कि वह अब डिप्टी कलेक्टर के रूप में सेवा कर रहे हैं। राज्य सरकार के साथ निदेशक (प्रोटोकॉल) के रूप में प्रतिनियुक्ति पर हैं।
केस टाइटल: टाटा मोहन राव बनाम एस. वेंकटेश्वरलु और अन्य, एसएलपी (सी) नंबर 10056-10057/2025