सुप्रीम कोर्ट ने ताज ट्रेपेज़ियम ज़ोन में वृक्षों की गणना का आदेश दिया, वन अनुसंधान संस्थान को सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया
Shahadat
6 March 2025 9:33 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1976 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए ताज ट्रेपेज़ियम ज़ोन (TTZ) में वृक्षों की गणना का आदेश दिया।
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने TTZ प्राधिकरण को क्षेत्र में सभी मौजूदा पेड़ों का सर्वेक्षण करने के लिए वन अनुसंधान संस्थान (FRI) को नियुक्त करने का निर्देश दिया।
अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि 1976 का अधिनियम पेड़ों की सुरक्षा के लिए है। इसके प्रावधान - जैसे कि कटाई से पहले अनुमति लेना और उल्लंघन के लिए दंड लगाना - केवल तभी लागू किए जा सकते हैं, जब मौजूदा पेड़ों का सटीक रिकॉर्ड हो।
आदेश में कहा गया,
“जब तक मौजूदा पेड़ों का डेटा उपलब्ध नहीं हो जाता, तब तक प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सकता। डेटा तभी उपलब्ध कराया जा सकता है जब उचित वृक्ष गणना की जाए। वृक्ष गणना के बिना 1976 के अधिनियम के प्रावधानों का कोई प्रभावी कार्यान्वयन नहीं हो सकता। इसलिए हम TTZ प्राधिकरण को वन अनुसंधान संस्थान (FIR) को TTZ के क्षेत्र में सभी मौजूदा पेड़ों की वृक्ष गणना करने के लिए प्राधिकरण के रूप में नियुक्त करने का निर्देश देते हैं।”
TTZ प्राधिकरण को एक सप्ताह के भीतर FIR की नियुक्ति का औपचारिक आदेश जारी करने का निर्देश दिया गया। न्यायालय ने FIR को नोटिस भी जारी किया, जिसमें जनगणना करने की प्रक्रिया और समय-सीमा को रेखांकित करते हुए हलफनामा प्रस्तुत करने को कहा गया। यदि FIR को विशेषज्ञ सहायता की आवश्यकता होती है तो वह नामों का प्रस्ताव कर सकता है और न्यायालय उचित निर्देश जारी करेगा। हलफनामा मार्च 2025 के अंत तक दायर किया जाना चाहिए। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि सभी स्थानीय प्राधिकरण, राज्य सरकार और TTZ प्राधिकरणों को वृक्ष गणना करने में FIR के साथ पूर्ण सहयोग करना चाहिए।
वृक्ष गणना और सतर्कता तंत्र
सुप्रीम कोर्ट TTZ में वृक्ष आवरण और अवैध वृक्ष कटाई के मुद्दे पर बारीकी से निगरानी कर रहा है। 22 नवंबर, 2025 को न्यायालय ने पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र में अनधिकृत रूप से वृक्षों की कटाई को रोकने के लिए वृक्ष गणना और सतर्कता तंत्र की आवश्यकता पर बल दिया था। खंडपीठ ने क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अवैध रूप से पेड़ों की कटाई की जांच के लिए एक अलग समिति के गठन की मांग करने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया था।
पिछली सुनवाई के दौरान, आवेदक के वकील ने चार वर्षों में वन क्षेत्र में 9 प्रतिशत की कमी का हवाला दिया और बताया कि काटे गए कई पेड़ों को उत्तर प्रदेश सरकार के दिशानिर्देशों के तहत “सुरक्षित पेड़” के रूप में नामित किया गया। एमिक्स क्यूरी के रूप में कार्य कर रहे सीनियर एडवोकेट एडीएन राव ने सुझाव दिया कि पेड़ों की गणना करने के अलावा, संबंधित क्षेत्र के स्टेशन हाउस ऑफिसर (SHO) को अनधिकृत पेड़ों की कटाई के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए।
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने पहले अदालत को सूचित किया कि अवैध रूप से पेड़ों की कटाई के मामलों में FIR दर्ज की गई और सुझाव दिया कि या तो वन विभाग या केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) जनगणना कर सकती है।
न्यायालय ने बार-बार पेड़ों की गणना की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
जस्टिस ओक ने पिछली सुनवाई में कहा,
“आज, इस बारे में कोई डेटा नहीं है कि कितने पेड़ उपलब्ध हैं, कितने पेड़ मौजूद हैं। वह डेटा एकत्र किया जाना है।”
कृषि वानिकी के लिए पूर्व वृक्ष कटाई की अनुमति से छूट
न्यायालय ने कृषि वानिकी गतिविधियों के लिए पेड़ों की कटाई से पहले अनुमति लेने की आवश्यकता से छूट देने की याचिका पर भी विचार किया।
जस्टिस ओक ने सवाल किया कि क्या कृषि वानिकी को पेड़ों की कटाई के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता से छूट देने का कोई आधार है।
उन्होंने पूछा,
"यहां तक कि तथाकथित कृषि वानिकी के लिए भी यदि आप पेड़ों को काटना चाहते हैं तो आपको अनुमति लेनी होगी। छूट का सवाल कहां है?"
उन्होंने आगे कहा,
"हम यहां बैठे हैं। यदि कोई मामला बनता है तो हम पेड़ों की कटाई की अनुमति देंगे। हम नहीं जानते कि कृषि वानिकी क्या है। ये सभी सापेक्ष शब्द हैं।"
एडवोकेट किशन चंद जैन ने प्रस्तुत किया कि कानून कुछ श्रेणियों के पेड़ों को पूर्व अनुमति की आवश्यकता से छूट देता है। उन्होंने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश का भी हवाला दिया। हालांकि, जस्टिस ओक ने कहा कि अनुमति अभी भी आवश्यक होगी और उन्होंने कहा कि "कृषि वानिकी" शब्द अस्पष्ट है। उन्होंने कहा, "ये सभी सापेक्ष शब्द हैं।"
अदालत ने आवेदक को नोटिस जारी कर पूछा कि 11 दिसंबर, 2019 के आदेश को वापस क्यों नहीं लिया जाना चाहिए। जस्टिस ओक ने टिप्पणी की कि यह आदेश पेड़ों की अप्रतिबंधित कटाई की अनुमति देता प्रतीत होता है।
उन्होंने कहा,
"इससे सभी को पेड़ों को काटने की अनुमति मिल जाएगी। यह उद्योग क्या है, कोई नहीं जानता। हम यह जानकर हैरान हैं कि यह आदेश इस अदालत के सभी अन्य आदेशों को खत्म कर देता है। हम पेड़ों को बचाने के लिए इतना समय दे रहे हैं। यह निर्देश दूसरी तरफ आता है और चला जाता है। कृषिविदों की कुछ लॉबी है। वे यह सब कर रहे हैं। किसी ने इसे परिभाषित नहीं किया है।"
अपने आदेश में अदालत ने स्पष्ट किया कि 8 मई, 2015 का आदेश, जिसमें यह शर्त लगाई गई कि TTZ प्राधिकरण यह सुनिश्चित करेगा कि TTZ क्षेत्र के भीतर पेड़ों की कटाई सुप्रीम कोर्ट की पूर्व अनुमति के बिना न हो, लागू रहेगा। इसने यह भी फैसला सुनाया कि कृषि वानिकी के लिए 1976 के अधिनियम के प्रावधान लागू रहेंगे, जिसका अर्थ है कि आवश्यक अनुमति अभी भी प्राप्त की जानी चाहिए किसी भी पेड़ को काटने से पहले।
केस टाइटल- एमसी मेहता बनाम भारत संघ और अन्य।