सुप्रीम कोर्ट ने उस कपल को सरंक्षण देने का आदेश दिया,जिसे राहत देने से इनकार करते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा था-'लिव-इन रिलेशन सामाजिक और नैतिक रूप से स्वीकार्य नहीं'
LiveLaw News Network
7 Jun 2021 1:00 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पंजाब पुलिस को उस कपल को सुरक्षा देने का आदेश दिया है,जिसे पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने राहत देने से इनकार कर दिया था। इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई थी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इस कपल को यह कहते हुए सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था कि लिव-इन-रिलेशन नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है और याचिका में सुरक्षा देने का कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता कपल को पुलिस अधीक्षक के समक्ष उनका अभ्यावेदन देने की स्वतंत्रता दी है।
महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने आदेश दिया है कि,
''यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि चूंकि यह जीवन और स्वतंत्रता से संबंधित मामला है, इसलिए पुलिस अधीक्षक को कानून के अनुसार शीघ्रता से कार्य करने की आवश्यकता है, जिसमें हाईकोर्ट की टिप्पणियों से अप्रभावित रहते हुए किसी आशंका/खतरे के मद्देनजर याचिकाकर्ताओं को सुरक्षा प्रदान करना भी शामिल है।''
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले महीने उस लिव-इन कपल की याचिका खारिज कर दी थी,जिन्होंने सुरक्षा दिए जाने की मांग करते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उनका कहना था कि उनके रिश्ते का विरोध किया जा रहा है।
न्यायमूर्ति एचएस मदान ने अपने संक्षिप्त आदेश में कहा था कि इस कपल ने सिर्फ इसलिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है ताकि उनके उस संबंध पर स्वीकृति की मुहर लग सके जो ''नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं'' है।
''वास्तव में, याचिकाकर्ता वर्तमान याचिका दायर करने की आड़ में अपने लिव-इन-रिलेशनशिप पर स्वीकृति की मुहर लगाने की मांग कर रहे हैं, जो नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है। इसलिए इस याचिका में कोई सुरक्षा आदेश पारित नहीं किया जा सकता है।''
इस टिप्पणी के साथ, हाईकोर्ट ने उनकी संरक्षण की याचिका को खारिज कर दिया था।
एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह यह सवाल बड़ी पीठ को संदर्भित किया है कि क्या अदालत को एक साथ रहने वाले दो व्यक्तियों की वैवाहिक स्थिति और उस मामले की अन्य परिस्थितियों की जांच किए बिना उनको सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है?
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल की खंडपीठ ने यह भी कहा था कि यदि उपरोक्त का उत्तर नकारात्मक है, तो ऐसी कौन सी परिस्थितियां हैं जिनमें न्यायालय उन्हें सुरक्षा से वंचित कर सकता है?
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के परस्पर विरोधी फैसले
दो वयस्कों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप होने के बावजूद भी पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कुछ मामलों के तथ्यों पर विचार करते हुए याचिकाकर्ताओं को संरक्षण देने से इनकार कर दिया था, हालांकि इसके विपरीत भी एक विचार न्यायालय द्वारा लिया गया है।
फिलहाल ही पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने फिर से पुष्टि की थी कि संरक्षण याचिकाओं में, विवाह की वैधता से जुड़े सवाल कपल के जीवन और स्वतंत्रता के संरक्षण से इनकार करने का आधार नहीं हो सकते हैं।
जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी की सिंगल बेंच ने कहा था कि,
''वर्तमान याचिका का दायरा केवल याचिकाकर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के संबंध में है, इसलिए विवाह की वैधता इस तरह के संरक्षण से इनकार करने का आधार नहीं हो सकती है।''
पिछले महीने ही एक और महत्वपूर्ण फैसले में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप सभी के लिए स्वीकार्य नहीं हो सकता, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि ऐसा रिश्ता अवैध है या विवाह का पवित्र रिश्ता बनाए बिना एक साथ रहना कोई अपराध है।
न्यायमूर्ति जयश्री ठाकुर की खंडपीठ ने एक लिव-इन कपल से संबंधित एक मामले में यह टिप्पणी की थी। पीठ ने माना था कि वह दोनों बालिग हैं और उन्होंने इस तरह का रिश्ता बनाने का फैसला किया है। साथ ही उन्होंने लड़की के परिवार के सदस्यों से अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है।
एक संबंधित समाचार में, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने मंगलवार (18 मई) को कहा था कि एक व्यक्ति को शादी या लिव-इन रिलेशनशिप के गैर-औपचारिक दृष्टिकोण के जरिए अपने साथी के साथ रिश्ते बनाने का अधिकार है।
न्यायमूर्ति सुधीर मित्तल की खंडपीठ ने यह टिप्पणी एक लिव-इन-रिलेशनशिप कपल से संबंधित एक मामले में की थी। कोर्ट ने माना था कि वह दोनों बालिग हैं और उन्होंने इस तरह का रिश्ता बनाने का फैसला किया है क्योंकि वे एक-दूसरे के लिए अपनी भावनाओं के बारे में आश्वस्त हैं।
महत्वपूर्ण है कि इससे कुछ दिन पहले ही हाईकोर्ट ने एक लिव-इन कपल को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था और उसके बाद पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का यह महत्वपूर्ण अवलोकन आया था। हाईकोर्ट ने उस लिव-इन कपल को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था,जिन्होंने दलील दी थी कि उनको लड़की के परिजनों से खतरा है। हाईकोर्ट ने कहा था कि ''यदि इस तरह के संरक्षण का दावा करने वालों को इसकी अनुमति दे दी जाएगी, तो इससे समाज का पूरा सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा।''
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल की पीठ ने कहा था,
''याचिकाकर्ता नंबर 1 (लड़की) मुश्किल से 18 साल की है जबकि याचिकाकर्ता नंबर 2 (लड़का) 21 साल का है। वे लिव-इन रिलेशनशिप में एक साथ रहने का दावा कर रहे हैं और अपने जीवन की सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिए याचिकाकर्ता नंबर 1 (लड़की) के रिश्तेदारों से संरक्षण दिलाए जाने की मांग कर रहे हैं।''
केस का शीर्षक - गुरविंदर सिंह व अन्य बनाम पंजाब राज्य व अन्य
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