सुप्रीम कोर्ट ने धोखाधड़ी मामले में गैंगस्टर विकास दुबे की पत्नी को निचली अदालत में जमानत के लिए आत्मसमर्पण करने के लिए सात दिन का समय दिया

LiveLaw News Network

30 Nov 2021 11:50 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने धोखाधड़ी मामले में गैंगस्टर विकास दुबे की पत्नी को निचली अदालत में जमानत के लिए आत्मसमर्पण करने के लिए सात दिन का समय दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गैंगस्टर विकास दुबे (बीकरू, कानपुर) की पत्नी ऋचा दुबे को नियमित जमानत के लिए आवेदन करने के लिए निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने के लिए 7 दिन का समय दिया।

    जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर दुबे की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। दुबे पर आरोप था कि उन्होंने कथित तौर पर अपने नौकर के सिम कार्ड का उपयोग उसकी मर्जी के बगैर किया था।

    इस मामले में आईपीसी की धारा 419 और 420 के तहत दर्ज आपराधिक कार्यवाही को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द करने से इनकार कर दिया था। इसके बाद ऋचा दुबे ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।

    दुबे की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सलमान खुर्शीद ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता को आरोप पत्र दाखिल होने तक अग्रिम जमानत दी गई थी और चूंकि आरोप पत्र पहले ही दायर किया जा चुका है, इसलिए उसे निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने और नियमित जमानत के लिए अर्जी दाखिल करने के लिए 10 दिन का समय दिया जाना चाहिए।

    उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि वह आरोप तय करने पर बहस के स्तर पर ट्रायल कोर्ट के समक्ष सभी तर्कों को उठाएंगी, जिन पर आक्षेपित आदेश से बाध्य हुए बिना गुणों के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।

    बयान को देखते हुए कोर्ट ने निम्नलिखित आदेश जारी किया,

    " ...हम देखते हैं कि याचिकाकर्ता आरोप तय करने पर बहस के समय सभी दलीलों और विवाद को उठाने का हकदार है, जिन तर्कों पर आक्षेपित आदेश में की गई टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना कानून के अनुसार विचार किया जाएगा।"

    अदालत ने आत्मसमर्पण के लिए सात दिन का समय देते हुए विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी।

    मामला

    अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार ऋचा दुबे एक सिम कार्ड का उपयोग कर रही थी, जो मूल रूप से महेश नामक एक व्यक्ति का था, जो विकास दुबे का नौकर था। सिम कार्ड उस व्यक्ति की मर्जी के बगैर इस्तेमाल किया जा रहा था।

    इस मामले में एसआईटी की विस्तृत रिपोर्ट के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई थी, जो इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि ऋचा दुबे द्वारा दूरसंचार नियामक प्राधिकरण के दिशानिर्देशों का घोर उल्लंघन किया गया था, जो कि प्रकृति में अपराध था।

    विशेष रूप से कुख्यात बिकरू मुठभेड़ के बाद, जिसमें पिछले साल विकास दुबे और उसके सहयोगियों ने आठ पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया था, महेश (नौकर) ने सीआरपीसी की धारा 161 के तहत एक बयान दर्ज कराया था कि उसके सिम कार्ड का इस्तेमाल ऋचा दुबे 2017 से उसकी मर्जी के बगैर कर रही हैं।

    उसने यह भी दावा किया कि उसने इस संबंध में कोई 'अनापत्ति प्रमाण पत्र' नहीं दिया था, जो अन्यथा ट्राई के दिशानिर्देशों के अनुसार अनिवार्य है, जो कहता है कि रक्त संबंध के अलावा, सिम कार्डधारक का नाम बिना किसी "अनापत्त‌ि प्रमाणपत्र" के किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बदला या उपयोग नहीं किया जा सकता है।

    उसने यह भी दावा किया था कि चूंकि दुबे एक गैंगस्टर था, इसलिए उनके पास उनके निर्देश का पालन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

    दूसरी ओर, ऋचा दुबे ने तर्क दिया कि उन्होंने विचाराधीन सिम कार्ड का किसी भी अपराध में दुरुपयोग नहीं किया था और इसलिए उन्होंने जब भी जरूरत पड़ी अपने नौकर के मोबाइल का इस्तेमाल किया और महेश को इससे कोई समस्या नहीं थी।

    टिप्पणियां

    शुरुआत में कोर्ट ने नोट किया था कि ऋचा दुबे की प्रभावशाली स्थिति के कारण उनके नौकर महेश ने उन्हें अपना सिम कार्ड दिया, ताकि वह उसे अपने लाभ के लिए उपयोग कर सकें।

    इसके अलावा, यह मानते हुए कि धारा 415 आईपीसी (धोखाधड़ी) के तहत सिम कार्ड एक संपत्ति है, अदालत ने कहा कि भय के कारण नौकर मालिक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का साहस नहीं जुटा सका।

    अंत में यह निष्कर्ष निकालते हुए कि प्रथम दृष्टया आवेदक के खिलाफ अपराध बनता है, अदालत ने नोट किया,

    "... अपराध केवल भेष बदलने और नौकर को धोखा देने और उसे सहमति के बिना संपत्ति (सिम कार्ड) देने के लिए प्रेरित करने का है। इसलिए धारा 419, 420 आईपीसी के तहत अपराध के लिए सामग्री पूरी तरह से आवेदक के खिलाफ बनाई गई है। ऐसा करने में आवेदक का इरादा है जो रिकॉर्ड से प्रथम दृष्टया स्पष्ट है और भारत सरकार, संचार मंत्रालय और दूरसंचार विभाग के आईटी विभाग द्वारा नौ अगस्‍त 2012 को जारी दिशा-निर्देशों के खंड -7 और 10 के अनुसार है। आवेदक के विरुद्ध प्रथम दृष्टया अपराध बनता है।"

    मामले में दुबे की ओर से सीनियर एडवोकेट सलमान खुर्शीद के साथ अधिवक्ता प्रणव राज, ऋषभ राज, आदित्य शेखर, मो इब्राहिम, प्रभा शंकर मिश्रा, ऋषि कुमार सिंह गौतम, एओआर पेश हुए।

    केस शीर्षक - ऋचा दुबे बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य

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