''कभी-कभी हमें कानून से ऊपर उठना पड़ता है, वह भविष्य में देश का नेतृत्व कर सकता है": तकनीकी त्रुटि के कारण आईआईटी सीट गंवाने वाले दलित छात्र की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा
LiveLaw News Network
20 Nov 2021 10:02 AM IST
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने गुरुवार को टिप्पणी की, "मानवीय आधार पर, कभी-कभी, न्यायालय को कानून से ऊपर भी उठना पड़ता है।''
जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ एक एसएलपी पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता, अनुसूचित जाति वर्ग के एक छात्र को समय सीमा के बाद सीट स्वीकृति शुल्क का भुगतान करने देने एवं प्रवेश प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति देने और उसे आईआईटी, बॉम्बे में सिविल इंजीनियरिंग के लिए आवंटित सीट पर या किसी भी अन्य सीट पर, जो किसी भी संस्थान में किसी भी स्ट्रीम में उपलब्ध हो सकती है, का निर्देश देने में असमर्थता व्यक्त की गई थी।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा,
"यहाँ एक दलित लड़का है, जिसने आईआईटी में जगह बनाई है। कितने छात्र इसे हासिल करने में सक्षम हैं? वह अगले 10 वर्षों में देश का प्रतिनिधित्व कर सकता है! अब, वह अपनी गलती के बिना अपनी सीट गंवा रहा है। यद्यपि वह कानून के बिंदु पर बाहर हो सकता है, लेकिन कभी-कभी मानवीय आधार पर भी हमें कानून से ऊपर उठना पड़ता है।"
पीठ ने प्रतिवादी अधिकारियों के वकील से आईआईटी, बॉम्बे में प्रवेश सूची का विवरण प्राप्त करने और इस संभावना का पता लगाने के लिए कहा कि छात्र को कैसे समायोजित किया जा सकता है।
बेंच ने कहा कि वह सोमवार को इस मामले पर विचार करेगी, लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि वह जो भी राहत देती है वह स्पष्ट रूप से अनुच्छेद 142 के तहत होगी और मिसाल के तौर पर इस्तेमाल नहीं होगी।
संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) एडवांस्ड 2021 उत्तीर्ण करने और अखिल भारतीय रैंक (सीआरएल) 25894 और अनुसूचित जाति (एससी) रैंक 864 हासिल वाले याचिकाकर्ता को सिविल इंजीनियरिंग (4 वर्षीय स्नातक प्रौद्योगिकी अर्थात बी.टेक पाठ्यक्रम) के लिए आईआईटी, बॉम्बे में सीट आवंटित की गई थी।
याचिकाकर्ता का मामला है कि शैक्षणिक वर्ष 2021-22 के लिए आईआईटी, एनआईटी, आईआईईएसटी, आईआईआईटी और अन्य जीएफटीआई द्वारा प्रस्तावित शैक्षणिक कार्यक्रमों के लिए संयुक्त सीट आवंटन के लिए बिजनेस रूल्स XVIII क्लॉज 40 के अनुसार एक ब्रोशर दिनांक 15/10/2021 को जारी किया गया। याचिकाकर्ता ने उसमें उल्लिखित चरणों का पालन किया।
उन्होंने पहले उक्त शैक्षणिक कार्यक्रम के लिए 'स्लाइड' विकल्प के तहत सीट स्वीकार की और फिर चरण 2 के रूप में 29/10/2021 को संयुक्त सीट आवंटन प्राधिकरण (जोसा) पोर्टल पर अनुलग्नक -3 के अनुसार आवश्यक दस्तावेज अपलोड किए। हालाँकि वह 29/10/2021 को सीट स्वीकृति शुल्क का भुगतान नहीं कर सका, क्योंकि याचिकाकर्ता के पास पैसे की कमी थी।
उसके बाद 30/10/2021 को उसकी बहन द्वारा उसके खाते में पैसे ट्रांसफर करने के बाद, उसने पहली बार 9.51 बजे ऑनलाइन मोड से भुगतान करने का प्रयास किया और फिर रात 9.58 बजे। और उसके बाद फिर से 31/10/2021 को पूर्वाह्न 11.44 बजे।
हालांकि, भुगतान करने के इन सभी प्रयासों के दौरान, उन्हें 'क्षमा करें, अनुरोध प्रॉसेस करने में असमर्थ', कृपया बाद में प्रयास करें' और/या 'विशिष्ट अनुरोध संसाधित नहीं किया जा सकता' का संदेश प्राप्त हुआ और दूसरा संदेश था- 'अमान्य सर्वर एक्सेस'। यह प्रस्तुत किया जाता है कि यद्यपि याचिकाकर्ता उक्त शुल्क का भुगतान करने के लिए निरंतर प्रयास कर रहा था, याचिकाकर्ता तकनीकी त्रुटि और सर्वर त्रुटि के कारण उक्त भुगतान करने में असमर्थ था। अ
पने मामले के समर्थन में, याचिकाकर्ता ने याचिका के साथ स्क्रीनशॉट और एक्सेस हिस्ट्री को संलग्न किया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि उसने 30/10/2021 की रात 9.51 बजे से सीट स्वीकृति शुल्क भुगतान की कोशिश की और 31/10/2021 को साइबर कैफे में जाकर उक्त भुगतान करने के अपने प्रयासों को भी जारी रखा, लेकिन वह ऐसा करने में असफल रहा।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने जोसा - प्रतिवादी नंबर 2 से टेलीफोन के माध्यम से संपर्क करना शुरू किया, लेकिन उसकी कॉल का कोई जवाब नहीं आया। उसने प्रतिवादी संख्या 2 को अपनी शिकायत के निवारण के लिए अनुरोध करते हुए ईमेल भेजा (जैसा कि व्यवसाय के नियमों के नियम 77 में प्रदान किया गया है) लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
याचिकाकर्ता का निवेदन है कि उसके बाद वह 1 नवंबर, 2021 को सुबह 09.00 बजे प्रतिवादी संख्या 2 के पास गया और अधिकारियों से किसी अन्य वैकल्पिक तरीके से सीट स्वीकृति शुल्क स्वीकार करने और याचिकाकर्ता को प्रवेश प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति देने का अनुरोध किया। हालांकि, प्रतिवादी संख्या 2 के अधिकारियों ने याचिकाकर्ता की मदद करने में असमर्थता व्यक्त की।
आक्षेपित आदेश में, हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने हमारे सामने स्वीकार किया है कि शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार, आईआईटी-खड़गपुर द्वारा स्थापित जोसा की साइट से पता चलता है कि उम्मीदवार उक्त प्रक्रिया का उपयोग केवल 31/10/2021 को दोपहर 12.00 बजे तक करने में सक्षम होंगे। जैसा कि ऊपर बताया गया है, याचिकाकर्ता को याचिका के पृष्ठ 93 पर नियम 77 के बारे में भी पता था, जो इंगित करता है कि जोसा प्रक्रिया के संबंध में किसी भी शिकायत के मामले में उम्मीदवारों के लिए एक शिकायत निवारण तंत्र उपलब्ध है।
यह स्पष्ट है कि शिकायत निवारण तंत्र का सहारा केवल 31/10/2021 को दोपहर 12.00 बजे तक ही लिया जा सकता था, जब उक्त प्रक्रियागत गतिविधि को बंद किया जाना था और वास्तव में बंद कर दिया गया था।
याचिकाकर्ता को 30/10/2021 की रात 9.51 बजे से 31/10/2021 को पूर्वाह्न 11.44 तक ऑनलाइन भुगतान करने में विफल रहने के बावजूद उक्त प्रक्रिया में गतिविधि बंद होने से पहले यानी 31 अक्टूबर, 2021 को दोपहर 12.00 बजे से पहले नियम 77 में प्रदान की गई अपनी शिकायत दर्ज करके मदद मांगनी चाहिए थी।
याचिकाकर्ता ने दोपहर 12.00 बजे से पहले ऑन-लाइन मोड से भुगतान करने में अपनी विफलता के संबंध में अपनी शिकायत दर्ज नहीं की, बल्कि 31/10/2021 को दोपहर 12.00 बजे के बाद यानी पूरी गतिविधि/प्रक्रिया के अंतत: बंद होने के बाद अपनी शिकायत दर्ज की।
हाईकोर्ट ने कहा था,
"याचिकाकर्ता को इसके बारे में पता होने के बावजूद नियमों का पालन करने में विफल रहने के कारण अब यह कहते हुए नहीं सुना जा सकता है कि उसे नामांकन कराने की अनुमति दी जाए और सीट स्वीकृति शुल्क का भुगतान करने की अनुमति दी जाए या उसे प्रवेश की प्रक्रिया के बंद होने के बाद नियमों में प्रावधान के अनुसार दूसरी सीट आवंटित की जाए। उक्त नियम सभी प्रतिभागियों के लिए बाध्यकारी हैं क्योंकि उम्मीदवारों ने उक्त नियमों पर हामी भरकर ही प्रक्रिया में प्रवेश किया है। हालांकि, हम जानते हैं कि कम्प्यूटरीकरण / डिजिटलीकरण नागरिकों को परेशान करने के लिए नहीं है, बल्कि उनकी गतिविधियों को अधिक कुशल, सुविधाजनक और परेशानी मुक्त तरीके से करने में उनकी सहायता करने के लिए है, लेकिन याचिकाकर्ता को नियमों में किये गये प्रावधान के अनुसार समय पर शिकायत निवारण का लाभ नहीं उठाकर प्रक्रिया से अस्वीकृति का खामियाजा भुगतना है और दुर्भाग्य से प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया है। यह ठीक है कि जोसा मामले में सक्षम प्राधिकारी द्वारा तैयार किए जा रहे कामकाज के नियम, याचिकाकर्ता पर बाध्यकारी हैं। यह न्यायालय 'महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय (सुप्रा)' के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उल्लेखित सिद्धांत और 'पल्लवी शर्मा (सुप्रा)' मामले में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा उल्लेखित सिद्धांत के बारे में भी पूरी तरह से जागरूक है कि इस न्यायालय के एक निर्देश के परिणामस्वरूप इसके नियम कानून का उल्लंघन नहीं हो सकता है। इसलिए हम ऐसा कोई निर्देश जारी नहीं कर सकते हैं और न ही कर रहे हैं। यह भी सच है कि याचिकाकर्ता एक गरीब लेकिन मेधावी छात्र है, जिसने जेईई एडवांस में मेरिट रैंक हासिल की है और प्रतिष्ठित आईआईटी बॉम्बे में बी.टेक (सिविल) कोर्स के लिए सीट हासिल की है और हमें उसकी स्थिति से पूरी सहानुभूति है। हालांकि, हमने ऊपर जो चर्चा और अवलोकन किया है, उसे देखते हुए हमें प्रतिवादियों को कोई निर्देश जारी करना मुश्किल लगता है जैसा कि इस याचिका में या अन्यथा प्रार्थना की गई है।''
केस शीर्षक: प्रिंस जयबीर सिंह बनाम भारत सरकार और अन्य।
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