सुप्रीम कोर्ट ने तरुण तेजपाल के खिलाफ यौन उत्पीड़न का ट्रायल पूरा करने के लिए 31 मार्च, 2021 तक समय दिया

LiveLaw News Network

27 Oct 2020 11:24 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने तरुण तेजपाल के खिलाफ यौन उत्पीड़न का ट्रायल पूरा करने के लिए 31 मार्च, 2021 तक समय दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में सहयोगी के यौन उत्पीड़न के मामले में तहलका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल के खिलाफ गोवा की अदालत में चल रहे ट्रायल की समय सीमा 31 मार्च, 2021 कर दी है। पहले ये समय सीमा 31 दिसंबर 2020 थी।

    मंगलवार को जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एम आर शाह ने ये समय सीमा गोवा पुलिस की अर्जी पर बढ़ाई जिसमें कहा गया था कि ये ट्रायल 31 दिसंबर तक पूरा नहीं हो पाएगा।

    दरअसल 19 अगस्त 2019 को सहकर्मी से रेप के मामले में तहलका के संपादक तरुण तेजपाल की आरोपों को रद्द कर आरोपमुक्त करने की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। उनके खिलाफ गोवा की निचली अदालत में ट्रायल को फिर से शुरू कर दिया गया।

    जस्टिस अरूण मिश्रा और जस्टिस एम आर शाह की पीठ ने ट्रायल पर लगी रोक को हटाते हुए 6 महीने में मामले का ट्रायल पूरा करने के निर्देश भी जारी किए थे।

    जस्टिस शाह ने ये फैसला सुनाते हुए कहा कि ये अपराध " नैतिक रूप से घिनौना" और पीड़िता की " निजता पर हमला" है। उन्होंने कहा कि आरोप गंभीर श्रेणी के हैं और पहले ही ट्रायल में काफी देरी हो चुकी है। तेजपाल फिलहाल जमानत पर हैं।

    6 अगस्त को जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसला सुरक्षित रखते हुए तेजपाल पर कई सवाल भी उठाए थे और कहा था कि जिस तरह के आरोप लगे हैं, उन्हें देखने के बाद धरती पर कोई भी उन्हें आरोपमुक्त नहीं कर सकता।

    पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि अभियोजन पक्ष के उन बयानों पर सिर्फ इसलिए अविश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि सीसीटीवी फुटेज में नहीं दिखता कि वह लिफ्ट से बाहर निकलकर भागी थी जैसा कि उसके बयान में दावा किया गया है। पीठ ने ये भी कहा था कि शिकायत दर्ज होने से पहले तेजपाल ने पीड़िता से माफी भी मांगी थी। उस पर अविश्वास क्यों किया जाना चाहिए। यदि आरोप सही हैं तो यह गंभीर है क्योंकि आप इस क्षमता में थे।

    वहीं तेजपाल की ओर से वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने दावा किया था कि सारे आरोप बेबुनियाद हैं और इसका कोई सबूत नहीं है। यहां तक कि सीसीटीवी फुटेज में भी ये नहीं दिखता कि पीड़िता घटना के बाद लिफ्ट से निकलकर भागी थी जबकि पीड़िता ने पुलिस को ये ही बयान दिए थे। ऐसे में तेजपाल के खिलाफ आरोपों को रद्द कर आरोपमुक्त किया जाना चाहिए। जबकि गोवा पुलिस की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि पुलिस के पास सारे सबूत मौजूद हैं।

    दरअसल तरुण तेजपाल ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें हाईकोर्ट ने रेप के आरोपों को रद्द करने की याचिका खारिज कर दी थी। याचिका में तेजपाल ने कहा था कि पीड़िता के बयानों और वीडियो रिकार्डिंग में विरोधाभास हैं। सुनवाई में कोर्ट ने सीसीटीवी फुटेज और अन्य दस्तावेजो को भी देखा था। इससे पहले 6 दिसंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने गोवा की निचली अदालत को ट्रायल जारी रखने के आदेश दिए थे। बेंच ने मापसा की कोर्ट को मामले के करीब 150 गवाहों के बयान दर्ज करने के भी आदेश दिए थे। लेकिन तेजपाल की अर्जी पर 2018 में ट्रायल पर रोक लगा दी गई।

    गौरतलब है कि गोवा की अदालत ने 29 सितंबर 2017 को पूर्व महिला सहयोगी के यौन उत्पीड़न और रेप के आरोपी तहलका के संपादक तरुण तेजपाल के खिलाफ आरोप तय किए थे। अदालत ने तेजपाल के खिलाफ आइपीसी की धारा 341 (दोषपूर्ण अवरोध), 342 (दोषपूर्ण परिरोध), 354 ए और बी (महिला पर यौन प्रवृत्ति की टिप्पणियां और उस पर आपराधिक बल का प्रयोग करना) तथा 376 (रेप) के k और f सब सेक्शन के तहत आरोप तय किए हैं। वहीं तरूण तेजपाल ने अपना अपराध स्वीकार करने से इंकार कर दिया था। 16 जून 2017 को हुई सुनवाई से पहले कोर्ट ने पूरे मामले की कोर्ट प्रक्रिया के मीडिया में छपने पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने 327(3) के तहत मामले की मीडिया कवरेज पर रोक लगाई थी।

    दरअसल तेजपाल की एक जूनियर सहयोगी ने उन पर 2013 में एक कार्यक्रम के दौरान गोवा के एक पांच सितारा होटल की एक लिफ्ट के अंदर यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया था। वैसे निर्भया मामले के बाद महिलाओं से अपराध के नए कानून आने के बाद हाईप्रोफाइल मामले में तरूण तेजपाल की ही पहली गिरफ्तारी हुई थी। 2684 पेज की चार्जशीट में गोवा पुलिस ने दावा किया कि तरूण तेजपाल के मामले में उसके पास पुख्ता सबूत हैं कि उन्होंने लिफ्ट में महिला सहयोगी के साथ रेप किया था।

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