'नो इंस्ट्रक्शंस' पर्सिस पर 7 दिन की नोटिस जरूरी नहीं: सुप्रीम कोर्ट
Praveen Mishra
25 Nov 2025 4:03 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि जब कोई अधिवक्ता केवल यह बताते हुए “नो इंस्ट्रक्शंस” पर्सिस दाखिल करता है कि उसे अपने मुवक्किल से निर्देश नहीं मिल रहे, तो इसे वकालतनामा वापस लेना नहीं माना जा सकता, और ऐसे में Bombay High Court Appellate Side Rules, 1960 तथा Civil Manual में निर्धारित सात दिन पहले की अनिवार्य नोटिस की आवश्यकता लागू नहीं होती।
एक मकान मालिक द्वारा दायर बेदखली वाद में किरायेदारों के वकील द्वारा “नो इंस्ट्रक्शंस” पर्सिस दाखिल किए जाने और उसके बाद ट्रायल कोर्ट द्वारा बेदखली डिक्री पारित करने को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ था। प्रथम अपीलीय अदालत ने पाया कि किरायेदारों ने अपने वकील का नोटिस प्राप्त हुआ या नहीं, यह स्पष्ट नहीं किया और उनका समग्र आचरण लगातार लापरवाही, देरी और उदासीनता से भरा था।
इसके बावजूद हाई कोर्ट ने आर्टिकल 227 के तहत हस्तक्षेप करते हुए आदेश पलट दिया और माना कि पर्सिस दाखिल होने पर भी सात दिन का नोटिस दिया जाना चाहिए था। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की इस reasoning को गलत ठहराते हुए कहा कि आर्टिकल 227 का दायरा सीमित है और यह केवल तभी प्रयोग किया जा सकता है जब कोई अदालत अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाए या न्याय में गंभीर विफलता हो—जो यहाँ नहीं थी।
कोर्ट ने रेखांकित किया कि वकील ने वकालतनामा वापस लेने की प्रार्थना ही नहीं की थी, न ही ट्रायल कोर्ट ने इसकी अनुमति दी थी, इसलिए सात दिन की नोटिस की बाध्यता उत्पन्न ही नहीं हुई। इसके अलावा पर्सिस के बाद भी मुकदमा तीन महीने से अधिक लंबित रहा, लेकिन किरायेदारों ने न तो अदालत में पेश होकर स्थिति स्पष्ट की और न कोई नया वकील नियुक्त किया। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि हाई कोर्ट ने तथ्यात्मक निष्कर्षों की पुनर्समीक्षा की और अपने पर्यवेक्षणीय अधिकार से आगे बढ़ गया। परिणामस्वरूप, सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और ट्रायल कोर्ट तथा प्रथम अपील अदालत के आदेश बहाल कर दिए।

