बिहार SIR विवाद: मीडिया रिपोर्ट के आधार पर ECI से जवाब तलब करने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
Praveen Mishra
16 Dec 2025 6:17 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया के दौरान मतदाता नामों की कटौती से जुड़े एक समाचार पत्र की रिपोर्ट के आधार पर निर्वाचन आयोग (ECI) से जवाब तलब करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि जब तक कोई मुद्दा शपथपत्र (affidavit) के माध्यम से औपचारिक रूप से रिकॉर्ड पर न लाया जाए, तब तक अदालतें केवल मीडिया रिपोर्टों से प्रभावित होकर आदेश नहीं दे सकतीं।
चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ बिहार में एसआईआर प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट का हवाला दिया। रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में एसआईआर अभ्यास के दौरान लाखों पूर्व-भरे (pre-filled) नोटिस मतदाताओं को भेजे गए, जिनमें उनके नाम मतदाता सूची से हटाने का प्रस्ताव था, और ये नोटिस कथित रूप से केंद्रीय निर्वाचन आयोग की ओर से जारी किए गए।
भूषण ने दलील दी कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत केवल स्थानीय निर्वाचक निबंधन अधिकारी (ERO) को ही ऐसे नोटिस जारी करने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि यदि नोटिस केंद्रीय स्तर से जारी किए गए, तो यह कानून के विरुद्ध है और यह एक गंभीर मामला है, जो प्रक्रिया में केंद्रीकृत हस्तक्षेप को दर्शाता है।
इस पर निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने समाचार पत्र की रिपोर्ट पर भरोसा किए जाने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि आयोग को मीडिया रिपोर्टों के आधार पर अदालत में अचानक जवाब देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। द्विवेदी ने अदालत को बताया कि यदि याचिकाकर्ता इस आरोप को आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो उन्हें शपथपत्र के माध्यम से सामग्री रिकॉर्ड पर रखनी होगी। उन्होंने यह भी कहा कि रिपोर्ट में किया गया दावा तथ्यात्मक रूप से गलत है और सभी नोटिस जिला निर्वाचन अधिकारियों द्वारा ही जारी किए गए थे।
चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि स्थापित न्यायिक प्रक्रिया के अनुसार अदालत तभी किसी प्राधिकरण से जवाब मांग सकती है, जब आरोप औपचारिक रूप से रिकॉर्ड पर रखे जाएं। उन्होंने यह स्वीकार किया कि संबंधित समाचार पत्र और उसके पत्रकार विश्वसनीय हैं, लेकिन साथ ही चेतावनी दी कि अदालतें केवल रिपोर्टों के आधार पर निर्देश जारी नहीं कर सकतीं, क्योंकि रिपोर्टें स्रोतों पर आधारित होती हैं और वे पूर्णतः या आंशिक रूप से सही हो सकती हैं।
इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि कोई जिम्मेदार राजनीतिक नेता किसी जनहित याचिकाकर्ता से संपर्क करता है, तो उसे स्वयं याचिका दायर करने की सलाह दी जानी चाहिए, न कि किसी और के माध्यम से मामला उठाया जाए। इस पर सीजेआई ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि यदि किसी जिम्मेदार व्यक्ति के पास ठोस जानकारी है, तो वह स्वयं आगे आकर याचिका दायर करेगा।
अंततः अदालत ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार के गंभीर आरोपों को केवल मीडिया रिपोर्टों के आधार पर स्वीकार नहीं किया जा सकता, जब तक कि उन्हें शपथपत्र या अन्य विश्वसनीय सामग्री के माध्यम से रिकॉर्ड पर न रखा जाए। इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को कोई निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया और दोहराया कि अदालतें केवल समाचार प्रकाशनों के आधार पर स्पष्टीकरण तलब नहीं करेंगी।

