सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली एनआईए की याचिका पर नोटिस जारी किया, आदेश में कहा गया- केवल 'जिहादी' बैठकों में भाग लेना यूएपीए के तहत "आतंकवादी कृत्य" नहीं होगा

Shahadat

26 Nov 2022 5:58 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली एनआईए की याचिका पर नोटिस जारी किया, आदेश में कहा गया- केवल जिहादी बैठकों में भाग लेना यूएपीए के तहत आतंकवादी कृत्य नहीं होगा

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अल-हिंद समूह के कथित सदस्य सलीम खान को कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा दी गई जमानत को चुनौती देने वाली राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की याचिका पर नोटिस जारी किया। सलीम खान पर कथित रूप से आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने की सूचना है।

    जमानत देते समय हाईकोर्ट ने कहा था,

    "किसी भी प्रथम दृष्टया मामले की अनुपस्थिति में अधिनियम की धारा 43-डी की उप-धारा (5) द्वारा लगाए गए प्रतिबंध संवैधानिक न्यायालय को संविधान के भाग III के उल्लंघन के आधार पर जमानत देने से नहीं रोकते हैं।"

    हाईकोर्ट ने आगे कहा कि केवल गैर-प्रतिबंधित संगठन अल-हिंद की बैठकों में भाग लेना या जिहादी संगठनों की बैठकों में भाग लेना यूएपीए के तहत "आतंकवादी गतिविधि" का अपराध नहीं होगा।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की खंडपीठ ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी को सुनने के बाद नोटिस जारी किया और एएसजी के अनुरोध पर इस पर चार सप्ताह में जवाब मांगा।

    सीजेआई ने पूछा,

    "यूएपीए अधिनियम की अनुसूची के तहत अल-हिंद एक प्रतिबंधित संगठन नहीं है?"

    भाटी ने पीठ को अवगत कराया कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत दो प्रकार के संगठनों को अपने दायरे में लेता है। एक प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन है और दूसरा आतंकवादी गिरोह है। भाटी ने जोर देकर कहा कि दोनों को अधिनियम के परिभाषा खंड में परिभाषित किया गया है।

    सीजेआई ने एएसजी से पूछा,

    "इन लोगों के लिए कोई आतंकवादी कृत्य नहीं है।"

    भाटी ने कहा कि वर्तमान मामले में प्रतिवादी वह व्यक्ति है, जिसने अन्य आरोपी (ए20) को भर्ती किया, जिसकी जमानत हाईकोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दी कि वह आईएसआईएस के सीधे संपर्क में था।

    आरोप पत्र के मुताबिक वह आईएसआईएस को समर्थन दे रहा था।

    सीजेआई ने पूछा,

    "वह कब तक जेल में रहा?"

    भाटी ने जवाब दिया,

    "एनआईए द्वारा 2020 में दायर चार्जशीट के अनुसार एक साल।"

    इसके बाद संक्षेप में मामले की मेरिट पर बात करते हुए एएसजी ने प्रस्तुत किया कि हाईकोर्ट ने न केवल कानून बल्कि मामले के तथ्यों पर भी विचार करने में गंभीर त्रुटि की है। तथ्यात्मक त्रुटि प्रतिवादी की भूमिका से संबंधित है, जो आतंकवादी गिरोह के लिए दूसरों की भर्ती कर रहा है।

    हाईकोर्ट द्वारा की गई 'कानून की गंभीर त्रुटि' पर प्रकाश डालते हुए भाटी ने प्रस्तुत किया कि अधिनियम की धारा 15 के तहत अपराध करने के किसी भी आरोप के अभाव में अधिनियम की धारा 18, 18A, 18B और धारा 20को लागू करने का कोई सवाल ही नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि लागू प्रावधान धारा 15 के आह्वान से स्वतंत्र हो सकता है।

    भाटी ने आगे प्रस्तुत किया,

    "हाईकोर्ट का कहना है कि यदि कोई आतंकवादी कृत्य नहीं है तो अधिनियम की धारा 18, 16, 20 लागू नहीं होती है। हम प्रस्तुत करते हैं कि ये स्वतंत्र रूप से मौजूद हो सकते हैं।"

    अधिनियम की धारा 18 किसी आतंकवादी कृत्य को अंजाम देने की साजिश रचने या करने का प्रयास करने या उसकी वकालत करने, उकसाने, सलाह देने या सुविधा प्रदान करने या आतंकवादी कृत्य करने की तैयारी करने वाले किसी भी कार्य के लिए सजा से संबंधित है। एएसजी ने स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया कि भले ही धारा 15 के तहत कोई विशिष्ट आरोप नहीं है, जो आतंकवादी अधिनियम से संबंधित है, इस पर धारा 18, धारा 18ए, 18बी और धारा 20 स्वतंत्र रूप से लागू होंगी।

    एएसजी के अनुसार, यदि हाईकोर्ट की व्याख्या स्वीकार कर ली जाती है तो आतंकवादी शिविर के आयोजन के लिए साजिश रचने के लिए दी गई सजा बेमानी हो जाएगी।

    [केस टाइटल: राष्ट्रीय जांच एजेंसी के माध्यम से भारत संघ बनाम सलीम खान डायरी नंबर 30597/2022]

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