संपत्ति बेचने के लिए ज़बरदस्ती झूठी FIR दर्ज कराने वाले एजेंट पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाया ₹10 लाख का जुर्माना

Shahadat

18 July 2025 2:40 PM

  • संपत्ति बेचने के लिए ज़बरदस्ती झूठी FIR दर्ज कराने वाले एजेंट पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाया ₹10 लाख का जुर्माना

    आपराधिक कानून के दुरुपयोग के ख़िलाफ़ कड़ा रुख अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई को शिकायतकर्ता को दीवानी विवाद में झूठी और निराधार FIR दर्ज कराने के लिए कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने शिकायतकर्ता पर ₹10,00,000 (दस लाख रुपये) का जुर्माना लगाया और निर्देश दिया कि यह राशि अपीलकर्ताओं के बैंक खाते में जमा की जाए।

    अदालत यह जानकर हैरान रह गई कि अपीलकर्ता महिला को "ऐसे आरोपों के लिए गिरफ्तार किया गया और आठ दिनों तक पुलिस हिरासत में अपमानित किया गया, जिनमें किसी भी तरह के अपराध का कोई तत्व नहीं था, संज्ञेय अपराध की तो बात ही छोड़िए।"

    जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने कहा,

    "हमारा मानना है कि शिकायतकर्ता को ब्याज देने के बजाय यह एक उपयुक्त मामला है, जिसमें शिकायतकर्ता को एक ऐसे मामले में, जो पूरी तरह से दीवानी प्रकृति का है, आपराधिक कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के लिए कठोर दंड दिया जाना चाहिए।"

    न्यायालय ने तेलंगाना हाईकोर्ट के उस आदेश की भी आलोचना की, जिसमें अपीलकर्ताओं की CrPC की धारा 482 के तहत दायर याचिका को पंक्ति के अतार्किक आदेश में खारिज कर दिया गया, जिसमें FIR रद्द करने की मांग की गई।

    न्यायालय ने टिप्पणी की,

    "हमें लगता है कि मामले के गुण-दोष पर विचार किए बिना कार्यवाही रद्द करने की मांग करने वाली अपीलकर्ताओं द्वारा दायर याचिका का लापरवाही से निपटारा करने का हाईकोर्ट का दृष्टिकोण पूरी तरह से अधूरे और लापरवाहीपूर्ण है।"

    शिकायतकर्ता (मेसर्स संध्या कंस्ट्रक्शन्स एंड एस्टेट्स प्राइवेट लिमिटेड नामक एक प्रभावशाली बिल्डर के एजेंट) ने अपीलकर्ताओं (रिटायर सेना जनरल की पत्नी और बेटी) पर प्लॉट और फार्महाउस बेचने के लिए ₹4.8 करोड़ लेने, लेकिन बिक्री विलेख निष्पादित करने से इनकार करने का आरोप लगाया, जिसके कारण भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 और 406 (धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात के अपराध) के तहत FIR दर्ज की गई। अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह सौदा मौखिक और सशर्त था। चूंकि पूरा भुगतान नहीं किया गया, इसलिए शिकायतकर्ता द्वारा अनुबंध के विशिष्ट निष्पादन के लिए एक मुकदमा पहले ही दायर किया जा चुका था।

    अपीलकर्ताओं ने दावा किया कि चल रहे दीवानी विवाद के बावजूद उन पर दबाव बनाने के लिए FIR दर्ज की गई।

    हाईकोर्ट द्वारा FIR रद्द करने से इनकार करने के खिलाफ अपीलकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    हाईकोर्ट का फैसला रद्द करते हुए जस्टिस मेहता द्वारा लिखित फैसले में कहा गया:

    “इस प्रकार, स्पष्ट रूप से शिकायतकर्ता ने तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की है। अपीलकर्ताओं के खिलाफ FIR दर्ज करवाने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया। FIR को ध्यान से पढ़ने पर यह स्पष्ट है कि तथाकथित मौखिक विक्रय समझौते के तहत पंजीकृत विक्रय पत्र के निष्पादन न करने से जुड़े एक सीधे-सादे विवाद को आपराधिक तंत्र का दुरुपयोग करके आपराधिक मामले का रूप दे दिया गया। इतना ही नहीं, अपीलकर्ता नंबर 1, जो एक 70 वर्षीय महिला और रिटायर सैन्य अधिकारी की पत्नी हैं, उसको इस झूठी और तुच्छ FIR के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया और उन्हें लगभग आठ दिनों तक हिरासत में रहना पड़ा।”

    अदालत ने आगे कहा,

    “हमारा दृढ़ मत है कि शिकायत में दिए गए स्वीकार किए गए आरोपों के आधार पर भी FIR दर्ज करने का कोई औचित्य नहीं था। इसके बजाय शिकायतकर्ता को सिविल कोर्ट जाकर उचित उपाय अपनाने का निर्देश दिया जाना चाहिए था।”

    साथ ही शिकायतकर्ता द्वारा हैदराबाद में उन्हें पहुंचाए जाने वाले नुकसान की आशंका को देखते हुए अदालत ने हैदराबाद के पुलिस अधीक्षक/पुलिस आयुक्त को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि उन्हें उचित सुरक्षा प्रदान की जाए।

    तदनुसार, अपील स्वीकार कर ली गई।

    अदालत ने इस संबंध में कहा,

    "हाईकोर्ट द्वारा इस तरह से रद्द करने की याचिका को सरसरी तौर पर खारिज करने का दृष्टिकोण सराहनीय नहीं है। इसलिए हमारा मानना है कि अपील स्वीकार किए जाने योग्य है। इसे स्वीकार किया जाना चाहिए।"

    Cause Title: MALA CHOUDHARY & ANR. VERSUS THE STATE OF TELANGANA & ANR.

    Next Story