लिव-इन पार्टनर को गुज़ारा भत्ता: सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस
Amir Ahmad
30 Aug 2025 1:18 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम याचिका पर सुनवाई करते हुए नोटिस जारी किया। इस याचिका में सवाल उठाया गया कि क्या लिव-इन पार्टनर को भी दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत गुज़ारा भत्ता मिल सकता है। यह मामला एक पुरुष द्वारा दायर की गई अपील से जुड़ा है, जिसमें उसने अपनी लिव-इन पार्टनर की ओर से दायर गुज़ारा भत्ते की अर्जी को चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ता का कहना है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले पार्टनर को CrPC की धारा 125 के तहत कोई अधिकार नहीं है। इस आधार पर पूरी कार्यवाही ग़ैरक़ानूनी है। दूसरी ओर, केरल हाईकोर्ट ने पहले ही पुरुष की इस दलील को खारिज कर दिया था।
हाईकोर्ट ने कहा था कि यह प्रावधान लाभकारी कानून है, इसलिए इसमें सख़्त रूप से विवाह का सबूत देना आवश्यक नहीं है। यदि दोनों लंबे समय तक पति-पत्नी की तरह साथ रहे हैं तो यह मानने का पर्याप्त आधार है कि महिला को गुज़ारा भत्ता मिल सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की बेंच ने इस अपील को सुनते हुए महिला को नोटिस जारी किया और छह हफ़्तों में जवाब दाख़िल करने का निर्देश दिया।
यह मामला नया नहीं है। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट में लिव-इन रिलेशनशिप और गुज़ारा भत्ते को लेकर कई बार सवाल उठ चुके हैं। 2015 में ललिता टोप्पो बनाम स्टेट ऑफ़ झारखंड मामले में कोर्ट ने यह विचार किया कि क्या लंबे समय तक साथ रहने वाले पुरुष और महिला को पति-पत्नी मानकर गुज़ारा भत्ता दिया जा सकता है।
2018 में तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि लिव-इन पार्टनर को घरेलू हिंसा कानून 2005 के तहत और अधिक प्रभावी राहत मिल सकती है, जिसमें साझा घर का हक़ भी शामिल है। इसी क्रम में कमला बनाम एम.आर. मोहन कुमार केस में कोर्ट ने साफ़ किया कि CrPC की धारा 125 के तहत विवाह का सख़्त सबूत देना ज़रूरी नहीं है, क्योंकि इसका उद्देश्य महिलाओं को बेघर और बेसहारा होने से बचाना है।
अब सुप्रीम कोर्ट ने इस नई अपील में नोटिस जारी कर मामले को सुनवाई योग्य मान लिया। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि अदालत लिव-इन रिलेशनशिप में गुज़ारा भत्ते के अधिकार को किस तरह परिभाषित करती है।

