सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के आगमिक मंदिरों में अर्चकों (पुजारियों) की नियुक्ति पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया

Avanish Pathak

26 Sept 2023 11:18 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के आगमिक मंदिरों में अर्चकों (पुजारियों) की नियुक्ति पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तमिलनाडु राज्य में आगमिक मंदिरों में अर्चकों (पुजारी/प्र‌ीस्‍ट) की नियुक्ति के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।

    मद्रास हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने अगस्त 2022 में तमिलनाडु हिंदू धार्मिक संस्थान कर्मचारी (सेवा की शर्तें) नियम, 2020 को इस प्रकार व्याख्या की थी कि अर्चकों/पुजारियों की योग्यता और नियुक्तियों के संबंध में नियम आगम के अनुसार निर्मित मंदिरों पर लागू नहीं होंगे। नियमों के मुताबिक, अर्चकों के लिए एक साल के सर्टिफिकेट कोर्स की योग्यता निर्धारित की गई है। अगर कोई अर्चक कई वर्षों से पूजा-पाठ कर रहा है तो भी नियमों के तहत सर्टिफिकेट के अभाव में वह नियुक्ति का पात्र नहीं होगा।

    हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार, चूंकि अगामिक मंदिरों के अपने रीति-रिवाज और उपयोग हैं, केवल उन संप्रदायों के व्यक्तियों को, जिन्होंने पारंपरिक रूप से पूजा की है, अर्चक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।

    'अखिल भारतीय आदि शैव शिवाचार्यर्गल सेवा एसोसिएशन' की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट गुरु कृष्ण कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि हाईकोर्ट के फैसले के बावजूद, राज्य संप्रदाय के बावजूद नियुक्तियां कर रहा है। वह यह दावा कर रहा है कि नियुक्त किए जा रहे लोगों के पास अपेक्षित प्रशिक्षण है।

    उन्होंने कहा, 'राज्य ऐसे आगे बढ़ रहा है जैसे कि डिवीजन बेंच ने कोई आदेश ही ना दिया हो। वे यह कहते हुए लोगों को नियुक्त करते जा रहे हैं कि वे प्रशिक्षित हैं।'

    जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने अखिल भारतीय आदि शैव शिवाचार्यर्गल सेवा एसोसिएशन की ओर से दायर रिट याचिका में नोटिस जारी करते हुए आदेश दिया कि आगमिक मंदिरों में अर्चकों की नियुक्ति के मामले में यथास्थिति बनाए रखी जाए।

    कुमार ने कोर्ट से कहा,

    “अलग-अलग विचार लिए जा रहे हैं और सरकार लगातार आदेश जारी कर रही है। इस तथ्य के कारण समस्या जटिल हो रही है कि एक एकल न्यायाधीश एक दृष्टिकोण रखता है और दूसरा एकल न्यायाधीश दूसरा दृष्टिकोण रखता है, और प्रत्येक मंदिर के लिए हमें अदालत के समक्ष जाना पड़ता है। एकल न्यायाधीश के बावजूद डिवीजन बेंच के फैसले में कहा गया है कि किसी भी जाति के व्यक्ति को नियुक्त किया जा सकता है। एक अन्य एकल न्यायाधीश का कहना है, फैसले की खंडपीठ का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है, यह कहते हुए कि जहां तक आगमिक मंदिरों का सवाल है, आप किसी अन्य जाति से किसी को नहीं ले सकते, आपको सांप्रदायिक अधिकारों के अनुसार जाना होगा। वे रिट अपीलों में लंबित हैं।”

    उन्होंने आगे कहा, 'तमिलनाडु में लगभग 42,500 मंदिर हैं और आगमिक मंदिर इनमें से 10% से भी कम हैं। जहां तक अनागमिक मंदिरों का सवाल है, हमें कोई शिकायत नहीं है।'

    पृष्ठभूमि

    मद्रास हाईकोर्ट ने अगस्त 2022 में अर्चकों/पुजारियों की योग्यता और नियुक्तियों के संबंध में 2020 में तमिलनाडु सरकार द्वारा लाए गए नियमों से आगम के अनुसार निर्मित मंदिरों को छूट दी थी। हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने तमिलनाडु हिंदू धार्मिक संस्थान कर्मचारी (सेवा की शर्तें) नियम, 2020 के नियम 7 और 9 को यह कहते हुए व्याख्या की थी कि वे आगम के अनुसार निर्मित मंदिरों पर लागू नहीं होंगे।

    नियम 7 अर्चकों और अन्य मंदिर कर्मचारियों के लिए योग्यता निर्धारित करता है और नियम 9 सीधी भर्ती की प्रक्रिया से संबंधित है। इन नियमों के अनुसार, अर्चक के लिए एक वर्षीय सर्टिफिकेट कोर्स की योग्यता निर्धारित की गई है और भले ही कोई अर्चक पिछले कई वर्षों से पूजा कर रहा हो, नियमों के तहत प्रमाणीकरण के अभाव में वह नियुक्ति के लिए पात्र नहीं है।

    हाईकोर्ट ने कहा था कि आगम के अनुसार निर्मित मंदिरों को छूट देने के लिए उक्त नियमों को पढ़ना आवश्यक था। अन्यथा, यह संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत गारंटीकृत धर्म का पालन करने के मौलिक अधिकारों और धार्मिक संप्रदाय के अपने मामलों के प्रबंधन के अधिकारों का उल्लंघन होगा। हालांकि, न्यायालय ने उक्त नियमों को पूरी तरह से रद्द करने से परहेज किया, क्योंकि वे अन्य नियुक्तियों से भी संबंधित थे।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका

    शीर्ष अदालत के समक्ष एक संबंधित याचिका में मंदिर के कर्मचारियों को एक आगमिक मंदिर से दूसरे आगमिक मंदिर में स्थानांतरित करने के संबंध में हाईकोर्ट की टिप्पणी का मुद्दा उठाया गया था। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इस निष्कर्ष को संशोधित करने की आवश्यकता है क्योंकि प्रत्येक मंदिर अलग है और उसके अपने रीति-रिवाज, उपयोग और प्रथाएं हैं।

    याचिका में उठाया गया दूसरा मुद्दा निर्वाचित ट्रस्टी की अनुपस्थिति में नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा निभाई गई भूमिका के संबंध में था। इस संबंध में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ट्रस्टियों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद, और जब उनकी जगह लेने के लिए कोई निर्वाचित ट्रस्टी नहीं होता है, ऐसी संभावना हो कि कार्यकारी अधिकारी/योग्य व्यक्ति आगे की नियुक्तियों का प्रयास किए बिना विस्तारित अवधि के लिए भूमिका निभाए।

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दोनों मुद्दों पर तमिलनाडु राज्य से जवाब मांगा था।

    केस टाइटलः श्रीरंगम कोइल मिरास कैंकर्यपरागल मात्रुम अथनाई सारंथा कोइलगालिन मिरस्कैनकार्यपरार्गलिन नलसंगम बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य एसएलपी (सी) नंबर 19553/2023, अखिल भारतीय आदि शैव शिवाचार्यर्गल सेवा एसोसिएशन बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 985/2023 और संबंधित मामले।

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