सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के डिजिटल अरेस्ट घोटाले के मामलों को CBI को सौंपने का प्रस्ताव रखा
Shahadat
27 Oct 2025 1:12 PM IST

जाली अदालती आदेशों और पुलिस व न्यायिक अधिकारियों के छद्म रूप से किए गए डिजिटल अरेस्ट घोटालों से संबंधित एक स्वतः संज्ञान मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किए।
इससे पहले, न्यायालय ने हरियाणा के सीनियर सिटीजन दंपति, जो इसी तरह की एक साइबर धोखाधड़ी के शिकार हुए, उनसे एक पत्र प्राप्त होने के बाद मामले का स्वतः संज्ञान लिया था।
सुनवाई के दौरान, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने देश भर में इस तरह के घोटालों की बढ़ती घटनाओं पर गंभीर चिंता व्यक्त की और संकेत दिया कि जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंपी जा सकती है।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा,
"विभिन्न हिस्सों में एक से अधिक घटनाएं घटित हुई हैं। हम सभी राज्यों के संबंध में मामले को CBI को सौंपने के इच्छुक हैं, क्योंकि यह एक ऐसा अपराध है जो पूरे भारत में या सीमा पार भी संचालित हो सकता है।"
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने अदालत को बताया कि इन घोटालों के पीछे धन शोधन नेटवर्क अक्सर भारत के बाहर स्थित होते हैं।
उन्होंने कहा,
"हमारे क्षेत्र के बाहर म्यांमार और थाईलैंड सहित एशिया के कई हिस्सों में धन शोधन गिरोह मौजूद हैं।"
हरियाणा राज्य, जिसे पिछली बार नोटिस जारी किया गया था, उसने अदालत को बताया कि उन्हें हरियाणा के अंबाला में साइबर अपराध शाखा द्वारा दर्ज दो FIR को जांच के लिए CBI को सौंपे जाने पर कोई आपत्ति नहीं है।
भारत संघ की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि CBI पहले से ही कुछ ऐसे ही मामलों की जाँच कर रही है।
मेहता ने बताया,
"तीन मानवीय आधार हैं। कभी-कभी लोगों को रोज़गार का वादा करके विदेश ले जाया जाता है। वहां पहुंचने के बाद उन्हें बताया जाता है कि उन पर पैसा खर्च किया गया और उन्हें ऑनलाइन धन जुटाकर इसे वसूल करना होगा। उनके पासपोर्ट जब्त कर लिए जाते हैं और वे मानव दास बन जाते हैं।"
जस्टिस बागची ने म्यांमार से संचालित ऐसे साइबर घोटाला सिंडिकेट पर कार्रवाई की हालिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए इस घटना को एक "अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा" बताया।
जस्टिस सूर्यकांत ने केंद्र और CBI से ऐसे मामलों की बढ़ती संख्या से निपटने की उनकी क्षमता के बारे में जानकारी मांगी।
उन्होंने कहा,
"मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए हम जानना चाहते हैं कि अगर CBI को ट्रांसफर किया जाता है तो क्या उसके पास सभी मामलों से निपटने के लिए पर्याप्त मानव और तकनीकी संसाधन हैं।"
मेहता ने न्यायालय को आश्वासन दिया कि CBI को गृह मंत्रालय के साइबर अपराध प्रभाग द्वारा सहायता प्रदान की जा रही है, जिसके पास तकनीकी रूप से योग्य विशेषज्ञ हैं।
जस्टिस कांत ने आगे कहा कि यदि पुलिस के दायरे से बाहर विशेष साइबर अपराध विशेषज्ञों की आवश्यकता है तो एजेंसी आवश्यक सहायता के लिए न्यायालय को सुझाव दे सकती है।
सुनवाई समाप्त करते हुए खंडपीठ ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया और उन्हें निर्देश दिया कि वे इसी तरह के घोटालों के संबंध में अपने अधिकार क्षेत्र में दर्ज FIRs से न्यायालय को अवगत कराएं। जवाब मिलने के बाद मामले पर आगे सुनवाई की जाएगी।
Case title – In Re: Victims of Digital Arrest Related to Forged Documents

