हमें अधिक साहसी और निडर जजों की आवश्यकता, तभी संविधान जीवित रहेगा: जस्टिस उज्जल भुइयां

Amir Ahmad

30 Jun 2025 11:44 AM IST

  • हमें अधिक साहसी और निडर जजों की आवश्यकता, तभी संविधान जीवित रहेगा: जस्टिस उज्जल भुइयां

    बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा द्वारा आयोजित सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अभय एस ओक के विदाई समारोह में बोलते हुए सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान जज जस्टिस उज्जल भुइयां ने कहा कि भारत का संविधान साहसी और निडर जजों की नियुक्ति से ही जीवित रहेगा।

    उन्होंने कहा,

    "जैसा कि कैरोलिन कैनेडी ने कहा था हमें और अधिक साहसी और निडर जजों की आवश्यकता है। हमारे पास ऐसे जज रहे हैं और आगे भी रहेंगे। इसी तरह हमारा संविधान जीवित रहेगा।"

    जस्टिस भुइयां ने कहा कि लोकतंत्र की नींव कानून का शासन है। इसके लिए एक स्वतंत्र न्यायपालिका आवश्यक है, जो राजनीतिक हस्तक्षेप से स्वतंत्र होकर निर्णय ले सके। उन्होंने कहा कि यह बात भारत पर पूरी तरह लागू होती है और जस्टिस ओक की यात्रा इसका प्रमाण है।

    उन्होंने भारतीय संविधान की मूल संरचना की यात्रा पर चर्चा करते हुए कहा कि भारत और पाकिस्तान भले ही सीमा पर और क्रिकेट मैदान पर प्रतिद्वंदी हों, लेकिन भारत हमेशा शांति और अहिंसा का देश रहा है।

    उन्होंने 1963 के पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के फ़ज़लुर कादिर चौधरी बनाम मोहम्मद अब्दुल हक़ मामले का उल्लेख किया और कहा कि इसी में पहली बार मूल संरचना सिद्धांत की अवधारणा अंकुरित हुई थी।

    जस्टिस भुइयां ने केशवानंद भारती मामले के फैसले पर चर्चा करते हुए कहा कि भले ही इसे लंबे समय तक लोकतंत्र विरोधी कहा गया हो, वह इस आलोचना से सहमत नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कम से कम 10 फैसलों में इसे बरकरार रखा है।

    जजों की नियुक्ति पर उन्होंने कहा कि NJAC कानून को कोलेजियम प्रणाली को समाप्त करने के लिए लाया गया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया, क्योंकि यह शक्ति पृथक्करण और न्यायपालिका की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करता था।

    उन्होंने कहा,

    "अरुण जेटली इस फैसले से बहुत नाराज थे। उन्होंने इसे अचयनित जजों की तानाशाही कहा और पूछा कि कैसे निर्वाचित कानून निर्माताओं द्वारा बनाए गए कानूनों को अचयनित जज अस्वीकार कर सकते हैं। यह आपत्ति मेरे विचार से पूर्णत: अनुचित है और इसका कोई स्थान नहीं है।"

    समापन में उन्होंने भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के शब्दों को उद्धृत किया,

    "हमने एक लोकतांत्रिक संविधान बनाया है, लेकिन संवैधानिक संस्थाओं का सफल संचालन उन लोगों में दृष्टिकोण की भिन्नता का सम्मान करने की इच्छा, समझौते और समायोजन की क्षमता पर निर्भर करेगा।"

    जस्टिस भुइयां ने कहा,

    "1949 में कहे गए उनके ये शब्द कितने भविष्यद्रष्टा थे। तब यह आवश्यक था और आज 2025 में भी उतना ही प्रासंगिक है।"

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