सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ में रिहायशी इकाइयों को फ्लोर-वाइज अपार्टमेंट में बदलने पर रोक लगाई

Avanish Pathak

10 Jan 2023 5:10 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ में रिहायशी इकाइयों को फ्लोर-वाइज अपार्टमेंट में बदलने पर रोक लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ में एकल आवासीय इकाइयों को अपार्टमेंट में बदलने की प्रै‌क्टिस की आलोचना की है। कोर्ट ने भारत के पहले नियोजित शहर की विरासत और स्थिरता के सिद्धांत के मद्देनजर मौजूदा चलन पर तीखी टिप्पणी की है।

    यह देखते हुए कि यूनियन टेरटरी एडमिनिस्ट्रेशन ने विवादास्पद चंडीगढ़ अपार्टमेंट रूल्स, 2001 को निरस्त कर दिया चुका हे, जिसमें इस प्रैक्टिस को रेगुलराइज़ करने की मांग की गई थी, जस्टिस बीआर गवई और ज‌स्टिस एमएम सुंदरेश ने कहा, "प्रासंगिक अधिनियमों और नियमों के आलोक में और 2001 के नियमों के निरसन के मद्देनजर, चंडीगढ़ के पहले चरण में आवासीय इकाई का कोई भी विखंडन, विभाजन, द्विभाजन और अपार्टमेंटकरण निषिद्ध है।"

    2001 के नियमों की घोषणा के बाद, जिसने केंद्र शासित प्रदेश में आवासीय भूखंडों को अपार्टमेंट के रूप में निर्माण या उपयोग करने की अनुमति दी, चंडीगढ़ प्रशासन को इस आधार पर गंभीर सार्वजनिक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा कि इस तरह की प्रैक्टिस शहर के चरित्र को पूरी तरह से बदल देगी और मौजूदा बुनियादी ढांचे और सुविधाओंको खत्म कर देगी। नतीजतन, नियमों को अक्टूबर 2007 में एक अधिसूचना द्वारा निरस्त कर दिया गया था। हालांकि, अपीलकर्ता-एसोसिएशन ने दावा किया कि प्रशासन ने आवासीय इकाइयों को चुपके से अपार्टमेंट में परिवर्तित करने के लिए आंखें मूंद लीं, भले ही उक्त नियमों को वापस ले लिया गया हो।

    यह आरोप लगाया गया कि स्व-निहित इकाई के एक और उपखंड पर प्रतिबंध के बावजूद, बिल्डरों और डेवलपर्स ने नियमित रूप से तीन व्यक्तियों या परिवारों को पूरी आवासीय इकाइयों के अलग-अलग फ्लोर बेचे थे। तीन व्यक्ति या परिवार संयुक्त रूप से आवासीय इकाई के मालिक होंगे और अपने साझा स्वामित्व की शर्तों को विनियमित करने के लिए एक आंतरिक समझौता ज्ञापन में प्रवेश करेंगे।

    जब यह मामला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के सामने आया, तो एक खंडपीठ ने याचिका को खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि, "आवासीय भूखंड पर निर्मित आवासीय भवन को एकल परिवार के उपयोग के लिए सीमित नहीं किया जा सकता है जैसा कि याचिकाकर्ता -संगठन की ओर से की ओर से पेश करने की मांग की गई है। हमारे सामने रखा गया ऐसा प्रस्ताव नियमों के प्रावधानों के साथ-साथ चंडीगढ़ मास्टर प्लान 2031 से भी अलग होगा। हाईकोर्ट ने इस विवाद को भी खारिज कर दिया कि एक सह-मालिक द्वारा संयुक्त संपत्ति के एक विशिष्ट हिस्से या एक मंजिल पर कब्जा 'अपार्टमेंटलाइजेशन' के समान है। यह इस फैसले के खिलाफ था जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विशेष अनुमति के माध्यम से सफलतापूर्वक अपील की गई थी।

    रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन की अपील को स्वीकार करने और एकल आवासीय इकाइयों को अपार्टमेंट में बदलने पर रोक लगाने के अलावा, जस्टिस गवई की अगुवाई वाली बेंच ने चंडीगढ़ शहर, चंडीगढ़ के उत्तरी क्षेत्र, यानी कॉर्बूसियर के चंडीगढ़ को उसके वर्तमान स्वरूप में संरक्षित करने की दृष्टि से, चंडीगढ़ हेरिटेज कंजर्वेशन कमेटी (सीएचसीसी) को फेज I में री-डेंसिफिकेशन के मुद्दे पर विचार करने का भी निर्देश दिया।

    प्रशासन को चंडीगढ़ मास्टर प्लान (सीएमपी-2031) और चंडीगढ़ भवन नियम, 2017 में संशोधन करने पर विचार करने का निर्देश दिया गया था, जहां तक कि वे समिति की सिफारिशों के अनुसार पहले चरण में लागू होते हैं।

    हालांकि, ऐसे संशोधनों को अधिसूचित किए जाने से पहले केंद्र सरकार की अनुमति प्राप्त करनी होगी।

    कोर्ट ने कहा,

    "जब तक केंद्र सरकार द्वारा पूर्वोक्त अंतिम निर्णय नहीं लिया जाता है, तब तक चंडीगढ़ प्रशासन किसी भी योजना को मंजूरी नहीं देगा, जिसका तौर-तरीका एक ही आवास को तीन अजनबियों के कब्जे वाले तीन अलग-अलग अपार्टमेंट में बदलना है...

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा अन्य निर्देश जारी किए गए जिनमें केंद्र सरकार और चंडीगढ़ प्रशासन को फर्श-क्षेत्र अनुपात (एफएआर) स्थिर करने और इसे आगे नहीं बढ़ाने का निर्देश शामिल है। यह भी स्पष्ट रूप से कहा गया कि फेज I में एक समान अधिकतम ऊंचाई के साथ मंजिलों की संख्या तीन तक सीमित होगी, जैसा कि विरासत समिति द्वारा उचित समझा जाएगा।

    जस्टिस गवई ने कहा,

    "चंडीगढ़ प्रशासन विरासत समिति के पूर्व परामर्श और केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना सरकारी नियमों या उपनियमों का सहारा नहीं लेगा।"

    निष्कर्ष में, पीठ की ओर से ज‌स्टिस गवई ने यह भी कहा, "यह सही समय है कि केंद्र और राज्य स्तर पर विधायिका, कार्यपालिका और नीति निर्माता अव्यवस्थित विकास के कारण पर्यावरण को होने वाले नुकसान पर ध्यान दें और यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक उपाय करें कि विकास पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए।”

    कोर्ट ने कहा, स्थायी विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच एक 'उचित संतुलन' बनाने की भी आवश्यकता है। कोर्ट ने सरकारी अंगों से शहरी विकास की अनुमति देने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन करने के लिए आवश्यक प्रावधानों को लागू करने का आग्रह किया।

    चंडीगढ़ शहर आजादी के बाद भारत का पहला नियोजित शहर था और इसकी वास्तुकला और शहरी डिजाइन के लिए इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा मिली है। शहर का मास्टर प्लान प्रसिद्ध ली कोर्बुज़िए द्वारा विकसित किया गया था।

    केस टाइटलः रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन और अन्य बनाम केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ और अन्य। Special Leave Petition (Civil) No. 4950 of 2022

    Next Story