सुप्रीम कोर्ट ने UAPA के तहत केंद्र सरकार के प्रतिबंध के खिलाफ पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की याचिका खारिज की, कहा- 'हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएं'

Shahadat

6 Nov 2023 7:42 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने UAPA के तहत केंद्र सरकार के प्रतिबंध के खिलाफ पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की याचिका खारिज की, कहा- हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएं

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (6 नवंबर) को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की याचिका खारिज कर दी। इस याचिका में गृह मंत्रालय की उस अधिसूचना को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे और उसके सहयोगी संगठनों को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यूएपीए) के तहत 'गैरकानूनी संघ' के रूप में नामित किया गया था।

    प्रतिबंधित संगठन ने पहले हाईकोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटाया। हालांकि, अदालत ने पीएफआई को न्यायिक हाईकोर्ट के संवैधानिक रिट क्षेत्राधिकार का उपयोग करके उचित उपाय खोजने की स्वतंत्रता दी।

    जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ इस साल की शुरुआत में केंद्र सरकार के प्रतिबंध को बरकरार रखने वाले यूएपीए ट्रिब्यूनल (दिल्ली एचसी न्यायाधीश की अध्यक्षता में) के खिलाफ पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    सुनवाई की शुरुआत में जस्टिस बोस ने पीएफआई की ओर से पेश सीनियर वकील श्याम दीवान से पूछा,

    "आपने हाईकोर्ट का रुख नहीं किया है?"

    यह स्वीकार करते हुए कि अनुच्छेद 226 के तहत उपाय उपलब्ध है, सीनियर वकील ने बताया,

    "संगठनों पर इसी तरह के प्रतिबंध के खिलाफ इस अदालत में मामले लंबित हैं। सक्रिय विचार के तहत लंबित हैं।"

    जस्टिस त्रिवेदी ने उत्तर दिया,

    "वे हाईकोर्ट के आदेशों से उत्पन्न हुए होंगे।"

    दीवान ने जवाब दिया,

    "दो स्थितियां हैं, जिनमें ऐसी याचिकाएं दायर की गई हैं - या तो अनुच्छेद 32 लागू किया गया है, या ट्रिब्यूनल के आदेश को सीधे चुनौती दी गई है।"

    जस्टिस त्रिवेदी ने नरम रुख अपनाने से इनकार करते हुए कहा,

    "बेहतर होगा कि आप हाईकोर्ट जाएं।"

    इस संक्षिप्त बातचीत के बाद जस्टिस बोस ने कहा,

    "याचिकाकर्ता ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत गठित ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ सीधे भारत के संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत हमारे अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करते हुए इस अदालत का दरवाजा खटखटाया है। हमारी राय में संवैधानिक रिट क्षेत्राधिकार वह मंच होना चाहिए, जो याचिकाकर्ता को पहले संपर्क करना चाहिए था। हम तदनुसार, याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की छूट देते हुए याचिका खारिज करते हैं।''

    मामले की पृष्ठभूमि

    पिछले साल सितंबर में गृह मंत्रालय ने गजट अधिसूचना प्रकाशित की थी, जिसमें पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और उसके विभिन्न सहयोगियों या मोर्चों को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत 'गैरकानूनी संघ' घोषित किया गया था, जिसमें आतंकवादी संगठनों के साथ संबंध और आतंकवादी कृत्यों में संलिप्तता में उनके कथित आरोपों का हवाला दिया गया था।

    यह घटनाक्रम पीएफआई और उसके सदस्यों के खिलाफ दो बड़े राष्ट्रव्यापी खोज, हिरासत और गिरफ्तारी अभियानों के बाद हुआ। यूएपीए की धारा 3(1) के तहत प्रतिबंध पांच साल की अवधि के लिए तुरंत प्रभावी होना था। सूचीबद्ध सहयोगियों में रिहैब इंडिया फाउंडेशन (आरआईएफ), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई), ऑल इंडिया इमाम्स काउंसिल (एआईआईसी), नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन (एनसीएचआरओ), नेशनल वुमेन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया और रिहैब फाउंडेशन, केरल फाउंडेशन शामिल हैं।

    इस साल मार्च में दिल्ली हाईकोर्ट के जज, जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा के नेतृत्व में यूएपीए ट्रिब्यूनल ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और उससे जुड़ी संस्थाओं पर केंद्र सरकार के प्रतिबंध को बरकरार रखा था। आतंकवाद विरोधी कानून के प्रावधानों के अनुसार, हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश वाले ट्रिब्यूनल को सरकार की घोषणा की वैधता पर निर्णय देना आवश्यक था।

    जस्टिस शर्मा को अक्टूबर 2022 में केंद्र द्वारा ट्रिब्यूनल के पीठासीन अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था।

    केस टाइटल- पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया बनाम यूनियन ऑफ इंडिया | डायरी नंबर 26236/2023

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