पक्षकारों के शादी करने पर सहमत होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने शादी के झूठे पर बलात्कार के दोषी को दी अंतरिम जमानत
Shahadat
16 May 2025 10:06 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे व्यक्ति की सजा निलंबित की, जिसे शादी के झूठे वादे पर बलात्कार के लिए दोषी ठहराया गया था। कोर्ट ने उक्त सजा यह देखते हुए निलंबित की कि वह और शिकायतकर्ता-महिला एक-दूसरे से शादी करने के लिए सहमत हो गए।
कोर्ट ने व्यक्ति को महिला से शादी करने के लिए अंतरिम जमानत दी।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एससी शर्मा की खंडपीठ उस मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता को भारतीय दंड संहिता की (IPC) धारा 376(2)(एन) और 417 के तहत एक ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया और कथित तौर पर शादी के झूठे वादे के तहत अभियोक्ता के साथ लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाने के लिए दस साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। बाद में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने उसकी सजा की पुष्टि की। हालांकि, पहले हाईकोर्ट ने सजा के निलंबन के लिए उसका आवेदन खारिज कर दिया था।
हाईकोर्ट के फैसले से व्यथित होकर दोषी ने अपील करने के लिए विशेष अनुमति की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
मामले की संवेदनशील प्रकृति को देखते हुए खंडपीठ ने अपने चैंबर में बंद कमरे में कार्यवाही करने का असाधारण कदम उठाया। दोनों पक्षकारों को उनके माता-पिता और कानूनी सलाहकार के साथ दोपहर के भोजन से पहले के सत्र में गोपनीय चर्चा के लिए बुलाया गया।
खंडपीठ ने पक्षकारों को निजी बातचीत करने के लिए समय दिया। जब मामले को बाद में खुली अदालत में वापस बुलाया गया तो याचिकाकर्ता और अभियोक्ता ने स्पष्ट रूप से एक-दूसरे से शादी करने की इच्छा व्यक्त की।
अदालत ने आपसी सहमति और संभावित सुलह को देखते हुए पक्षकारों के माता-पिता को "जितनी जल्दी हो सके" शादी के विवरण पर काम करने का निर्देश दिया।
अदालत ने नोट किया,
"याचिकाकर्ता और प्रतिवादी नंबर 2 ने हमारे सामने स्पष्ट रूप से कहा है कि वे एक-दूसरे से शादी करने के इच्छुक हैं। उनके विवाह के विवरण उनके संबंधित माता-पिता द्वारा तय किए जाएंगे और हमें उम्मीद है कि शादी जितनी जल्दी हो सके हो जाएगी। उपरोक्त परिस्थितियों में हम सजा निलंबित करते हैं और याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करते हैं।"
मामले को 25 जुलाई, 2025 तक के लिए स्थगित कर दिया गया। साथ ही इसे आंशिक सुनवाई के रूप में चिन्हित किया गया, जो इस मामले पर न्यायालय की निरंतर निगरानी को दर्शाता है।

