सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में "स्वतंत्र और निष्पक्ष" चुनाव के आयोजन के साथ-साथ विपक्षी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं को संरक्षण प्रदान करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी

LiveLaw News Network

26 Jan 2021 3:01 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के आयोजन के साथ-साथ विपक्षी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं को संरक्षण प्रदान करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पश्चिम बंगाल में इस साल होने वाले चुनावों में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए केंद्र, पश्चिम बंगाल सरकार और चुनाव आयोग के निर्देशों की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया।

    न्यायमूर्ति अशोक भूषण, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी की खंडपीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ता को "कानून के तहत उपलब्ध अन्य उपचार" लेने का निर्देश दिया।

    न्यायमूर्ति भूषण ने याचिकाकर्ता को आगे कहा कि,

    "यह अनुच्छेद 32 की याचिका है। तत्काल मामले में याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया गया था और न ही वह पश्चिम बंगाल से थी।"

    अधिवक्ता पुनीत कौर ढांडा की ओर से दायर एडवोकेट विनीत ढांडा की याचिका में भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसी) को निर्देश जारी करने की मांग की गई कि वह पश्चिम बंगाल राज्य में फर्जी मतदाताओं के संबंध में विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करे। इसके साथ ही चुनाव आयोग को भी निर्देश दे कि वह मतदाता सूची से "फर्जी मतदाताओं" को हटाने के लिए उचित कार्रवाई करे।

    आगे कहा गया कि हिंदुओं को वोट देने की अनुमति नहीं दी गई और फर्जी मतदाताओं द्वारा उनकी ओर से वोट डाले गए थे।

    याचिका में आगे कहा गया है कि,

    "मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तर दिनाजपुर, बीरभूम, दक्षिण 24 परगना, नादिया, हावड़ा, कोच बिहार, उत्तर 24 परगना, दक्षिण दिनाजपुर, कोलकाता जैसे जिलों में मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक है। इसलिए यहां पर जब भी हिंदू मतदाता वोट देने के लिए आते हैं तो मुस्लिम मतदाताओं द्वारा उनको बाधित किया जाता है।

    दलील में विपक्षी पार्टी के नेताओं के साथ-साथ कार्यकर्ताओं की हत्या का भी संदर्भ दिया गया और अनुरोध किया गया कि विपक्षी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं की मौतों के मामलों की विस्तृत जांच करने के लिए सीबीआई को निर्देश जारी किए जाए।

    दलील में कहा गया कि,

    "पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिक नेताओं की व्यवस्थित हत्याओं की घटनाएं हुई हैं। इनमें उन महिलओं की हत्याएं हुई हैं, जो विशेष रूप से भाजपा से संबंधित हैं और जो राजनीतिक दल से जुड़े नेता हैं। सत्तारूढ़ पार्टी टीएमसी (तृणमूल कांग्रेस) ने राजनीतिक दलों खासकर भाजपा और अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं के खिलाफ क्रूर हिंसा को रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया है। पश्चिम बंगाल राज्य के विभिन्न हिस्सों में ऐसी घटनाएं हुई हैं जहां सत्तारूढ़ दल के अलावा अन्य राजनीतिक नेताओं को निहित कारणों से शारीरिक हिंसा के साथ व्यवस्थित रूप से निशाना बनाया गया है और राज्य सरकार ने राजनीतिक नेताओं खासकर भाजपा के खिलाफ हिंसा पर चुप्पी साध रखी है। भाजपा ही एकमात्र ऐसी पार्टी है, जिसे मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल राज्य में उसकी बढ़ती लोकप्रियता के कारण सत्तारूढ़ दल द्वारा एक खतरे के रूप में देखा जा रहा है।"

    कोर्ट से प्रार्थना की गई कि,

    "पश्चिम बंगाल राज्य में विपक्षी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं की हत्या से जुड़े मामलों में अगर पश्चिम बंगाल के डीजीपी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष संतोषजनक नहीं पाई जाती है, तो एक विस्तृत जांच करने के लिए सीबीआई निदेशक को उचित रिट या निर्देश जारी किया जाए।"

    आगे कहा गया था कि पश्चिम बंगाल राज्य में मौलिक अधिकारों, वैधानिक अधिकारों और मानवाधिकारों के लगातार उल्लंघन के कारण यह क्षेत्र अति आक्रमकता की और बढ़ रहा है। राज्य सरकार और इसकी पुलिस मशीनरी इस तरह के उल्लंघन में शामिल थी। इसके साथ ही मौलिक, वैधानिक और मानवीय अधिकार उल्लंघन को रोकने के लिए राज्य पुलिस की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया। बल्कि ये राज्य सरकार और इसकी मशीनरी ही पश्चिम बंगाल राज्य में अधिकारों के ऐसे क्रूर उल्लंघन के लिए जिम्मेदार थी।

    जनहित याचिका में यह भी कहा गया था कि भारत सरकार विपक्षी दलों से संबंधित पार्टी कार्यकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने विशेष रूप से भाजपा से संबंधित लोगों के लिए विपक्षी पार्टी के नेताओं की हत्याओं की स्थिति के साथ-साथ कार्रवाई के संबंध में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करे।

    इसके अलावा प्रार्थना में यह भी कहा गया कि,

    "यदि पश्चिम बंगाल में भाजपा पार्टी अध्यक्ष पर हमले में वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा कर्तव्य की अवहेलना की जाती है, तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।सत्तारूढ़ पार्टी टीएमसी अपने प्रशासकों का उपयोग करके हत्यारों के खिलाफ कार्रवाई करने से रोक सकती है क्योंकि राज्य सरकार द्वारा राजनीतिक नेताओं की व्यवस्थित हत्याओं को रोकने में कोई गंभीरता नहीं दिखाई गई है। पुलिस प्रशासन सरकार के निर्देशों पर असहाय हो गया है। जिसके परिणामस्वरूप राज्य में विपक्षी राजनीतिक पार्टी के नेताओं की हत्याएं बढ़ रही हैं और राज्य सरकार राज्य में बढ़ती अराजकता पर कोई चिंता दिखा रही है।"

    याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि बंगाल में भाजपा नेता जेपी नड्डा और कैलाश विजयवर्गीय के वाहनों पर कथित हमलों को संदर्भित किया गया क्योंकि दोनों नेता दिसंबर 2020 में डायमंड हार्बर में 2021 में बंगाल चुनावों के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलने के लिए जा रहे थे।

    यह भी कहा गया कि जेपी नड्डा और विजयवर्गीय के काफिले 10 दिसंबर को डायमंड हार्बर की ओर जा रहे थे, प्रदर्शनकारी सड़कों पर इकट्ठा हो गए और नड्डा के काफिले को गुजरने से रोकने के लिए सड़क को अवरुद्ध करने का प्रयास किया।

    इस सब चीजों की को ध्यान में रखते हुए याचिका में बंगाल राज्य में स्वतंत्र, शांतिपूर्ण और सुरक्षित चुनाव के लिए दिशा-निर्देश देने की मांग की गई है।

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