सुप्रीम कोर्ट ने डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को पैरोल/फर्लो दिए जाने को चुनौती देने वाली SGPC की याचिका खारिज की
Shahadat
1 March 2025 9:53 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) द्वारा दायर याचिका खारिज की, जिसमें आरोप लगाया गया कि हरियाणा सरकार डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को पैरोल/फर्लो देते समय हरियाणा गुड कंडक्ट प्रिजनर्स (टेम्पररी रिलीज) एक्ट, 2022 की धारा 11 के तहत अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रही है।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश में की गई इस टिप्पणी को ध्यान में रखते हुए यह आदेश पारित किया कि यदि राम रहीम द्वारा अस्थायी रिहाई के लिए कोई आवेदन दायर किया जाता है तो उस पर सक्षम प्राधिकारी द्वारा बिना किसी पक्षपात, मनमानी या भेदभाव के 2022 अधिनियम के अनुसार निर्णय लिया जाएगा।
जस्टिस गवई ने कहा,
"याचिका 2023 में फर्लो दिए जाने से संबंधित है। हम 2025 में हैं। इसके अलावा, सीनियर एडवोकेट रोहतगी ने व्यक्तिगत मामले के संबंध में जनहित याचिका की स्वीकार्यता के संबंध में भी सवाल उठाया। मामले के इस दृष्टिकोण से हम वर्तमान याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं हैं। हाईकोर्ट ने आदेश के पैरा 6 में स्वयं टिप्पणी की है कि यदि प्रतिवादी नंबर 9 द्वारा अस्थायी रिहाई के लिए कोई आवेदन किया जाता है तो उस पर 2022 के अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार सक्षम प्राधिकारी द्वारा मनमानी या पक्षपात या भेदभाव किए बिना सख्ती से विचार किया जाएगा।"
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि पैरोल विशेषाधिकार है, जिसे केवल बाध्यकारी कारणों से ही दिया जा सकता है। फिर भी राम रहीम, जिसे दो बार बलात्कार और हत्या के लिए दोषी ठहराया गया, उसको 2022-24 के बीच हर साल 2022 अधिनियम के तहत प्रदान की गई अधिकतम अवधि यानी 91 दिन (70 पैरोल और 21 फर्लो) के लिए पैरोल और फर्लो दिया गया।
2022 अधिनियम की धारा 11 का हवाला देते हुए वकील ने आगे आग्रह किया कि प्रावधान पैरोल/फर्लो देने पर रोक लगाता है जब तक कि कोई दोषी अपने खिलाफ लंबित सभी मामलों में जमानत पर न हो, और हाईकोर्ट के आदेश पर जोर दिया, जिसने राम रहीम की जमानत याचिका वापस ले ली।
खंडपीठ ने जब वकील से अदालत का दरवाजा खटखटाने में देरी के बारे में पूछा, जहां तक कि विवादित फर्लो आदेश 2023 में पारित किया गया तो उन्होंने बताया कि राम रहीम को जनवरी, 2025 में भी अस्थायी रिहाई दी गई थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि संबंधित वारंट में अस्थायी रिहाई देने का कोई कारण दर्ज नहीं किया गया।
दूसरी ओर, सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी (राम रहीम की ओर से पेश) ने याचिका की स्वीकार्यता पर सवाल उठाया और याचिकाकर्ता के उद्देश्यों पर सवाल उठाया कि वह हाईकोर्ट में जनहित याचिका की आड़ में केवल राम रहीम की पैरोल/फर्लो को लक्षित कर रहा है।
रोहतगी ने कहा,
"पैरोल/फर्लो पर सैकड़ों लोग हैं। पीआईएल केवल उसके (राम रहीम) लिए है, क्योंकि इस याचिकाकर्ता (और राम रहीम) के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता है।"
जवाब में जस्टिस मिश्रा ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा,
"आप एक व्यक्ति के खिलाफ हैं। आप किसी भी तरह की राहत की मांग नहीं कर रहे हैं, जो सामान्य और सामान्य प्रकृति की हो। आपकी राहत 9वें प्रतिवादी (राम रहीम) तक ही सीमित है कि उसका पक्ष लिया जा रहा है। जनहित क्या है? यह एक व्यक्ति को निर्देशित और लक्षित है।"
इस पर वकील ने जवाब दिया कि हाईकोर्ट ने अन्य मामलों में भी रिकॉर्ड मांगे हैं और राम रहीम के खिलाफ अपवित्रता के 4 मामले भी लंबित हैं।
अंतत: खंडपीठ ने याचिका खारिज कर दी। मामले से अलग होने से पहले याचिकाकर्ता के वकील ने रेखांकित किया कि हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद, जिसमें यह उल्लेख किया गया कि सक्षम प्राधिकारी 2022 अधिनियम के अनुसार पैरोल/फर्लो देने पर सख्ती से विचार करेगा, राम रहीम को जनवरी, 2025 में फिर से अस्थायी रिहाई दी गई, जो हाईकोर्ट की टिप्पणियों का उल्लंघन है।
इस संबंध में, जस्टिस गवई ने वकील से कहा,
"आप उस आदेश को चुनौती दें। यदि उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना की है तो हाईकोर्ट के समक्ष अवमानना याचिका दायर करें।"
केस टाइटल: शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति बनाम हरियाणा राज्य और अन्य, डायरी नंबर 7483-2025

