सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल पहले अवैध तरीके से बर्खास्त चौकीदार की बहाली का आदेश दिया

Avanish Pathak

27 Sep 2022 6:09 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में 2002 में गलत तरीके से सेवा से बर्खास्त एक चौकीदार को 6 सप्ताह के भीतर बहाल करने का आदेश दिया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि चौकीदारी को एक जनवरी, 2020 से एक जनवरी, 2022 तक की अवधि के लिए बकाया भुगतान किया जाना चाहिए।

    चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने जीतूभा खानसांगजी जडेजा की याचिका में फैसला सुनाया, जिसे 1992 में कच्छ जिला पंचायत ने चौकीदार के रूप में नियुक्त किया था। उन्हें 30.12.2002 को बिना किसी कारण और सूचना के और औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना सेवाओं से हटा दिया गया।

    उन्होंने 2003 में भुज श्रम न्यायालय के समक्ष छंटनी को चुनौती दी, जिसने 2010 में जडेजा की सेवा की निरंतरता के साथ बहाली का आदेश दिया, हालांकि उन्हें पिछला वेतन प्रदान नहीं किया गया। श्रम न्यायालय के आदेश के खिलाफ प्रबंधन ने गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने श्रम न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप नहीं किया। 2021 में हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने श्रम न्यायालय के निर्देश को रद्द कर दिया और एक लाख का एकमुश्त मुआवजा दिया। हाईकोर्ट के निर्देश के खिलाफ जडेजा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    हाईकोर्ट का हस्तक्षेप अनुचित

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले के तथ्यों में हाईकोर्ट का हस्तक्षेप अनुचित था। यह देखा गया कि अपीलकर्ता ने अपने दावे कि जो कर्मचारी उससे कनिष्ठ थे, उन्हें सेवा में बनाए रखा गया था, को प्रमाणित करने के लिए प्रासंगिक दस्तावेजों को प्राप्त करने के लिए आरटीआई अधिनियम के तहत आवेदन किया था प्रबंधन रिकॉर्ड पर सामग्री का खंडन करने में असमर्थ था।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

    "इस तथ्य को देखते हुए कि श्रम न्यायालय का निर्देश केवल बहाल करने के लिए था, न कि बकाया भुगतान के लिए, डिवीजन बेंच द्वारा राहत का प्रतिस्थापन किसी ज्ञात सिद्धांत पर आधारित नहीं है।"

    कोर्ट ने कहा कि मामले की परिस्थितियों में एकमुश्त भुगतान से बहाली की राहत को प्रतिस्थापित करने का निर्देश आवश्यक नहीं था।

    मामले को कोर्ट में घसीटने के लिए प्रबंधन की भी आलोचना की गई। कोर्ट ने कहा कि अगर लेबर कोर्ट के फैसले को वह स्वीकार कर लेता तो अपीलकर्ता "10 साल से अधिक समय तक इंतजार करने की पीड़ा से बच जाता।"

    पीठ ने आदेश में कहा, "ऐसी परिस्थितियों में बकाया वेतन से इनकार करना उन्हें दंडित करने जैसा है। हालांकि देरी न्यायिक प्रक्रिया के कारण है ‌फिर भी प्रतिवादी प्रबंधन को मुकदमेबाजी की प्राथमिक जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया जा सकता है।"

    पीठ ने कहा, "प्रबंधन द्वारा राहत को रद्द करने के हठ के कारण श्रमिकों को परेशान नहीं किया जा सकता था।"

    कोर्ट ने कहा,

    "मौजूदा मामले में, इस अदालत को श्रम न्यायालय और एकल न्यायाधीश की ओर से अपीलकर्ता की बहाली के निर्देश में कोई विकृति या अनुचितता नहीं मिलती है। यदि प्रतिवादी प्रबंधन ने फैसले को स्वीकार किया होता तो अपीलकर्ता 10 से अधिक वर्षों के लिए प्रतीक्षा की पीड़ा से बच जाता। ऐसी परिस्थितियों में, बैकवेज से इनकार करना उसे दंडित करने जैसा है, जबकि यह देरी न्यायिक प्रक्रिया के कारण है। प्रतिवादी प्रबंधन मुकदमेबाजी में प्राथमिक जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकता है। इन में परिस्थितियों में, अपीलकर्ता दो साल की अवधि के लिए, यानी 01.01.2020 से 01.01.2022 तक बैकवेज का हकदार होगा।"

    श्रम न्यायालय के सेवा निरंतरता के निर्देश को भी बहाल किया जाता है। अपीलकर्ता का प्रतिनिधित्व एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड महमूद उमर फारुकी ने किया।

    केस टाइटल : जीतूभा खानसांगजी जडेजा बनाम कच्छ जिला पंचायत

    साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (एससी) 797

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