दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के नियमितीकरण पर हाईकोर्ट के आदेश के पालन करने से 16 साल तक इनकार करता रहा जम्मू-कश्मीर प्रशासन, सुप्रीम कोर्ट ने की आलोचना
Shahadat
10 March 2025 9:19 AM

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश का पालन करने में जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश द्वारा 16 साल की देरी के बारे में तीखी टिप्पणी की, जिसमें सरकार को निर्देश दिया गया कि वह विशिष्ट सरकारी आदेश SRO 64/1994 के अनुसार नियमितीकरण के लिए प्रतिवादी दैनिक वेतनभोगियों के मामले पर विचार करे।
2007 में जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने अपीलकर्ताओं को प्रतिवादी के मामले पर अन्य दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के समान विचार करने के निर्देश दिए, जिन्हें 2006 में एसआरओ 64/1994 के तहत नियमितीकरण का लाभ मिला था।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने कहा,
"हमें केवल दशकों की देरी की चिंता नहीं है, बल्कि यह निर्विवाद तथ्य भी है कि गरीब प्रतिवादी, दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी होने के नाते, याचिकाकर्ताओं द्वारा बार-बार परेशान किए गए। गुप्त आदेश पारित करना, जिससे एकल जज के आदेश के वास्तविक महत्व और भावना की अनदेखी हो रही है।
अदालत ने आगे कहा,
"हम इस मामले को दोषी अधिकारियों पर जुर्माना लगाने के लिए उपयुक्त मानते हैं। साथ ही उनके खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की भी सिफारिश करते हैं।"
हालांकि, अदालत ने इस तथ्य पर विचार करते हुए ऐसा कोई निर्देश पारित करने से परहेज किया कि जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के एकल जज के समक्ष अवमानना की कार्यवाही अभी भी लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट ने एकल पीठ से साप्ताहिक आधार पर अवमानना की कार्यवाही करने और यह सुनिश्चित करने का भी अनुरोध किया कि कानून की पवित्रता बरकरार रहे।
इससे पहले, जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश द्वारा दायर लेटर पेटेंट अपील (एलपीए) खारिज कर दी थी और ₹25,000 का जुर्माना लगाया था, जिसे अदालत ने कहा था कि उस अधिकारी से वसूला जा सकता है जिसकी सलाह पर एलपीए दायर किया गया।
केस टाइटल: केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर एवं अन्य बनाम अब्दुल रहमान खांडे एवं अन्य, 2025, लाइव लॉ (जेकेएल)