पांच और राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानूनों के खिलाफ याचिका दायर, सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया

Avanish Pathak

5 Feb 2023 2:00 PM GMT

  • पांच और राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानूनों के खिलाफ याचिका दायर, सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया

    सेंटर फॉर जस्टिस एंड पीस ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पांच और धर्म परिवर्तन कानूनों को चुनौती दी है। संगठन इससे पहले 2021 में दायर याचिका में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के धर्म परिवर्तन कानूनों के खिलाफ याचिका दायर कर चुका है।

    मामले में तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश को नोटिस भी जारी कर चुकी है। 17 फरवरी, 2021 को सीजेपी की संशोधन याचिका को भी अनुमति दी गई ‌‌थी, जिसमें मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश, 2020 और हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2019 को चुनौती दी गई थी।

    CJP (WP(Crl) 14/2023) की ओर से दायर नई याचिका में निम्नलिखित कानूनों को चुनौती दी गई है-

    1. छत्तीसगढ़ धर्म स्वतंत्र अधिनियम [धर्म की स्वतंत्रता] अधिनियम, 1968 (छत्तीसगढ़ धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2006 द्वारा संशोधित)

    2. गुजरात धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2003 (गुजरात धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 द्वारा संशोधित)

    3. हरियाणा अवैध धर्म परिवर्तन रोकथाम अधिनियम, 2022

    4. झारखंड फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट, 2017 के साथ झारखंड फ्रीडम ऑफ रिलिजन रूल्स, 2017

    5. कर्नाटक धर्म की स्वतंत्रता का संरक्षण अधिनियम, 2022।


    2021 में सीजेपी ने निम्नलिखित कानूनों को चुनौती दी थी-

    1. उत्तराखंड धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2018

    2. उत्तर प्रदेश अवैध धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021

    3. मध्यप्रदेश धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम, 2021

    4. हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2019

    याचिका के अनुसार, विचाराधीन अधिनियम "संवैधानिक योजना के खिलाफ हैं। व्यक्तिगत स्वायत्तता और ‌निजता का अतिक्रमण करते हैं, अंतर-धार्मिक जोड़ों के जीवन और सुरक्षा के लिए खतरे पैदा करते हैं, इसलिए अनुच्छेद 14, 21 और 25 के तहत संरक्षित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।"

    अधिनियमों में ऐसे प्रावधान हैं, जिसके तहत किसी को अपना धर्म परिवर्तित करने से पहले जिला मजिस्ट्रेट को पूर्व सूचना देना अनिवार्य है। याचिका में कहा गया है कि यह प्रावधान अंतर-धार्मिक जोड़ों के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है।

    सीजेपी ने तर्क दिया है कि विचाराधीन अधिनियम धर्म परिवर्तन के लिए इच्छुक व्यक्तियों पर "अनुचित लगाम" लगाता है। कई मामलों में धर्म परिवर्तन के लिए इच्छुक व्यक्तियों को इरादे की पूर्व सार्वजनिक घोषणा करने शर्त अनुच्छेद 21 के एक आवश्यक घटक यानि व्यक्तियों के निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

    सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली शीर्ष अदालत की एक पीठ वर्तमान में सीजेपी और जमीयत उलमा-ए-हिंद की याचिकाओं सहित धर्म परिवर्तन कानूनों के खिलाफ दायर याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई कर रही है।

    केंद्र ने संगठन की संस्थापक तीस्ता सीतलवाड़ के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का हवाला देते हुए याचिका दायर करने में सीजेपी के अधिकार क्षेत्र पर आपत्ति दर्ज कराई है। 3 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने सीजेपी की नई याचिका पर भी नोटिस जारी किया, जिसमें संबंधित राज्यों को 3 सप्ताह के भीतर अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा।

    केस टाइटलः सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया | रिट पीटिशन (क्रिमिनल) नंबर 14 ऑफ 2023

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