सुप्रीम कोर्ट ने संरक्षित वनों के आसपास अनिवार्य रूप से 1 किमी इको-सेंसिटिव जोन (ESZ) बनाने के अपने पिछले आदेश में संशोधन किया

Shahadat

27 April 2023 10:02 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने संरक्षित वनों के आसपास अनिवार्य रूप से 1 किमी इको-सेंसिटिव जोन (ESZ) बनाने के अपने पिछले आदेश में संशोधन किया

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने 3 जून, 2022 के आदेश को इस हद तक संशोधित किया कि उक्त आदेश में संरक्षित वनों के आसपास 1 किमी इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) को अनिवार्य करने के निर्देश ESZ पर लागू नहीं होंगे, जिसके संबंध में एक मसौदा और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) द्वारा और मंत्रालय द्वारा प्राप्त प्रस्तावों के संबंध में अंतिम अधिसूचना जारी कर दी गई।

    जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने कहा,

    “ESZ के रूप में घोषित किया जाने वाला क्षेत्र एक समान नहीं हो सकता है और संरक्षित क्षेत्र विशिष्ट होगा। कुछ मामलों में यह एक तरफ 10 किलोमीटर और दूसरी तरफ 500 मीटर हो सकता है। कुछ मामलों में संरक्षित क्षेत्र के एक तरफ से परे अंतर-राज्यीय सीमाओं या समुद्र या नदी के आधार पर एक समान न्यूनतम क्षेत्र होना संभव नहीं हो सकता है। किसी भी मामले में 1986 के नियमों के नियम 5 के तहत निर्धारित विस्तृत प्रक्रिया का पालन किया जाना आवश्यक है, जिसे हम पहले ही ऊपर बता चुके हैं। हम पाते हैं कि 1986 के नियमों के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने के बाद एक बार इस तरह की अधिसूचना जारी होने के बाद ESZ को उक्त अधिसूचना के अनुसार होना होगा।"

    सुप्रीम कोर्ट भारतीय संघ द्वारा दायर 3 जून, 2022 को आईए डब्ल्यूपी(सी) नंबर 202/1995 में नंबर 1000/2003 इंटरलोक्यूटरी अर्जी पर सुनवाई कर रहा था।

    न्यायालय ने कहा कि ESZs घोषित करने की आवश्यकता नागरिकों की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में बाधा डालने के लिए नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य कीमती वनों/संरक्षित क्षेत्रों को किसी भी नकारात्मक प्रभाव से बचाना और संरक्षित क्षेत्रों के आसपास के वातावरण को परिष्कृत करना है।

    न्यायालय ने देखा,

    "यदि 3 जून 2022 (सुप्रा) के आदेश के पैरा 56.5 में इस न्यायालय द्वारा जारी निर्देश को जारी रखा जाता है तो पूर्वोक्त ESZs में किसी भी उद्देश्य के लिए किसी भी स्थायी संरचना को आने की अनुमति नहीं दी जाएगी। जैसा कि पूर्वोक्त उदाहरणों से पहले ही बताया जा चुका है, देश में सैकड़ों गाँव ESZs के भीतर स्थित हैं। यदि किसी उद्देश्य के लिए कोई स्थायी निर्माण की अनुमति नहीं दी जाती है तो जो ग्रामीण अपने घर का पुनर्निर्माण करना चाहता है, उसको अनुमति नहीं दी जाएगी।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि इसी तरह अगर सरकार ग्रामीणों के जीवन में सुधार के लिए स्कूल, डिस्पेंसरी, आंगनवाड़ी, गांव के स्टोर, पानी की टंकी और अन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण करने का निर्णय लेती है तो उसे भी अनुमति नहीं दी जाएगी।

    कोर्ट ने कहा,

    "आदेश का असर राज्य या केंद्र सरकार को सड़क बनाने और ग्रामीणों को अन्य सुविधाएं प्रदान करने से रोकना होगा।"

    न्यायालय ने आगे इंगित किया कि यदि 3 जून, 2022 के आदेश के पैरा 56.5 में निहित निर्देश कि मौजूदा गतिविधियों को जारी रखने के लिए भी प्रत्येक राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के पीसीसीएफ की अनुमति आवश्यक होगी। असंशोधित रहने वाले क्षेत्र के बारे में कहा गया कि प्रत्येक राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में सैकड़ों गाँव होंगे, जिनमें लाखों लोग निवास कर रहे होंगे, पीसीसीएफ के पास ऐसी गतिविधियों को जारी रखने की अनुमति के लिए ऐसे आवेदनों पर विचार करने के अलावा और कोई काम नहीं होगा।

    कोर्ट ने कहा,

    “कृषि गतिविधियों को जारी रखने के इच्छुक किसान को भी इस तरह की अनुमति लेने की आवश्यकता होगी। हम पाते हैं कि इस तरह के निर्देश को लागू करना असंभव है।”

    न्यायालय ने आगे कहा कि यदि इस तरह के निर्देश को जारी रखा जाता है तो यह मानव-पशु संघर्ष से बचने के बजाय इसे और तेज करेगा।

    न्यायालय ने 3 जून, 2022 के आदेश के पैरा 56.5 में निहित निर्देशों को निम्नानुसार संशोधित किया:

    1. एमओईएफ और सीसी और सभी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकारें 9 फरवरी 2011 के उक्त दिशानिर्देशों के प्रावधानों का सख्ती से पालन करेंगी। साथ ही प्रतिबंधित गतिविधियों के संबंध में संबंधित संरक्षित क्षेत्रों से संबंधित गतिविधियों और अनुमेय गतिविधियों को लेकर ESZ अधिसूचनाओं में निहित प्रावधानों का भी पालन करेंगी।

    2. हम यह भी निर्देश देते हैं कि ESZ और संरक्षित क्षेत्रों के बाहर के अन्य क्षेत्रों में परियोजना गतिविधियों के लिए पर्यावरण और वन मंजूरी प्रदान करते समय भारत संघ के साथ-साथ विभिन्न राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकारें दिनांक 17 के ऑफिस मेमोरेंडम में निहित प्रावधानों का सख्ती से पालन करेंगी, जो मई 2022 एमओईएफ और सीसी द्वारा जारी किया गया।

    हालांकि, न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य के भीतर और ऐसे राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य की सीमा से एक किलोमीटर के क्षेत्र के भीतर खनन की अनुमति नहीं होगी।

    केस टाइटल: इन रे: टी. एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ व अन्य।

    कोरम: जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संजय करोल

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