भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय और अन्य दो के खिलाफ रेप केस : सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया

LiveLaw News Network

25 Oct 2021 3:15 PM GMT

  • भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय और अन्य दो के खिलाफ रेप केस : सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया

    Supreme Court Issues Notice On Plea Challenging HC Order Which Set Aside Dismissal Of Application Seeking FIR Against BJP Leader Kailash Vijayvargiya

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अलीपुर में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का आदेश रद्द करने के कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर नोटिस जारी किया। अलीपुर में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने बसु और प्रदीप जोशी रेप केस में भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय, आरएसएस सदस्य जिस्नू के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग करने वाली एक याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद कलकत्ता हाईकोर्ट ने अलीपुर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया था।

    कलकत्ता हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति हरीश टंडन और न्यायमूर्ति कौशिक चंदा की खंडपीठ ने पिछले सप्ताह विजयवर्गीय सहित अन्य लोगों की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई की थी। इसमें मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अलीपुर के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें पीड़ित महिला द्वारा दायर शिकायत को प्रथम सूचना रिपोर्ट के रूप में मानने का निर्देश दिया गया था।

    इस मामले में पीड़ित महिला ने आरोप लगाया था कि विजयवर्गीय ने उसे अपने फ्लैट पर बुलाया था, जिसके बाद आरोपी व्यक्ति एक के बाद एक उसके साथ बलात्कार किया, जिसके बाद उसे दयनीय अवस्था में फ्लैट छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। महिला ने आगे आरोप लगाया कि आरोपी व्यक्तियों ने उसे और उसके बेटे को जान से मारने की धमकी भी दी थी।

    न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ के समक्ष सोमवार को एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने प्रस्तुत किया कि शिकायतकर्ता के साथ कथित तौर पर 28 नवंबर, 2018 को बलात्कार किया गया था, लेकिन आपराधिक शिकायत 2020 में लगभग दो साल की देरी के बाद दर्ज की गई।

    वरिष्ठ वकील ने आगे तर्क दिया कि 2018 से 2020 में शिकायत दर्ज करने तक शिकायतकर्ता द्वारा सामूहिक बलात्कार के आरोपों के संबंध में एक कोई बात नहीं की गई। उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि इस अवधि के दौरान आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ कई अन्य आपराधिक शिकायतें दर्ज की गई थीं, लेकिन उनमें से किसी में भी सामूहिक बलात्कार का कथित अपराध नहीं था।

    वरिष्ठ वकील जेठमलानी ने पीठ को यह भी अवगत कराया कि कलकत्ता हाईकोर्ट ने 14 अक्टूबर के आदेश के तहत आरोपी व्यक्तियों को 25 अक्टूबर तक अग्रिम जमानत दी थी। तदनुसार उन्होंने अंतरिम सुरक्षा के और विस्तार के लिए प्रार्थना की।

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में वर्तमान एसएलपी दायर किए जाने की सूचना मिलने के बाद आरोपी व्यक्तियों की अग्रिम जमानत याचिकाओं पर सुनवाई 27 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दी। हाईकोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि याचिकाकर्ताओं को उच्च न्यायालय द्वारा 14 अक्टूबर को दी गई अंतरिम सुरक्षा एक नवंबर तक या कोई और आदेश पारित होने तक, जो भी पहले हो, जारी रहनी चाहिए।

    याचिकाकर्ता जिस्नु बसु की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता परमजीत पटवालिया ने भी अदालत को यह बताया कि कलकत्ता हाईकोर्ट अग्रिम जमानत आवेदनों के संबंध में 27 अक्टूबर को निर्णय करने के लिए तैयार है। उन्होंने अंतरिम संरक्षण के और विस्तार के लिए पीठ के समक्ष प्रार्थना की।

    दूसरी ओर पश्चिम बंगाल राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि वह मामले के गुण-दोष पर अधिक बहस नहीं करेंगे और इसे पीठ के विवेक पर छोड़ते हैं।

    बेंच ने पश्चिम बंगाल राज्य को नोटिस जारी किया और मामले को आगे की सुनवाई के लिए 16 नवंबर को सूचीबद्ध किया।

    बेंच ने आगे निर्देश दिया,

    "इस बीच यह हाईकोर्ट के लिए लिए खुला होगा कि वह योग्यता के आधार पर अग्रिम जमानत आवेदनों पर विचार करे या संबंधित पक्षों के अधिकारों के पूर्वाग्रह के बिना पहले दी गई अंतरिम सुरक्षा का विस्तार करने पर विचार करे।"

    पृष्ठभूमि

    संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि पीड़ित महिला ने आरोप लगाया था कि विजयवर्गीय ने उसे अपने फ्लैट पर बुलाया, जहां जमानत के आवेदकों ने एक के बाद एक उसके साथ बलात्कार किया। फिर उसे जबरदस्ती असहाय स्थिति में फ्लैट छोड़ने के लिए मजबूर किया गया।

    इसके अलावा, यह आरोप लगाया गया कि उसके बाद से उसे कई मौकों, विविध तिथियों और स्थानों पर 39 बार से ज्यादा शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया। इसके बाद उसने दिनांक 20 दिसंबर, 2019 को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 341/506(ii)/34 और धारा 341/323/325/506/34 के तहत के तहत दो एफआईआर दर्ज कराई। हालांकि कोई भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई।

    इसके बाद, 12 नवंबर, 2020 को आईपीसी की धारा 156 (3) के तहत एक आवेदन दायर किया गया, जिसे सीजेएम, अलीपुर ने खारिज कर दिया। उक्त आदेश को आपराधिक पुनर्विचार आवेदन दायर करके हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई।

    सीजेएम, अलीपुर के आदेश को रद्द करते हुए हाईकोर्ट द्वारा उक्त आपराधिक पुनर्विचार आवेदन की अनुमति दी गई थी। इसके बाद मामले को सीजेएम, अलीपुर को पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया गया। अक्टूबर, 2021 को हाईकोर्ट द्वारा पारित निर्देशों/आदेशों के आधार पर सीजेएम कोर्ट ने शिकायत को एफआईआर के रूप में मानने का निर्देश दिया।

    अदालत के समक्ष याचिकाकर्ताओं के वकील द्वारा यह तर्क दिया गया कि महिला द्वारा दर्ज की गई दो शिकायतों में निचली अदालत के समक्ष उसके आवेदन में कथित अपराध की गंभीरता के बारे में कोई चर्चा नहीं की गई।

    वहीं बसु के वकील ने तर्क दिया कि जांच एजेंसी द्वारा दो शिकायतों में दर्ज की गई क्लोजर रिपोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंची कि आरोप राजनीतिक प्रतिशोध के कारण गढ़े गए।

    न्यायालय की टिप्पणियां शुरुआत में न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं के वकीलों के तर्कों को ध्यान में रखा कि अलीपुर में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द करने में हाईकोर्ट के निष्कर्ष स्पष्ट रूप से कमजोर और असंगति से प्रभावित है और उक्त आदेश अब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश किया गया।

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