“हम बार पर भरोसा करते हैं, उसे तोड़ें नहीं” — सुप्रीम कोर्ट ने तथ्य छिपाने पर वकीलों को डांटा
Praveen Mishra
7 Nov 2025 4:07 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने आज एक मामले में तथ्यों को छिपाने (suppression of facts) के लिए प्रत्येक अपीलकर्ता पर ₹10,000 का उदाहरणीय जुर्माना लगाते हुए कहा कि “अदालत का भरोसा बार (वकीलों) द्वारा कभी टूटना नहीं चाहिए।”
यह टिप्पणी जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस विपुल एम. पांचोली की खंडपीठ ने तब की, जब एक वकील ने interlocutory application (IA) सूचीबद्ध करने का उल्लेख किया था। अदालत ने उस समय इसे सूचीबद्ध करने की अनुमति दी, लेकिन बाद में पता चला कि उसी मामले में एक review petition (पुनर्विचार याचिका) लंबित थी।
जब सीनियर एडवोकेट इस मामले में उपस्थित हुए, तो जस्टिस नरसिम्हा ने पूछा कि जब रिव्यू याचिका लंबित थी, तब यह तथ्य अदालत से क्यों छिपाया गया। उन्होंने कहा —
“हम अदालत के रूप में बार पर अंधविश्वास करते हैं कि इस तरह की प्रथाएं नहीं अपनाई जाएंगी। जब कोई मासूमियत से आकर कहता है कि IA दाखिल हुई है और हम उस पर भरोसा कर लेते हैं, तब भी यह कैसे संभव है कि रिव्यू लंबित होने के बावजूद IA दाखिल की जाए? यह बहुत गंभीर मामला है।”
जस्टिस नरसिम्हा ने आगे कहा —
“जब आपने हमसे कहा कि IA दायर हुई है, क्या आपने यह बताया कि रिव्यू लंबित है? हम बार पर इतना भरोसा करते हैं कि आप हमारे अपने हैं। जब रिव्यू लंबित है, तो IA दाखिल करने का क्या औचित्य है? इस अदालत में यह कौन-सी प्रथा है कि एक ही मामले में रिव्यू के साथ-साथ IA दाखिल की जाए?”
सीनियर एडवोकेट ने अदालत से माफी मांगते हुए कहा कि वह review petition वापस ले लेंगे। हालांकि, जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि IA दाखिल करना “अत्यंत अनुचित” था और प्रत्येक आवेदक पर ₹1 लाख का जुर्माना लगाने का आदेश दिया।
उन्होंने गंभीर चिंता जताते हुए कहा —
“इस तरह की प्रथाएं अदालत का बार पर भरोसा खत्म कर देंगी। अगर हमारा भरोसा खत्म हो गया, तो बार का अस्तित्व ही नहीं बचेगा। कृपया अदालत को नष्ट मत करें। हम कठोर हैं क्योंकि हम इस संस्था की रक्षा करना चाहते हैं। हम आपको अपने बच्चों की तरह मानते हैं, लेकिन यदि आप हमारा विश्वास तोड़ेंगे, तो यह न्याय व्यवस्था के लिए घातक होगा।”

