'आप अपने पैरों को खींच रहे हैं, ये नागरिकों के अधिकारों से संबंधित है ' : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय जांच एजेंसियों में सीसीटीवी ना लगाने पर केंद्र को फटकार लगाई

LiveLaw News Network

2 March 2021 8:30 AM GMT

  • आप अपने पैरों को खींच रहे हैं, ये नागरिकों के अधिकारों से संबंधित है  : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय जांच एजेंसियों में सीसीटीवी ना लगाने पर केंद्र को फटकार लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्रीय जांच एजेंसियों जैसे सीबीआई, एनआईए, एनसीबी आदि के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के संबंध में और समय मांगने पर केंद्र सरकार को फटकार लगाई।

    2 दिसंबर, 2020 को, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने हिरासत में यातना की घटनाओं की जांच करने के लिए देश भर के सभी पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के निर्देश जारी किए थे। केंद्र सरकार को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई), राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी), राजस्व निदेशालय (डीआरआई),सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) में भी CCTV लगाने का निर्देश दिया गया था।

    अनुपालन रिपोर्ट के लिए मामला मंगलवार को सूचीबद्ध किया गया था। इससे पहले, केंद्र सरकार ने एक पत्र प्रसारित कर स्थगन की मांग की थी।

    स्थगन की मांग करने वाले पत्र पर नाराजगी व्यक्त करते हुए न्यायमूर्ति नरीमन ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा,

    "हमें एक अलग धारणा मिल रही है कि आप अपने पैरों को खींच रहे हैं। आपने किस तरह का पत्र प्रसारित किया है?"

    सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया कि आदेश के 'प्रभाव' के संबंध में स्थगन की मांग की गई थी।

    न्यायमूर्ति नरीमन ने फिर से कहा,

    "क्या प्रभाव है? हम प्रभाव के बारे में चिंतित नहीं हैं। यह नागरिकों के अधिकारों की चिंता करता है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के अधिकारों की चिंता करता है। हम पत्र में दिए गए बहाने को स्वीकार नहीं कर रहे है।"

    इसके बाद सॉलिसिटर जनरल ने पीठ से स्थगन की मांग करने वाले पत्र की अनदेखी करने का अनुरोध किया।

    एसजी ने प्रस्तुत किया कि सीसीटीवी के लिए धन आवंटन राज्य सरकार द्वारा किया जाना है। तब न्यायमूर्ति नरीमन ने 2 दिसंबर, 2020 के आदेश के पैरा 19 पर एसजी का ध्यान आकर्षित किया, जिसके दो भाग थे - एक केंद्रीय निगरानी निकाय के गठन के बारे में था और दूसरा केंद्रीय एजेंसियों में सीसीटीवी स्थापना के बारे में था।

    न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा,

    "हम आज केंद्रीय निगरानी निकाय से चिंतित नहीं हैं। हम पैराग्राफ के दूसरे भाग से चिंतित हैं।"

    न्यायमूर्ति नरीमन ने एसजी से पूछा,

    "आप हमें बताएं कि धन आवंटित किया गया है।"

    एसजी ने अदालत के प्रश्न का जवाब देने के लिए एक हलफनामा दायर करने के लिए दस दिनों का समय मांगा।

    इसके बाद, पीठ ने निम्नलिखित आदेश पारित किया:

    "हमने सॉलिसिटर जनरल श्री तुषार मेहता को सुना। 2 दिसंबर 2020 के हमारे आदेश के पैराग्राफ 19 में दिए गए निर्देशों का अभी तक पालन नहीं किया गया है। हम संघ को निर्देश देते हैं कि 3 हफ्तों में एक हलफनामा दाखिल करें, जिसमें बताया जाए कि कितना वित्तीय खर्च आवश्यक है और समय रेखा जिसके भीतर वे पूर्वोक्त आदेश के पैरा 19 के दूसरे वाक्य में निहित निर्देशों को पूरा करने जा रहे हैं।

    पीठ ने कोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए राज्य सरकारों द्वारा मांगी गई समयरेखा के बारे में एमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे द्वारा प्रस्तुत चार्ट की भी जांच की।

    पीठ राज्य सरकारों के हलफनामों में दिए गए जवाब से खुश नहीं थी।

    पीठ ने राज्यों को निर्देश दिया कि अदालत के निर्देशों का पालन करने और उसके बाद चार महीने के भीतर सीसीटीवी लगाने के लिए आज से एक महीने के भीतर बजटीय आवंटन किया जाए। दूसरे शब्दों में, राज्यों को पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी लगाने के लिए आज से 5 महीने का समय दिया गया है। चुनाव होने के चलते पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु, असम और केंद्र शासित पुदुचेरी प्रदेश के लिए 31 दिसंबर, 2021 तक का समय दिया गया है।

    उत्तर प्रदेश राज्य को इसकी विशाल क्षेत्रीय सीमा और भारी संख्या में पुलिस थानों के संबंध में नौ महीने का समय (बजटीय आवंटन के लिए 3 महीने और कार्यान्वयन के लिए 6 महीने) दिया गया है। इसी तरह, मध्य प्रदेश राज्य को 8 महीने का समय (बजटीय आवंटन के लिए 2 महीने और कार्यान्वयन के लिए 6 महीने) दिया गया है। होली की छुट्टियों के बाद मामले पर विचार किया जाएगा।

    दरअसल परमवीर सिंह सैनी बनाम बलजीत सिंह मामले में न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की बेंच ने सीसीटीवी लगाने के निर्देश दिए थे।

    पीठ ने कहा,

    "इन एजेंसियों में से अधिकांश अपने कार्यालय (कार्यालयों) में पूछताछ करते हैं, सीसीटीवी अनिवार्य रूप से सभी कार्यालयों में स्थापित किए जाएंगे, जहां इस तरह के पूछताछ और आरोपियों की पकड़ उसी तरह से होती है जैसे कि एक पुलिस स्टेशन में होती है।"

    निर्देशों के अनुसार, यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसी पुलिस स्टेशन का कोई हिस्सा खुला न बचे, यह तय करना अनिवार्य है कि सभी प्रवेश और निकास बिंदुओं पर सीसीटीवी कैमरे लगे हों; थाने का मुख्य द्वार; सभी लॉक-अप; सभी गलियारे; लॉबी / रिसेप्शन क्षेत्र; सभी बरामदे / आउटहाउस, इंस्पेक्टर का कमरा; सब-इंस्पेक्टर का कमरा; लॉक-अप रूम के बाहर के क्षेत्र; स्टेशन हॉल; पुलिस स्टेशन परिसर के सामने; बाहर (अंदर नहीं) वॉशरूम / शौचालय; ड्यूटी ऑफिसर का कमरा; थाने का पिछला हिस्सा आदि।

    जिन सीसीटीवी सिस्टम को स्थापित किया जाना है, उन्हें नाइट विजन से लैस किया जाना चाहिए और इसमें आवश्यक रूप से ऑडियो के साथ-साथ वीडियो फुटेज भी होना चाहिए।

    न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि हिरासत में यातना के पीड़ितों को पुलिस एजेंसियों द्वारा पूछताछ के सीसीटीवी फुटेज की तलाश करने का अधिकार होगा।

    "किसी व्यक्ति को मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में राष्ट्रीय/ राज्य मानवाधिकार आयोग, मानवाधिकार न्यायालय या पुलिस अधीक्षक या किसी अन्य प्राधिकारी को शिकायत देने का अधिकार है जिसे अपराध का संज्ञान लेने का अधिकार है। आगे उल्लेख किया गया है कि सीसीटीवी फुटेज एक निश्चित न्यूनतम समय अवधि के लिए संरक्षित हो, जो छह महीने से कम नहीं हो, और पीड़ित को अपने मानवाधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में इसे संरक्षित रखने का अधिकार है। "

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