मानवीय आधार पर गर्भवती महिला और उसके बेटे को बांग्लादेश से वापस लाने पर विचार करें : सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को निर्देश

Praveen Mishra

1 Dec 2025 7:08 PM IST

  • मानवीय आधार पर गर्भवती महिला और उसके बेटे को बांग्लादेश से वापस लाने पर विचार करें : सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को निर्देश

    सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह निर्देश लेने को कहा कि हाल ही में बांग्लादेश भेजी गई एक गर्भवती महिला और उसके आठ वर्षीय बेटे को वापस लाने की संभावना क्या है। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस मामले पर “पूरी तरह मानवीय आधार पर” विचार किया जाना चाहिए।

    चीफ जस्टिस सुर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की और अगली तारीख 3 दिसंबर तय की।
    सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े ने बताया कि सोनाली खातून, जो प्रतिवादी भोदू शेख की बेटी हैं, गर्भावस्था के उन्नत चरण में थीं और उन्हें भी बांग्लादेश भेजा गया। उन्होंने यह भी बताया कि उनका आठ वर्षीय बेटा साबिल भी उनके साथ ही डिपोर्ट कर दिया गया।

    केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए, जबकि राज्य की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल उपस्थित थे। मामला केंद्र सरकार द्वारा दायर उस याचिका से संबंधित है जिसमें उसने कलकत्ता हाई कोर्ट द्वारा डिपोर्ट किए गए लोगों को वापस लाने के निर्देश को चुनौती दी है।
    महिला की स्थिति को देखते हुए CJI ने SG से कहा कि वह केवल महिला और बच्चे के बारे में निर्देश लें। “केवल मानवीय आधार पर,” उन्होंने जोर दिया।

    SG ने सहमति जताई पर कहा, “हम सभी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि यह एक मिसाल बन जाएगी।”
    इस पर CJI ने कहा, “इसीलिए हम रिकॉर्ड पर कुछ नहीं कह रहे हैं—शायद आप खुद ही कदम उठा लें।”

    हेगड़े ने यह भी कहा कि मां और बेटे को अलग करना कठिनाइयाँ बढ़ा देगा। उन्होंने यह भी बताया कि बच्चों के पिता को भी डिपोर्ट किया गया है, हालांकि इस पर अदालत ने कोई टिप्पणी नहीं की।

    इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया था कि केंद्र सरकार बांग्लादेश भेजे गए पश्चिम बंगाल के निवासियों को सुनवाई का अवसर देने के लिए वापस लाने पर विचार करे।

    मामले की पृष्ठभूमि:

    यह मामला सितंबर में आए कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जिसमें अदालत ने डिपोर्ट किए गए व्यक्तियों को 4 सप्ताह के भीतर वापस लाने का निर्देश दिया था।
    हैबियस कॉरपस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि डिपोर्टेशन की प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण थी, चाहे संबंधित व्यक्ति भारतीय नागरिक हों या न हों। कोर्ट ने कहा कि नागरिकता का प्रश्न उपयुक्त अदालत में दस्तावेज़ों और सबूतों के आधार पर तय होना चाहिए।

    प्रतिवादी भोदू शेख ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अपनी बेटी, दामाद और नाती को पेश करने की मांग की थी। उनका कहना था कि वह पश्चिम बंगाल के स्थायी निवासी हैं और उनकी बेटी व दामाद जन्म से भारतीय नागरिक हैं। वे परिवार सहित दिल्ली में रोजगार के लिए आए थे।
    उनका आरोप था कि 'पहचान सत्यापन अभियान' के दौरान उनके परिवार को उठाया गया, हिरासत में रखा गया और 26 जून 2025 को अवैध रूप से बांग्लादेश भेज दिया गया, जबकि उनकी बेटी गर्भावस्था के अंतिम चरण में थी।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि FRRO, दिल्ली, विदेशियों की पहचान कर उन्हें 02.05.2025 को गृह मंत्रालय द्वारा जारी निर्देशों के तहत वापस भेज रहा था, लेकिन इस मामले में किसी प्रकार की उचित जांच नहीं की गई और दो दिनों के भीतर ही डिपोर्टेशन कर दिया गया।

    दूसरी ओर, अधिकारियों का कहना था कि हिरासत में लिए गए व्यक्तियों ने स्वयं को बांग्लादेशी बताया और कोई आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर आईडी या अन्य दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं कर सके जिससे उनकी भारतीय नागरिकता सिद्ध हो सके।

    हाई कोर्ट ने कहा कि भले ही पुलिस के समक्ष दिए गए बयान में उन्होंने स्वयं को बांग्लादेशी बताया हो, लेकिन कानून मानता है कि पुलिस के सामने दिया गया बयान दबाव में भी हो सकता है और स्वेच्छा से न हो। अंततः हाई कोर्ट ने 4 सप्ताह में उनकी पुनर्वापसी का आदेश दिया।

    मामले पर अगले चरण की सुनवाई 3 दिसंबर को होगी।

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