सुप्रीम कोर्ट ने 'पेड़ लगाने की शर्त' पर हत्या की सज़ा निलंबित करने के आदेश पर निराशा व्यक्त की, मामला हाईकोर्ट को वापस भेजा
Shahadat
28 Oct 2025 9:55 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा पारित उस आदेश पर निराशा व्यक्त की, जिसमें सामाजिक सरोकार के तहत 10-10 पौधे लगाने की शर्त पर दो हत्या के दोषियों की सज़ा निलंबित कर दी गई थी।
जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की खंडपीठ ने CrPC की धारा 389(1) के तहत जेल की सज़ा निलंबित करने और ज़मानत देने के लिए दायर आवेदन पर हाईकोर्ट की जस्टिस आनंद पाठक और जस्टिस हिरदेश की खंडपीठ द्वारा 29 अप्रैल को पारित आदेश रद्द कर दिया। दोनों आरोपियों को 2023 में ट्रायल कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 (हत्या) और 341 (गलत तरीके से रोकने की सज़ा) के तहत दोषी ठहराया था।
जस्टिस कुमार ने शुरुआत में टिप्पणी की:
"निलंबन देते समय जज कहते हैं कि तुम पौधे लगाओ? यह क्या है? हम इस आदेश को रद्द कर देंगे और इसे वापस भेज देंगे। सामान्यतः, हम हस्तक्षेप नहीं करते, लेकिन हाईकोर्ट के तर्क पर गौर कीजिए, महोदय [आदेश पढ़ते हैं]...और हिंदी में कुछ लिखा है, ढाई पैराग्राफ...क्या ज़मानत देने की यही शर्त है? यह क्या है?"
पारित आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर अपनी नाराज़गी और आश्चर्य व्यक्त किया कि ज़मानत का आदेश एक पल के लिए भी कानून की कसौटी पर कैसे खरा उतर सकता है। इसने यह भी सवाल उठाया कि सजा के निलंबन के लिए कोई तर्क क्यों नहीं दिया गया।
कोर्ट ने कहा,
"पक्षकारों के वकीलों को सुनने के बाद हमें सूचित किया गया कि याचिकाकर्ताओं को धारा 302 और 304 के तहत दोषी ठहराया गया और उन्हें चूक के लिए क्रमशः आजीवन कारावास और एक महीने के कठोर कारावास के साथ 10,000 रुपये और 500 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई। हालांकि, आक्षेपित आदेश में ज़मानत दिए जाने के आधार का रत्ती भर भी कारण नहीं बताया गया। संक्षेप में अपील पर सुनवाई होनी चाहिए।
जो भी हो, हम इस बात से निराश और आश्चर्यचकित हैं कि आक्षेपित आदेश के तहत हाईकोर्ट अभियुक्तों (IPC की धारा 302 के लिए दोषी) को पौधारोपण करने का निर्देश देने की शर्त लगाते समय इस आधार पर प्रभावित हुआ कि इससे सामाजिक हित की पूर्ति होगी और उक्त शर्त पर, गुण-दोष पर विचार किए बिना ज़मानत दी गई, जो एक पल के लिए भी कानून की कसौटी पर खरी नहीं उतर सकती। इस अतिरिक्त आधार पर आक्षेपित आदेश पर विचार किया जाना चाहिए। तदनुसार, इसे अलग रखा जाता है और मामला हाईकोर्ट को वापस भेजा जाता है ताकि वह उपरोक्त उल्लिखित अंतरिम आवेदनों पर गुण-दोष के आधार पर और कानून के अनुसार तथा किसी भी मामले में उसके पिछले आदेश, जिस पर वर्तमान अपील में आपत्ति की गई, उससे प्रभावित हुए बिना निर्णय ले सके।
हालांकि, कोर्ट ने दोषियों की ज़मानत रद्द नहीं की।
कोर्ट ने मामले को नए सिरे से सुनवाई और शीघ्र निपटारे के लिए हाईकोर्ट को वापस भेज दिया:
"इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि उक्त आदेश के आधार पर प्रतिवादियों को ज़मानत दी गई, यह स्पष्ट किया जाता है कि उन्हें तब तक हिरासत में नहीं लिया जाएगा, जब तक कि सज़ा के निलंबन और ज़मानत प्रदान करने के लिए दायर दो अंतरिम आवेदनों का निपटारा नहीं हो जाता। हमें उम्मीद है और विश्वास है कि हाईकोर्ट इनका शीघ्र निपटारा करेगा और केवल छह सप्ताह की अवधि के भीतर ही अपना फैसला सुनाएगा।"
जब ज़मानत आदेश को चुनौती देने वाले वकील ने ज़मानत रद्द करने का अनुरोध किया तो जस्टिस कुमार ने मौखिक रूप से टिप्पणी की:
"ऑपरेशन सफल रहा, मरीज़ की मृत्यु हो गई।"
Case Details: SURAJPAL SINGH JADON v PRASHANT SIKARWAR AND ORS. SLP(Crl) No. 13465/2025

