सुप्रीम कोर्ट को उस मिसाल पर संदेह, जिसने डिस्चार्ज आवेदनों पर निर्णय लेने में हाईकोर्ट के दायरा को सीमित किया

LiveLaw News Network

30 Nov 2023 10:09 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट को उस मिसाल पर संदेह, जिसने डिस्चार्ज आवेदनों पर निर्णय लेने में हाईकोर्ट के दायरा को सीमित किया

    सुप्रीम कोर्ट ने मिनाक्षी बाला बनाम सुधीर कुमार, (1994) 4 एससीसी 142 के फैसले पर आपत्ति व्यक्त की है, जिसमें आपराधिक मामलों से आरोपियों को बरी करने में हाईकोर्टों द्वारा सीमित दृष्टिकोण अपनाने की वकालत की गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले को रद्द करते हुए, जिसमें एक आपराधिक मामले में आरोपी को आरोपमुक्त करने से इनकार कर दिया गया था, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने मिनाक्षी बाला के मामले के निष्कर्षों, विशेष रूप से फैसले के पैराग्राफ 8 के बारे में अपनी आपत्ति व्यक्त की।

    उस पैरा में कहा गया है-

    “इस मामले से ‌निपटने में हाईकोर्ट के दृष्टिकोण में कमजोरी के अलावा, जिसे हम पहले ही नोट कर चुके हैं, हम आगे पाते हैं कि सीआरपीसी की धारा 239 और 240 में संदर्भित दस्तावेजों तक अपना ध्यान सीमित रखने और उनक हवाला देने के बजाय हाईकोर्ट ने संबंधित पक्षों के हलफनामों में उठाए गए तर्कों को विस्तार से निपटाया है और गहन चर्चा के बाद विवादित आदेश पारित किया इस प्रकार अपनाई गई कार्यप्रणाली का समर्थन नहीं किया जा सकता; पहला, क्योंकि किसी अपराध के घटित होने के संबंध में निष्कर्ष हलफनामे के सबूतों के आधार पर दर्ज नहीं किया जा सकता है और दूसरा, आरोप तय करने के चरण में न्यायालय संबंधित मामले की मेर‌िट पर गहराई से विचार करने और निर्णय लेने के लिए ट्रायल कोर्ट के कार्यों को छीन नहीं सकती है।''

    इसका मतलब यह था कि एक बार आरोप तय हो जाने के बाद, हाईकोर्ट केवल धारा 239 और 240 सीआरपीसी में निर्दिष्ट दस्तावेजों पर भरोसा कर सकता है और यदि किसी अन्य दस्तावेज पर भरोसा किया जाता है तो यह उचित नहीं होगा। वर्तमान निर्णय के अनुसार, यदि इस दृष्टिकोण को स्वीकार कर लिया जाता है, तो यह डिस्चार्ज आवेदन पर विचार करते समय हाथ बांधने जैसा होगा।

    कोर्ट ने कहा,

    “यदि मिनाक्षी बाला (सुप्रा) के पैराग्राफ 8 को वैसे ही स्वीकार कर लिया जाता है, तो आवश्यक सहवर्ती यह होगा कि मामले की विस्तार से जांच करने के बावजूद, एक न्यायालय को हस्तक्षेप करने के लिए अपने पंख कटे हुए मिलेंगे। यह किसी व्यक्ति को मुकदमे में खड़े होने के लिए मजबूर करने जैसा होगा, भले ही सामग्री उसकी बेगुनाही की ओर इशारा करती हो।''

    इसके बावजूद, न्यायालय ने यह कहते हुए मामले को पुनर्विचार के लिए उच्चतर पीठ को नहीं भेजा कि ऐसा अधिक उपयुक्त मामले में किया जा सकता है। न्यायालय ने फैसले में यह भी कहा कि हाईकोर्टों का कर्तव्य है कि वे ‌खिझाऊ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दें।

    केस टाइटलः विष्णु कुमार शुक्ला और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य| आपराधिक अपील संख्या 3618/2023

    साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (एससी) 1019

    फैसले को पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story