'सुप्रीम कोर्ट ज़मानत कोर्ट बनकर रह गया है': ज़मानत मामलों पर सुनवाई करते-करते थक गईं जस्टिस नागरत्ना
Shahadat
22 Sept 2025 6:04 PM IST

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आने वाले ज़मानत मामलों की बड़ी संख्या पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट वास्तव में "ज़मानत कोर्ट" बन गया है। उन्होंने बताया कि पीठ ने शुक्रवार को 25 और आज 19 ज़मानत मामलों की सुनवाई की।
उन्होंने कहा,
"एक के बाद एक हम ज़मानत देने या न देने पर विचार कर रहे हैं।"
उन्होंने आगे कहा,
"सुप्रीम कोर्ट एक ज़मानत कोर्ट बन गया है।"
जस्टिस नागरत्ना की यह टिप्पणी सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन द्वारा आभार व्यक्त करने के बाद आई कि उनके नेतृत्व वाली पीठ अन्य दिनों में लंच ब्रेक लेती है, जिससे वकीलों को भी लंच ब्रेक मिल जाता है।
जस्टिस नागरत्ना ने जवाब दिया कि ऐसे ब्रेक ज़रूरी हैं, क्योंकि पीठ ज़मानत मामलों की सुनवाई में ही थक जाती है।
उन्होंने कहा,
"बिना लंच के ऐसे काम नहीं चल सकता, क्योंकि हम सिर्फ़ ज़मानत देने में ही थक जाते हैं।"
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अपराध बढ़ रहे हैं और सामाजिक विकास के संबंध में न्यायिक प्रभाव आकलन की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने आगे कहा कि यदि अधिक पीठें उपलब्ध हों, या ट्रायल कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करें तो कम मामले सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचेंगे।
शंकरनारायणन ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट कई ऐसे मामलों में ज़मानत देता है, जिनमें हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट ज़मानत देने से इनकार कर देते हैं। उन्होंने कहा कि अन्य कोर्ट को भी ज़मानत देने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। साथ ही कहा कि जजों में ज़मानत देने को लेकर काफ़ी डर है।
जस्टिस नागरत्ना ने बताया कि ट्रायल कोर्ट को अपराधों के विवरण की स्पष्ट जानकारी होती है, जबकि जब तक कोई मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचता है, तब तक अभियुक्त लंबे समय से हिरासत में रह चुका होता है, आरोप पत्र दायर हो चुके होते हैं और ज़मानत आदेश के लिए मुक़दमा शुरू हो चुका होता है।
उन्होंने आगे कहा कि हाईकोर्ट में रहते हुए उन्होंने कभी ज़मानत के मामले नहीं देखे और सुप्रीम कोर्ट आने के बाद उन्हें यह काम सीखना पड़ा।
उन्होंने कहा,
"जब तक मामला यहां आता है, समय भी बीत चुका होता है, व्यक्ति काफी समय से जेल में रह चुका होता है, आरोप पत्र दाखिल हो चुका होता है, जांच पूरी हो चुकी होती है, आरोप तय हो चुके होते हैं, मुकदमा शुरू हो चुका होता है, इसलिए हम उसी के अनुसार मामले पर विचार करते हैं। हालांकि, बात यह है कि हम ज़मानत कोर्ट बनते जा रहे हैं। मैं ज़मानत के लिए कभी भी हाईकोर्ट में नहीं बैठी। यहां आने के बाद मुझे यह काम सीखना पड़ा।"
हाल के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट के जजों ने बार-बार बड़ी संख्या में ज़मानत मामलों के सुप्रीम कोर्ट में पहुंचने पर चिंता व्यक्त की है। मार्च, 2024 में जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि न की प्रत्येक पीठ प्रतिदिन कम से कम 15 से 20 ज़मानत मामलों की सुनवाई करती है।
जनवरी, 2023 में जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में लगभग एक तिहाई मामले ज़मानत या छूट के मामले हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में ज़मानत मामलों के प्रवाह को कम करने के लिए सुधारों का आह्वान किया।
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट को जमानत और अग्रिम जमानत आवेदनों पर शीघ्रता से निर्णय लेने का निर्देश दिया तथा इस बात पर बल दिया कि ऐसे मामलों में निर्णय में देरी से व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रभावित होती है।

