भीमा कोरेगांव मामले में प्रोफेसर शोमा सेन और ज्योति जगताप की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया

Avanish Pathak

4 May 2023 10:57 AM GMT

  • भीमा कोरेगांव मामले में प्रोफेसर शोमा सेन और ज्योति जगताप की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोपी ज्योति जगताप और प्रोफेसर शोमा सेन द्वारा दायर जमानत याचिका पर नोटिस जारी किया।

    जस्टिस अनिरुद्ध बोस और ज‌स्टिस सुधांशु धूलिया की खंडपीठ ने दोनों विशेष अनुमति याचिकाओं में नोटिस जारी किया।

    32 वर्षीय जगताप, कबीर कला मंच (केकेएम) की सदस्य हैं। यह एक सांस्कृतिक समूह है, जिस पर प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) का फ्रंट ऑर्गनाइजेशन होने का आरोप है। उन्हें सितंबर, 2020 में एनआईए ने गिरफ्तार किया था। एनआईए के अनुसार, जगताप और अन्य ने 31 दिसंबर, 2017 को एल्गार परिषद का आयोजन किया, जिसके अगले दिन हिंसा हुई।

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने जगताप को जमानत देने से इनकार कर दिया था।

    हाईकोर्ट के समक्ष अपनी जमानत याचिका में, जगताप ने कहा था कि वह हाशिए के तबके की एक कलाकार और गायिका हैं और उन्होंने कई गैर सरकारी संगठनों के साथ काम किया है। इसके अलावा, पुणे पुलिस की ओर से मामले में दायर की गई पहली चार्जशीट में न तो वह फरार थी और न ही उनका नाम था।

    हालांकि बाद में मामला एनआईए को ट्रांसफर कर दिया गया था, लेकिन एजेंसी ने उनके खिलाफ कुछ भी नया नहीं खोजा, जिससे गिरफ्तारी की जरूरत हो।

    एनआईए के अनुसार, आरोपी मिलिंद तेलतुंबड़े, जिनकी पिछले साल मृत्यु हो गई थी, ने कबीर कला मंच के तीन सदस्यों के साथ एल्गार परिषद के आयोजन पर चर्चा की थी। एजेंसी यह भी दावा किया कि इन तीनों और अन्य व्यक्तियों की मदद से इस कार्यक्रम में माओवादी विचारधारा को फैलाया गया था।

    जगताप मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक थी, जैसा कि एजेंसी ने आरोप लगाया।

    एनआईए ने जगताप पर कोरची जंगल में हथियारों का प्रशिक्षण लेने का भी आरोप लगाया था। जगताप ने यह तर्क देते हुए एनआईए के आरोपों का प्रतिवाद किया कि एजेंसी ने यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी पेश नहीं किया था कि वह केकेएम की सदस्य थीं, यह दिखाना तो दूर की बात है कि वह सीपीआई (माओवादी) के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रही थी।

    अंग्रेजी साहित्य की प्रोफेसर सेन को 6 जून, 2018 को गिरफ्तार किया गया था। उन्हें पांच सह-आरोपियों के साथ, नवंबर 2019 में पुणे सत्र अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया था। अपराध की जांच जनवरी, 2020 में एनआईए को स्थानांतरित कर दी गई थी। एनआईए ने उनके खिलाफ एक विशेष एनआईए अदालत के समक्ष एक पूरक आरोप पत्र दायर किया। सेन ने अक्टूबर 2020 में जमानत के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    यह देखते हुए कि ट्रायल कोर्ट द्वारा जमानत से इनकार करने के बाद सेन के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई थी, बॉम्बे हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से संपर्क करने की स्वतंत्रता देते हुए उनकी जमानत याचिका का निस्तारण कर दिया।

    हाईकोर्ट ने पाया कि निचली अदालत द्वारा उनकी जमानत अर्जी खारिज करने के बाद से परिस्थितियां बदल गई हैं, और उन्हें याचिका पर फिर से विचार करने का अवसर दिया जाना चाहिए।

    हाईकोर्ट के समक्ष अपनी जमानत याचिका में, सेन ने दावा किया कि उन्हें गलत तरीके से गिरफ्तार किया गया था और वर्तमान अपराध में उन्हें शामिल करना दुर्भावनापूर्ण और पूर्वाग्रहपूर्ण इरादे से है क्योंकि उन्होंने बहुत सारी अवैध गिरफ्तारियों और यातनाओं का खुलासा किया था। उन्होंने दावा किया कि उनके खिलाफ पेश किए गए इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य संदिग्ध हैं।

    जमानत याचिका में यह भी बताया गया कि सेन एक वरिष्ठ नागरिक हैं और उनकी कई चिकित्सीय स्थितियां हैं। दलील के अनुसार, वह ग्लूकोमा, उच्च रक्तचाप, ‌इर्र‌िटेबल बॉवेल सिंड्रोम और गठिया आदि जैसी बीमारियों के लिए दवा ले रही हैं।

    लंबे समय तक जेल में रहने के दरमियान उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया था और लगातार कारावास से उनकी चिकित्सा स्थिति और भी खराब हो जाएगी।

    [केस टाइटल: ज्योति जगताप बनाम राष्ट्रीय जांच एजेंसी और अन्य, डायरी संख्या 12011/2023 और शोमा कांति सेन बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य, एसएलपी (सीआरएल) संख्या 4999/2023]

    Next Story