"हिमालय में अस्तित्व का संकट": सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से ज़ोनिंग, वनों की कटाई, खनन, निर्माण आदि पर प्रश्न पूछे
Shahadat
24 Sept 2025 10:54 AM IST

इस वर्ष की शुरुआत में राज्य भर में हुई अभूतपूर्व मानसूनी बारिश के मद्देनजर, सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश राज्य को उसकी नाज़ुक पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय परिस्थितियों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर व्यापक और सत्यापित जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
यह आदेश 23 सितंबर को अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन से हुई व्यापक जान-माल की तबाही के बाद न्यायालय द्वारा स्वतः संज्ञान लेते हुए पारित किया गया।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने कहा कि राज्य और समग्र रूप से हिमालयी क्षेत्र एक "गंभीर अस्तित्व के संकट" का सामना कर रहा है, क्योंकि अनियमित विकास गतिविधियों ने प्राकृतिक कमज़ोरियों को और बढ़ा दिया। अदालत ने पहले टिप्पणी की कि बार-बार होने वाले भूस्खलन, ढहती इमारतों और धंसती सड़कों के लिए "प्रकृति नहीं, बल्कि मनुष्य" ज़िम्मेदार हैं और जलविद्युत परियोजनाएं, चार-लेन राजमार्ग, वनों की कटाई और बहुमंजिला निर्माण जैसे कारक इस आपदा में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने बाढ़ के पानी में लकड़ी के लट्ठों को तैरते हुए दिखाने वाले वीडियो का संज्ञान लिया, जो हिमाचल के पहाड़ों में अवैध रूप से पेड़ों की कटाई का संकेत देते है।
एमिक्स क्यूरी रिपोर्ट पर आधारित प्रश्नावली
इससे पहले, 25 अगस्त को अदालत ने सीनियर एडवोकेट के. परमेश्वर को एडवोकेट आकाशी लोढ़ा की सहायता से एमिक्स क्यूरी नियुक्त किया। राज्य की अंतरिम रिपोर्ट की जांच के बाद एमिक्स क्यूरी ने पारिस्थितिक और विकास संबंधी चिंताओं को शामिल करते हुए विस्तृत प्रश्नावली तैयार की, जिसे न्यायालय ने अब पूरी तरह से अपना लिया।
अदालत ने निम्नलिखित के बारे में सटीक जानकारी मांगी:
• ज़ोनिंग: ज़ोनिंग के मानदंड (भूकंपीय गतिविधि, भूस्खलन क्षेत्र, पर्यावरण-संवेदनशीलता), और क्या संरक्षित क्षेत्रों में पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र अधिसूचित किए गए।
• वन और वृक्षावरण: पिछले 20 वर्षों में गैर-वनीय उपयोग के लिए वनों के परिवर्तन का वर्षवार विवरण, वनावरण में परिवर्तन, प्रजातियों के आँकड़े और बड़े पैमाने पर वृक्षों की कटाई की अनुमति।
• प्रतिपूरक वनरोपण: पिछले दो दशकों में लगाए गए वृक्षों की संख्या, जीवित रहने की दर और वनरोपण निधि का उपयोग।
• जलवायु परिवर्तन: राज्य की जलवायु परिवर्तन नीति, ग्लेशियरों के पीछे हटने के अध्ययन और भविष्य के प्रभाव अनुमान।
• सड़कें: चार-लेन राजमार्गों की संख्या, उनके किनारे भूस्खलन के आंकड़े और किए गए उपचारात्मक उपाय।
• जलविद्युत परियोजनाएं: परियोजनाओं की मेजबानी करने वाली नदियों की संख्या और पूरा होने के बाद संचयी प्रभाव अध्ययन।
• खनन एवं भारी मशीनरी: खनन पट्टों की स्थिति और विस्फोटकों एवं भारी उपकरणों पर प्रोटोकॉल।
• पर्यटन एवं निर्माण: होटलों और किराये के आवासों के लिए अनुमति, बहुमंजिला निर्माणों पर प्रतिबंध और हिमाचल प्रदेश नगर एवं ग्राम नियोजन अधिनियम, 1977 के अंतर्गत अभियोजन।
खंडपीठ ने हिमाचल प्रदेश सरकार को 28 अक्टूबर, 2025 को होने वाली अगली सुनवाई से पहले वन विभाग के प्रधान सचिव के हलफनामे के साथ अपना पूरा जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
IN RE: ISSUES RELATING TO ECOLOGY AND ENVIRONMENTAL CONDITIONS PREVAILING IN THE STATE OF HIMACHAL PRADESH | Writ Petition (Civil) No. 758 of 2025

