सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय और अन्य दो खिलाफ रेप केस में जांच पर रोक लगाने से इनकार किया, गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा बढ़ाई

LiveLaw News Network

30 Oct 2021 1:45 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय और अन्य दो खिलाफ रेप केस में जांच पर रोक लगाने से इनकार किया, गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा बढ़ाई

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय, आरएसएस सदस्य जिस्नू बसु और प्रदीप जोशी के खिलाफ रेप के आरोप में दर्ज आपराधिक मामले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट को गुण-दोष के आधार पर अभियुक्त व्यक्तियों की अग्रिम जमानत याचिकाओं पर आगे विचार करने की अनुमति दी।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने आगे आदेश दिया कि हाईकोर्ट द्वारा पहले दी गई गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सुनवाई की अगली तारीख यानी 16 नवंबर तक जारी रखी जानी चाहिए।

    अलीपुर में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने बसु और प्रदीप जोशी रेप केस में भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय, आरएसएस सदस्य जिस्नू के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग करने वाली एक याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद कलकत्ता हाईकोर्ट ने अलीपुर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया था।

    पीड़ित महिला द्वारा आरोप लगाया गया था कि विजयवर्गीय ने उसे अपने फ्लैट पर बुलाया, जिसके बाद आरोपी व्यक्तियों ने उसके साथ बलात्कार करना शुरू कर दिया था, जिसके बाद उसे दयनीय स्थिति में फ्लैट छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। उसने आगे आरोप लगाया कि आरोपी व्यक्तियों ने उसे और उसके बेटे को जान से मारने की धमकी भी दी थी।

    पिछली सुनवाई की तारीख में बेंच ने निर्देश दिया था कि इस बीच यह हाईकोर्ट के लिए लिए खुला होगा कि वह योग्यता के आधार पर अग्रिम जमानत आवेदनों पर विचार करे या संबंधित पक्षों के अधिकारों के पूर्वाग्रह के बिना पहले दी गई अंतरिम सुरक्षा का विस्तार करने पर विचार करे। शुक्रवार को, बेंच ने कहा कि पहले के स्पष्ट आदेश के बावजूद, ऐसा लगता है कि उच्च न्यायालय एक 'कठिनाई' में है।

    तदनुसार, यह स्पष्ट किया गया,

    "हालांकि हमारे पहले के आदेश बहुत स्पष्ट हैं और किसी और स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है, ऐसा प्रतीत होता है कि अभी भी हाईकोर्ट दुविधा में है। फिर भी यह स्पष्ट किया जाता है कि हमारे पहले के आदेश के अनुसार, विवेकाधिकार उच्च न्यायालय पर छोड़ा जाता है। अग्रिम जमानत की अर्जी पर गुण-दोष के आधार पर अंतिम रूप से विचार करें या पहले दिए गए अंतरिम आदेश के विस्तार पर विचार करें।"

    शुक्रवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता जिस्नु बसु की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता परमजीत पटवालिया ने दर्ज आपराधिक मामले पर रोक लगाने की प्रार्थना की और इस तरह पीठ के समक्ष कहा, ''मैं सिर्फ इतना कह रहा हूं कि प्राथमिकी के आधार पर आगे की कार्यवाही पर रोक लगाई जा सकती है. घटना 2 साल पुरानी है, मेरी आजादी खतरे में है।"

    न्यायमूर्ति शाह ने इस पर मौखिक रूप से टिप्पणी की,

    "उस दिन, हमने स्टे देने से इनकार कर दिया था। हम एफआईआर पर रोक नहीं लगा सकते। आप फिर से आ रहे हैं और एफआईआर पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं।"

    बेंच ने आगे बताया कि निहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य में सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस तरह के स्थगन आदेश जारी करने की अनुमति नहीं देता।

    हालांकि, बेंच दी गई अंतरिम सुरक्षा को बढ़ाने के लिए सहमत हो गई और तदनुसार कहा,

    "हम निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट द्वारा पहले दी गई अंतरिम सुरक्षा इस न्यायालय के समक्ष सुनवाई की अगली तारीख, यानी 16.11.2021 तक जारी रहेगी।"

    पृष्ठभूमि

    संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि पीड़ित महिला ने आरोप लगाया था कि विजयवर्गीय ने उसे अपने फ्लैट पर बुलाया, जहां जमानत के आवेदकों ने एक के बाद एक उसके साथ बलात्कार किया। फिर उसे जबरदस्ती असहाय स्थिति में फ्लैट छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। इसके अलावा, यह आरोप लगाया गया कि उसके बाद से उसे कई मौकों, विविध तिथियों और स्थानों पर 39 बार से ज्यादा शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया।

    इसके बाद उसने दिनांक 20 दिसंबर, 2019 को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 341/506(ii)/34 और धारा 341/323/325/506/34 के तहत के तहत दो एफआईआर दर्ज कराई। हालांकि कोई भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई। इसके बाद, 12 नवंबर, 2020 को आईपीसी की धारा 156 (3) के तहत एक आवेदन दायर किया गया, जिसे सीजेएम, अलीपुर ने खारिज कर दिया।

    उक्त आदेश को आपराधिक पुनर्विचार आवेदन दायर करके हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई। सीजेएम, अलीपुर के आदेश को रद्द करते हुए हाईकोर्ट द्वारा उक्त आपराधिक पुनर्विचार आवेदन की अनुमति दी गई थी। इसके बाद मामले को सीजेएम, अलीपुर को पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया गया। अक्टूबर, 2021 को हाईकोर्ट द्वारा पारित निर्देशों/आदेशों के आधार पर सीजेएम कोर्ट ने शिकायत को एफआईआर के रूप में मानने का निर्देश दिया।

    अदालत के समक्ष याचिकाकर्ताओं के वकील द्वारा यह तर्क दिया गया कि महिला द्वारा दर्ज की गई दो शिकायतों में निचली अदालत के समक्ष उसके आवेदन में कथित अपराध की गंभीरता के बारे में कोई चर्चा नहीं की गई। वहीं बसु के वकील ने तर्क दिया कि जांच एजेंसी द्वारा दो शिकायतों में दर्ज की गई क्लोजर रिपोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंची कि आरोप राजनीतिक प्रतिशोध के कारण गढ़े गए। न्यायालय की टिप्पणियां शुरुआत में न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं के वकीलों के तर्कों को ध्यान में रखा कि अलीपुर में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द करने में हाईकोर्ट के निष्कर्ष स्पष्ट रूप से कमजोर और असंगति से प्रभावित है और उक्त आदेश अब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश किया गया।

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