क्या हत्या के अपराध के लिए दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए निजी रक्षा के अधिकार का लाभ देकर उम्रकैद की सजा कम की जा सकती है?: सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया

Shahadat

22 July 2022 6:14 AM GMT

  • क्या हत्या के अपराध के लिए दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए निजी रक्षा के अधिकार का लाभ देकर उम्रकैद की सजा कम की जा सकती है?: सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया

    क्या हाईकोर्ट हत्या की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए निजी बचाव के अधिकार का लाभ देकर पहले से ही दी गई उम्रकैद की सजा को कम कर सकता है?

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका में सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे की जांच कर सकता है।

    इस मामले में निचली अदालत ने (वर्ष 1995 में) नंदू उर्फ ​​नंदुआ और अन्य आरोपियों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 147, 148, 323 और 302/34 के तहत दंडनीय अपराध में दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (वर्ष 2019 में) ने आरोपी की दोषसिद्धि की पुष्टि की, लेकिन आंशिक रूप से नंदू को दी गई सजा को कम करके अपील की अनुमति दी, जो सजा उसके द्वारा पहले से ही काट ली गई थी।

    सजा को कम करने के लिए हाईकोर्ट ने कहा कि वह उसे निजी बचाव के अधिकार का लाभ दे रहा है। हालांकि उसने उस अधिकार को पार कर लिया था।

    इस संबंध में पीठ ने फैसले में निम्नलिखित टिप्पणी की थी:

    "आरोपी व्यक्तियों की भूमि पर कथित रूप से अतिक्रमण करने वाली बाड़ लगाने के दौरान आरोपी नंदू को भी घटना में चोटें आई। अपीलकर्ता नंबर एक नंदू को जब उसे स्वयं कोई स्पष्टीकरण न होने के कारण चोट लगी हो तो वह निजी रक्षा के अधिकार का लाभ प्राप्त कर सकता है। हालांकि निजी रक्षा के उक्त अधिकार को उसे लगी प्रकृति की चोटों को देखते हुए पार कर लिया गया है। सजा कम करने का तर्क अपीलकर्ता के वकील को उसके द्वारा पहले से ही 7 साल और 10 महीने से अधिक की सजा में लाभ देने के लिए उसके द्वारा निजी बचाव पर अधिकार को पार करने के लिए उचित प्रतीत होता है।"

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका दायर करने वाले राज्य ने तर्क दिया कि एक बार आईपीसी की धारा 302 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद एकमात्र सजा जो दी जा सकती है, वह आजीवन कारावास होगी। इस प्रकार, इसके अनुसार, हाईकोर्ट ने सजा को कम करके पहले से ही गुजर चुकी अवधि यानी 7 साल और 10 महीने तक कम करने में गंभीर त्रुटि की।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने इन तर्कों पर संज्ञान लेते हुए अंतिम निपटान के लिए नोटिस जारी किया।

    मामला : मध्य प्रदेश राज्य बनाम नंदू @ नंदुआ

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